अगले साल विधानसभा चुनावों के लिए मैदान में उतरे अखिलेश यादव , शुरू किया ये…

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव और राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष जयंत चौधरी ने हाल ही में दिल्ली में एक बैठक की है, जिसमें खासकर उत्तर प्रदेश के जाट लैंड में भाजपा को घेरने की रणनीति बनाई गई है।

इस बैठक में दोनों नेताओं ने अपने अपनाए हुए ‘मुस्लिम-यादव-जाट’ फॉर्मूले को फिर से आजमाने का फैसला किया है। दोनों नेताओं को लगता है कि पहले आजमाई जा चुकी इस रणनीति से पश्चिमी यूपी, खासकर बागपत, शामली, मुजफ्फरनगर, मेरठ के अलावा कुछ और क्षेत्रों में बीजेपी की हवा पतली की जा सकती है।

इसके अलावा आएलडी मुस्लिम, जाट, गुज्जरों के अलावा कुछ और ओबीसी समुदायों को गोलबंद करने के लिए ‘भाईचारा सम्मेलन’ भी आयोजित करने वाली है। इसकी शुरुआत मुजफ्फरगर के खतौली से होगी और करीब दो दर्जन जिलों की लगभग 50 विधानसभा क्षेत्रों में आयोजित की जाएगी। मुख्य फोकस पश्चिमी यूपी पर ही रहेगा।

मकसद साफ है कि इस इलाके के कुछ जिलों में मुसलमान और जाट मतदाताओं को मिलाकर करीब 40 फीसदी तक वोट हो जाता है। आरएलएडी के लिए सपा के साथ गठबंधन इसलिए भी अहम है, क्योंकि 2017 के चुनाव में वह सिर्फ 1 सीट जीत पाई थी। वह 403 सीटों में से जिन 357 पर लड़ी थी, उनमें से सिर्फ 3 पर ही जमानत बचा सकी थी।

2019 के लोकसभा चुनाव में जयंत चौधरी और उनके पिता चौधरी अजीत सिंह भी अपनी सीट नहीं बचा सके थे। रालोद और सपा को इसबार लगता है कि मौजूदा किसान आंदोलन से उनके लिए बीजेपी के खिलाफ मोर्चाबंदी करना ज्यादा आसान हो गया है। हालांकि, पंचायत चुनावों में भाजपा समर्थित उम्मीदवार उन्हीं इलाकों में ज्यादा दबदबा बना पाए थे, जिसे आंदोलन में शामिल किसान नेताओं का गढ़ माना जाता है।

समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव फिर से अगले साल विधानसभा चुनावों के लिए मैदान में उतर गए हैं। कोरोना की दूसरी तरह के दौरान उन्होंने प्रदेशभर की जो यात्राएं रोकी थीं, उसे फिर से शुरू कर दिया है।

इस बीच पार्टी ने राष्ट्रीय लोकदल और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ भी गठबंधन का फैसला कर लिया है। सभी दलों के टारगेट पर सिर्फ भारतीय जनता पार्टी और उसकी सरकारें हैं। फिलहाल अखिलेश यादव अपने बाकी विरोधी दलों के नेताओं को टारगेट करने से बच रहे हैं। पार्टी ने यूपी विधानसभा चुनाव में जीत के लिए 350 सीटों का लक्ष्य तय किया है।