टीपू सुल्तान की जयंती पर कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए 57 हजार पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया. इनमें से करीब तीन हजार पुलिसकर्मी राज्य की राजधानी बेंगलुरू में तैनात किए गए. CM व जनता दल (सेक्युलर) के नेता एचडी कुमारस्वामी राज्य सचिवालय में हुए मुख्य प्रोग्राम में मौजूद नहीं थे. उन्होंने अपनी गैरमौजूदगी की वजह सेहत कारणों को बताया.
कार्यक्रम के आधिकारिक निमंत्रण लेटर में भी उनके नाम का जिक्र नहीं था. कुमारस्वामी के पहले कांग्रेस पार्टी नेता सिद्धारमैया कर्नाटक के CM थे व वो हर बार प्रोग्राम में मौजूद रहते थे.
‘अंधविशवास पर यकीन नहीं’
कुमारस्वामी की गैरमौजूदगी को लेकर आलोचकों ने बीते वर्षों के उनके बयान को याद दिलाया जब वो बोला करते थे, ‘जन्मदिन मनाने से समाज को कोई लाभ नहीं होगा’ . आलोचनाओं का पूर्वानुमान लगाते हुए कुमारस्वामी ने टीपू सुल्तान के प्रगतिशील कामों व नयी खोज के लिए उनकी कोशिशों की सराहना की.कुमारस्वामी ने एक बयान में कहा, ‘(डॉक्टर की सलाह पर प्रोग्राम में भाग नहीं लेने का) कोई विशेष अर्थ खोजना अनावश्यक होगा . इस बात में कोई सत्यता नहीं है कि ऐसा मैं इस भय से कर रहा हूं कि मेरी कुर्सी चली जाएगी. मेरा अंधविश्वासों में कोई यकीन नहीं है.‘ भारतीय जनता पार्टी हमेशा टीपू सुल्तान की जयंती पर होने वाले कार्यक्रमों का जोरदार विरोध करती रही थी, लेकिन इस बार उनके प्रदर्शनों में भी वो धार नहीं दिखी.
राजधानी बेंगलुरू में प्रोग्राम के एक दिन पहले छोटा प्रदर्शन हुआ. भारतीय जनता पार्टी की पॉलिटिक्स के लिहाज से अहम कोडागू व मैसूर जिलों में भी अमूमन शांति रही. सिर्फ मुट्ठीभर लोगों ने टीपू सुल्तान के खिलाफ़ नारेबाजी की.
‘सरकार के दोहरे मानदंड’
टीपू सुल्तान ने वर्ष 1766 में अपने पिता हैदर अली के साथ अंग्रेजों के खिलाफ मैसूर की पहली जंग में भाग लिया था. उस वक्त उनकी आयु 15 वर्ष थी. साल 1799 में श्रीरंगपट्टनम की चौथी जंग के दौरान युद्ध के मैदान में उनकी मौत हुई थी. बीजेपी के प्रवक्ता एस प्रकाश ने कहा, ‘विरोध के सुर धीमे करने की बात नहीं है ऐसा नहीं है कि हम टीपू का विरोध करते हैं तो हम बंद बुलाएं व कानून-व्यवस्था की दिक्कत पैदा हो.हम सिर्फ इस गवर्नमेंट के दोहरे मानदंड उजागर करना चाहते हैं. मुख्यमंत्री खुद उपस्थित नहीं थे व कांग्रेस से आने वाले उपमुख्यमंत्री विदेश चले गए.‘अब सवाल ये है कि क्या राजनीतिक दलों के लिए टीपू सुल्तान का नाम वोट दिलाने वाला नहीं रहा? मैसूर में रहने वाले इतिहासकार पृथ्वीदत्ता चंद्र शोबी ने बीबीसी से कहा, ‘ऐसा ही लगता है. धारवाड़ विश्वविद्यालय में पॉलिटिक्स विज्ञान के प्रोफेसर हरीश रामास्वामी कहते हैं, ‘दोनों ही पक्ष विवादों से बचने की प्रयास में हैं’.