दिल्ली में चुनाव हारने के बाद बीजेपी ने किया ये काम, जानकर लोग हुए हैरान

प्रफुल्ल केतकर ने लिखा है कि दिल्ली में 1993 में विधानसभा के गठन के बाद से यहां मुख्य मुकाबला भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस के बीच देखा गया है।

 

जबकि बहुजन समाज पार्टी (बसपा) जैसे अन्य छोटे दस लगभग 9-13 प्रतिशत वोट प्राप्त करते रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि 1998 तक दिल्ली में मतदाताओं का ऐसा ही व्यवहार देखनने को मिला है। भाजपा दिल्ली के लगभग सभी नगर निगमों पर जीत हासिल की, लेकिन 2013 तक कांग्रेस को शिकस्त देने में विफल रही।

2017 में भी आम आदमी पार्टी के प्रमुख सत्ताधारी दल होने के बावजूद भाजपा ने स्थानीय निकायों को बरकरार रखा। दूसरी ओर आम आदमी पार्टी स्थानीय निकाय चुनावों में कोई छाप छोड़ने में विफल रही।

2019 के लोकसभा चुनावों की बात करें तो आम आदमी पार्टी सभी निर्वाचन क्षेत्रों में तीसरे स्थान पर रही। कांग्रेस ने लोकसभा में लगभग 27 प्रतिशत मतों के साथ दूसरे स्थान पर अच्छा प्रदर्शन किया।

लेकिन अन्य राज्यों की तुलना में दिल्ली के मतदाताओं का एक बड़ा प्रतिशत विभिन्न स्तरों के चुनावों में अलग-अलग वोट देना क्यों पसंद करता है?

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 में भाजपा की करारी हार और आम आदमी पार्टी की शानदार जीत की आरएसएस ने समीक्षा की है।

संघ ने भारतीय जनता पार्टी को हमेशा मोदी-शाह पर टिके न रहने की सलाह दी है। संघ ने अपने अंग्रेजी मुखपत्र ‘ऑर्गनाइजर’ में लिखा है कि मोदी और शाह हमेशा जीत नहीं दिला सकते।

संघ ने इस लेख में भाजपा की हार और दिल्ली चुनाव में उतारे गए उम्मीदवारों के बारे में विस्तार से समीक्षा छापी है। ‘दिल्ली डायवर्जेंट मेंडेट’ शीर्षक से लिखी इस समीक्षा रिपोर्ट में मतदाताओं के व्यवहार और उनके मन को समझने पर बल दिया गया है। दिल्ली चुनाव की यह समीक्षा रिपोर्ट ‘ऑर्गनाइजर’ के संपादक प्रफुल्ल केतकर ने तैयार की है।