पार्टी नेताओं को मोदी लहर पर यकीन इतना है कि अपने बड़े से बड़े नेताओं की नाराजगी का वो परवाह नहीं कर रही। जम्मू और कश्मीर से आर्टिकल 370 हटने के बाद उसके हौसले बुलंद हैं। क्योंकि हरियाणा सैनिकों का प्रदेश है। जहां से किसी भी व प्रदेश के मुकाबले सैनिक ज्यादा हैं। गुजरात से बाहर पीएम नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की यह कर्मभूमि है। वो यहां 1995 से लेकर 2000 तक प्रभारी रहे, इसलिए उनके हरियाणा प्रेम को भी भुनाने की प्रयास है।
कुल मिलाकर यहां भाजपा का मनोबल भारी है। मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर से ज्यादा मोदी पर भरोसा है। भाजपा का मुकाबला कांग्रेस पार्टी से होगा, जबकि इनेलो, जेजेपी, बीएसपी व आम आदमी पार्टी वोटकटवा की किरदार में नजर आ रही हैं।
हरियाणा में प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम पर ही लड़ा जाएगा चुनाव!
सियासी कुरुक्षेत्र का यह मैदान कांग्रेस, इनेलो व हरियाणा विकास पार्टी गढ़ रहा है। उसमें भाजपा बहुत संयम से धीरे-धीरे खड़ी हुई है। 1991 में जिस भाजपा ने यहां सिर्फ 2 सीटें जीती थीं व 70 पर उसके प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी, आज उसकी टिकट के लिए हर नेता लालायित है। दूसरी पार्टियों के 12 मौजूदा विधायक इसकी शरण में आ चुके हैं। भाजपा के टिकट वितरण से यह झलकता है कि उसने इस बार संगठन के नेताओं पर ज्यादा भरोसा किया है। जबकि कांग्रेस पार्टी ने अपने ज्यादातर पुराने चेहरों पर ही दांव लगाया है।
अपनी ही जमीन पर कैसे बढ़ी कांग्रेस पार्टी की चुनौती
बीते लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी की आंधी चली है। इसका प्रभाव इतना है कि हरियाणा में दस की दस सीटों पर भाजपा ने अतिक्रमण कर लिया है। यहां तक कि कांग्रेस पार्टी के सबसे बड़े नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा व उनके पुत्र दीपेंद्र सिंह हुड्डा को भी पराजय का मुंह देखना पड़ा। पूरा चौटाला परिवार पराजय गया। बिश्नोई परिवार की भी दाल नहीं गली। रोहतक जैसा कांग्रेस पार्टी का गढ़ उसके हाथ से फिसल गया। क्या इसकी वजह सिर्फ भाजपा है? नहीं, खुद कांग्रेस पार्टी खुद है।
कांग्रेस में गुटबाजी चरम पर है व जमीन पर संगठन कहीं दिखता नहीं। 2014 में विधानसभा चुनाव हारने के बाद से ही पार्टी बिखरी हुई है। सभी जिला व ब्लॉक कमेटियां खत्म हैं। जिसकी वजह से किसी भी जिले में न पार्टी की मासिक मीटिंग हो रही है न तो सामूहिक रूप से सरकार के विरूद्ध कोई धरना-प्रदर्शन। जब संगठन की ये स्थिति है तो कांग्रेस पार्टी भाजपा का मुकाबला कैसे कर पाएगी?
हरियाणा में कांग्रेस पार्टी गुटबाजी से उबर नहीं पा रही
कांग्रेस के लिए वजूद की लड़ाई
2014 में कांग्रेस पार्टी ने 17 सीटें जीतीं। इस बार भी वो निश्चित तौर पर अपना वजूद बचाने के लिए लड़ रही है। ज्यादातर प्रत्याशियों को हश्र पता है। पार्टी विधानसभा चुनाव को लेकर कभी सीरियस नहीं दिखी। क्या कोई पार्टी बिना संगठन के चुनाव जीत सकती है? लेकिन कांग्रेस पार्टी को इसका पूरा यकीन था व वो बिना जिलाध्यक्षों के ही लोकसभा चुनाव के मैदान में भी उतर गई। परिणाम सबके सामने है।
भूपेंद्र हुड्डा व तंवर की अदावत
लगातार दस वर्ष तक मुख्यमंत्री रहे भूपेंद्र सिंह हुड्डा को सत्ता जाने के बाद 2014 से ही पार्टी ने किनारे कर दिया था। कमान दलित नेता अशोक तंवर के हाथ थी। जो जेएनयू से पढ़े हैं। सौम्य आदमी हैं लेकिन जमीनी तौर पर सियासत में वे जम नहीं पाए। हुड्डा गुट उन्हें परेशान करता रहा। जब हुड्डा हाशिए पर थे तो तंवर गुट के विरूद्ध मोर्चा खोले हुए थे। अब हुड्डा को कमान मिली है तो तंवर अपने समर्थकों को लेकर टिकट के लिए सोनिया गांधी के घर के बाहर प्रदर्शन कर रहे हैं।