जीका वायरस को लेकर अलर्ट, केंद्र सरकार ने सभी राज्यों के लिए जारी की एडवाइजरी

महाराष्ट्र में जीका वायरस के कई मामले सामने आने के बाद केंद्र सरकार अलर्ट हो गई है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने जीका वायरस को लेकर सभी राज्यों को एडवाइजरी जारी की है। इस एडवाइजरी के तहत सभी राज्यों को निगरानी बढ़ाने और गर्भवती महिलाओं में जीका वायरस के संक्रमण के खतरे को देखते हुए स्क्रीनिंग बढ़ाने के निर्देश दिए गए हैं।

पुणे में बीते कुछ दिनों में जीका वायरस के छह मामले सामने आए
गौरतलब है कि महाराष्ट्र के पुणे में बीते 11 दिनों में जीका वायरस के छह मामले सामने आ चुके हैं। एक जुलाई को दो गर्भवती महिलाओं में जीका वायरस के संक्रमण की पुष्टि हुई है। यही वजह है कि केंद्र सरकार इसे लेकर सतर्कता बरत रही है। सरकार ने जीका वायरस से संक्रमित महिलाओं के भ्रूण की लगातार निगरानी करने का भी निर्देश दिया है। अस्पतालों और स्वास्थ्य सुविधाओं को मच्छरों से मुक्त रखने के लिए नोडल अफसर नियुक्त करने के साथ ही रिहायशी इलाकों, स्कूलों, निर्माणाधीन स्थलों और विभिन्न संस्थानों को भी मच्छरों से मुक्त रखने को कहा गया है।

गर्भवती महिलाओं के लिए जीका वायरस संक्रमण ज्यादा खतरनाक
जीका वायरस संक्रमण भी डेंगू और चिकनगुनिया की तरह एडीज मच्छर जनित बीमारी है। स बीमारी से संक्रमित ज्यादातर लोगों को पता नहीं चलता है कि वे जीका वायरस से संक्रमित हैं। असल में जीका वायरस के लक्षण बहुत हल्के होते हैं। इस बीमारी से संक्रमित गर्भवती महिलाओं को होने वाले बच्चों का मस्तिष्क पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाता और उनके सिर का आकार सामान्य से कम होता है। इस वजह से जीका वायरस संक्रमण चिंता का विषय बना हुआ है। भारत में साल 2016 में जीका वायरस के संक्रमण का पहला मामला दर्ज किया गया था। उसके बाद से तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, राजस्थान, केरल, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और कर्नाटक में भी इसके संक्रमण के मामले सामने आ चुके हैं। 2 जुलाई तक महाराष्ट्र के पुणे में जीका वायरस के छह मामले सामने आ चुके हैं।

क्या हैं जीका वायरस संक्रमण के लक्षण
जीका वायरस के संक्रमण से पीड़ित लोगों में सिरदर्द, बुखार, जोड़ों में दर्द, त्वचा पर दाने और लाल चकते, आंखों के सफेद भाग में लालिमा और मांसपेशियों में दर्द की शिकायत जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। जीका वायरस का नाम युगांडा के जीका जंगलों के नाम पर पड़ा है। साल 1947 में पहली बार यहीं पर इस बीमारी के लक्षण मिले थे, जिसके बाद यहां पाए जाने वाले बंदरों को आइसोलेट किया गया था। इसके पांच साल बाद युगांडा और तंजानिया के इंसानों में इस वायरस का संक्रमण पाया गया था।