उच्चतम न्यायालय आज प्रातः काल 10:30 बजे अपना निर्णय सुनाएगा। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस शरद अरविंद बोबडे, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ व जस्टिस एस अब्दुल नजीर की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ मुद्दे पर निर्णय सुनाएगी।
दरअसल, उच्चतम न्यायालय ने 16 अक्टूबर को सभी पक्षों को सुनने के बाद अपना निर्णय सुरक्षित रखा लिया था। दरअसल, यह देश का सबसे पुराना मुद्दा है व इस मुद्दे में 40 दिनों तक नियमित सुनवाई हुई थी। यह उच्चतम न्यायालय के इतिहास में अब तक की दूसरी सबसे लंबी चली सुनवाई थी। सबसे लंबी सुनवाई का रिकॉर्ड 1973 के केशवानंद भारती केस का है, जिसमें 68 दिनों तक सुनवाई चली थी।
– मन्दिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई
हिंदू पक्ष ने नक्शों, तस्वीरों व पुरातात्विक सबूतों के जरिये ये साबित करने की प्रयास की थी कि विवादित ढांचा बनने से पहले वहां भव्य मन्दिर था। मन्दिर को ध्वस्त कर मस्जिद का निर्माण कराया गया था। न्यायालय में पेश किए फोटोग्राफ के जरिये बोला गया था कि विवादित इमारत हिंदू मंदिर के 14 खंभों पर बनी थी। इन खंभों में तांडव मुद्रा में शिव, हनुमान कमल व शेरों के साथ बैठे गरुड़ की आकृतियां हैं।
– विवादित स्थान पर दो हज़ार वर्ष पहले भी मन्दिर
हिंदू पक्ष ने दावा किया था कि विवादित जगह पर आज से 2 हज़ार वर्ष पहले भी भव्य राम मंदिर था। मंदिर के ढांचे के ऊपर ही विवादित इमारत को बनाया गया था। प्राचीन मंदिर के खंभों व दूसरी सामग्री का प्रयोग भी विवादित ढांचे के निर्माण में किया गया।
– श्रीराम जन्मस्थान को लेकर अटूट आस्था
हिंदू पक्ष की ओर से बोला गया था कि जिस स्थान का यहां मुकदमा चल रहा है। करोड़ों लोगों की आस्था है कि वही भगवान राम का जन्म जगह है। सैकड़ों वर्ष से यहां पूजा-परिक्रमा की परंपरा रही है। करोड़ों लोगों की इस आस्था को पहचानना व उसे मान्यता देना न्यायालय की जबाबदेही है।
– रामलला की मूर्ति रखे जाने से बहुत पहले से श्रीराम की पूजा
विवादित ढांचे के मूर्ति रखे जाने बहुत पहले से ही राम की पूजा होती रही है। किसी स्थान को मंदिर के तौर पर मानने के लिए वहां मूर्ति होना ज़रूरी नहीं है। हिन्दू महज किसी एक रूप में भगवान की आराधना नहीं करते। केदारनाथ मंदिर में शिला की पूजा होती है। पहाड़ों की भी देवरूप में पूजा होती है। चित्रकूट में होने वाली परिक्रमा का उदाहरण दिया गया था।
– इस्लामिक सिद्धान्तों के मुताबिक भी विवादित ढांचा वैध मस्जिद नहीं
हिंदू पक्ष ने इस्लामिक नियमों का हवाला देकर ये साबित करने की प्रयास की थी कि विवादित ढांचा मस्जिद नहीं हो सकती। बोला गया था कि किसी धार्मिक जगह के ऊपर जबरन बनाई गई। इमारत शरीयत के हिसाब से भी मस्ज़िद नहीं मानी जा सकती। उस इमारत में मस्ज़िद के लिए ज़रूरी तत्व भी नहीं थे। इस्लामिक विद्वान इमाम अबु हनीफा का बोलना था कि अगर किसी स्थान पर दिन में कम से कम दो बार नमाज़ पढ़ने के अज़ान नहीं होती तो वो स्थान मस्ज़िद नहीं हो सकती। विवादित इमारत में 70 वर्ष से नमाज नहीं पढ़ी गई है। उससे पहले भी वहां सिर्फ शुक्रवार को नमाज हो रही थी।
-रामलला विराजमान व श्रीरामजन्मस्थान को न्यायिक आदमी का दर्ज़ा
हिंदू पक्ष ने श्रीरामजन्मस्थान को भी न्यायिक आदमी होने के समर्थन में दलीलें रखीं थी। बोला था कि पूरा रामजन्मस्थान ही हिंदुओं के लिए देवता की तरह पूजनीय है। किसी स्थान को मन्दिर साबित करने के लिए मूर्ति की मौजूदगी ज़रूरी नहीं है, बल्कि लोगों की आस्था, विश्वास ही किसी स्थान को मन्दिर बनाते हैं। श्रीरामजन्मस्थान को लेकर तो लोगों की आस्था सदियों से अटूट रही है। मंदिर में विराजमान रामलला कानूनी तौर पर नाबालिग का दर्जा रखते हैं। नाबालिग की संपत्ति किसी को देने या बंटवारा करने का निर्णय नहीं हो सकता।
-पुरातत्व सबूतों, धार्मिक ग्रंथों, विदेशी यात्रियों के आर्टिक्ल का हवाला
हिंदू पक्षकारों की ओर मन्दिर की मौजूदगी को साबित करने के लिए पुरातत्व सबूतों, धार्मिक ग्रंथों, विदेशी यात्रियों के आर्टिक्ल व पुरातात्विक सबूतों, राजस्व विभाग के रिकॉर्ड का हवाला दिया गया था। इसके अतिरिक्त हिंदू पक्ष ने विवादित स्थान पर मन्दिर की मौजूदगी को साबित करने के लिए अयोध्या जाने वाले विदेशी यात्रियों जोसेफ टाइफेनथेलर, मोंटगोमरी मार्टिन के यात्रा संस्मरणों, डच इतिहासकर हंस बेकर व ब्रिटिश टूरिस्ट विलियम फिंच की पुस्तकों का भी हवाला दिया था।