”तुर्की चाहता है कि वो इस्लामी जगत का नेता बने. तुर्की की यह चाहत सऊदी अरब को चुनौती देने वाली है. ऐसे में सऊदी अरब ने पिछले कुछ वर्षों में भारत के साथ मज़बूत आर्थिक और रक्षा सहयोग विकसित किए. इससे पाकिस्तान काफ़ी असहज हुआ.
अर्दोआन ने पाकिस्तान को आर्थिक प्रगति में मदद करने की भरोसा दिलाया है. अर्दोआन ने कहा है कि वो पाकिस्तान को परिवहन. ऊर्जा, पर्यटन, हेल्थकेयर और शिक्षा के मोर्चे पर मदद करेंगे. पाकिस्तान और तुर्की के बीच रक्षा सहयोग सबसे अहम है. दोनों देशों के सैनिक युद्धाभ्यास भी कर रहे हैं.”
रिपोर्ट में यरुशलम पोस्ट के उस कोट का भी हवाला दिया है जिसका ज़िक्र सऊदी गज़ट के लेख में है. सऊदी गज़ट के लेख के अनुसार, ”शीत युद्ध के बाद अमेरिका के सुरक्षा कवच पर केवल भरोसा नहीं किया जा सकता.
पिछले दशक में इस क्षेत्र की प्रमुख घटनाओ में सीरियाई गृह युद्ध और पूर्वी भूमध्यसागर में गैस संसाधनों को लेकर प्रतिस्पर्धा में अमेरिका की मौजूदगी नहीं रही क्योंकि वो अपनी प्राथमिकताओं के साथ रहा. ऐसे में नई साझेदारियाँ और सामरिक संबंध विकसित हुए.”
कहा जा रहा है कि अर्दोआन का यह रुख़ ग्रीक विश्लेषकों की भारत-ग्रीस गठबंधन को मज़ूबत करने की अपील के बाद सामने आया है. ग्रीक विश्लेषकों ने कहा है कि तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोआन को मात देने के लिए दोनों देशों में रणनीतिक साझेदारी बढ़ाने की ज़रूरत है.
ग्रीस के विश्लेषकों ने कहा है कि तुर्की परमाणु मिसाइल तकनीक पाकिस्तान भेज रहा है और इसका सामना करने के लिए भारत-ग्रीस को हथियारों के संयुक्त उत्पादन पर विचार करना चाहिए.
सऊदी गज़ट में तीन दिन पहले एक लेख छपा था, जिसमें कहा गया है कि तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन दक्षिण एशिया में पाकिस्तान से रणनीतिक गठबंधन को और मज़बूत करना चाहते हैं.
अब तक पाकिस्तान और चीन की दोस्ती भारत के लिए चुनौती थी अब पाकिस्तान और तुर्की की जुगलबंदी भी भारत को परेशान कर रही है. इकनॉमिक टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार अफ़ग़ानिस्तान में तुर्की और पाकिस्तान के साथ मिलकर काम करने के फ़ैसले से उन अटकलों को बल मिला है .
भूमध्यसागर और दक्षिण एशिया में भारत की मुश्किलें बढ़ सकती हैं. तुर्की का कहना है कि उसका लक्ष्य युद्धग्रस्त मुल्क अफ़ग़ानिस्तान में आर्थिक प्रगति को लेकर काम करना है. पाकिस्तान और तुर्की दोनों मिलकर ईरान से होते हुए रेल का विस्तार कर रहे हैं.