58 साल बाद लद्दाख में हुआ ये, शुरू कर दिया…800 मीटर पर…

वहीँ  सेना के एक अधिकारी का कहना है कि भारत ने जब अप्रैल की शुरुआत में गलवान और श्योक नदियों के संगम के पास एक पुल का निर्माण शुरू किया था, वहीँ उसी के साथ तभी से चीन ने गलवान घाटी में भारतीय क्षेत्र के 800 मीटर पर अपना दावा जताना शुरू कर दिया था।

जबकि 1959 में हुए समझौते के आधार पर 61 साल से यह क्षेत्र भारतीय सीमा में है, इसलिए गलवान घाटी से चीन के पीछे हटने को किसी भी तरह से जीत के रूप में देखने के बजाय भारतीय सेना को और ज्यादा चौकन्ना रहने की जरूरत है, क्योंकि सेना उस इतिहास से वाकिफ है, जो इस क्षेत्र में 61 साल पहले हुआ था।

हालांकि 2020 का भारत बहुत अलग है, इसलिए इस बार चीन को पीछे धकेलने के लिए भारत की ओर से बनाए गए सैन्य, राजनीतिक और कूटनीतिक दबाव ने चीनियों को ‘बैकफुट’ पर जाने के लिए मजबूर किया। फिर भी धोखेबाज ड्रैगन पर अब पहले से ज्यादा पैनी नजर रखने की जरूरत है।

इतिहास एक बार फिर 58 साल बाद खुद को दोहरा रहा है। चीन के गलवान से पीछे हटने को अगर सन 1962 के नजरिये से देखें तो पता चलता है कि 14 जुलाई, 1962 को भी गलवान से चीनी सेना पीछे हटी थी और दूसरे दिन ‘गलवान से पीछे हटी चीन की सेना’ जैसे शीर्षक अखबारों की सुर्खियां बने थे लेकिन इसके 91 दिन बाद ही चीन ने एकतरफा युद्ध छेड़ दिया था।