इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने दी चुनाव टालने की सलाह, कहा चुनावी रैलियों पर प्रतिबंध लगाए चुनाव आयोग

उत्तर प्रदेश में अगले साल विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। लेकिन उससे पहले इलाहाबाद उच्च न्यायालय की एक टिप्पणी ने तमाम नेताओं सहित खुद चुनाव आयोग को भी सोचने के लिए मजबूर कर दिया है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव ने चुनाव आयोग को चुनावी रैलियों पर प्रतिबंध लगाने और कोविड के खतरे के कारण यूपी विधानसभा चुनाव स्थगित करने का “सुझाव” दिया है। ये पहली बार नहीं है जब न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव अपनी टिप्पणियों को लेकर सुर्खियों में आए हैं।

जमानत याचिका में अपने 23 दिसंबर के आदेश में, न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव ने न केवल इलाहाबाद उच्च न्यायालय प्रशासन से प्रत्येक अदालत कक्ष में सुनवाई के मामलों की संख्या को कम करने का आह्वान किया, बल्कि यह भी सुझाव दिया कि चुनाव आयोग और भारत सरकार को राजनीतिक रैलियों पर प्रतिबंध लगाने और यूपी विधानसभा चुनाव स्थगित करने पर विचार करना चाहिए। ऐसा सुझाव उन्होंने  कोविड के खतरे के कारण दिया।

उन्होंने मुफ्त कोविड टीकाकरण कार्यक्रम के लिए मोदी सरकार की प्रशंसा करते हुए टिप्पणी की, और अदालत के रजिस्ट्रार को भारत के चुनाव आयोग और इलाहाबाद उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार-जनरल को सुझावों के साथ अपने आदेश की एक प्रति भेजने का निर्देश दिया। न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव ने जिस मामले में ये “सुझाव” दिए थे, वह यूपी संगठित अपराध रोकथाम अधिनियम के तहत आरोपी एक व्यक्ति की जमानत याचिका से संबंधित था।

57 वर्षीय न्यायाधीश को दिसंबर 2019 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था और मार्च 2021 में उन्होंने स्थायी न्यायाधीश के रूप में शपथ ली थी। अपनी पदोन्नति से पहले, उन्होंने उत्तर प्रदेश राज्य के लिए स्थायी वकील, भारत संघ के लिए अतिरिक्त स्थायी वकील और यूपी की अदालतों में रेलवे के लिए स्थायी वकील का पद संभाला था। वह वर्तमान में उच्च न्यायालय की इलाहाबाद पीठ के न्यायाधीश और कौशांबी जिले के प्रशासनिक न्यायाधीश हैं।

1 सितंबर को, शेखर कुमार यादव ने यह कहकर विवाद खड़ा कर दिया कि “वैज्ञानिकों का मानना है कि गाय ही एकमात्र जानवर है जो ऑक्सीजन छोड़ती है”। उन्होंने संसद से गाय को राष्ट्रीय पशु बनाने और गोरक्षा को “हिंदुओं का मौलिक अधिकार” घोषित करने का भी आह्वान किया था।

ये टिप्पणी यूपी गोहत्या अधिनियम के तहत गायों की चोरी और तस्करी के आरोपी एक व्यक्ति की जमानत याचिका खारिज करते हुए की गई थी। आदेश में यह टिप्पणी शामिल थी कि कैसे अकबर जैसे मुस्लिम शासकों ने गोहत्या पर प्रतिबंध लगाया था, और यह कि गोरक्षा “भारतीय संस्कृति का पर्याय” है। कोर्ट के इस आदेश ने खूब सुर्खियां बटोरी थीं और सोशल मीडिया पर लोगों ने इस पर अपने विचार रखे थे।