सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा व विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के बीच लड़ाई ने दूसरी एजेंसियों व कई अन्य सरकारी विभागों को अपनी जद में ले लिया है. इनमें प्रवर्तन निदेशालय, इंटेलीजेंस ब्यूरो, केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी), रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) ही नहीं बल्कि सत्ता प्रतिष्ठान के कई कर्ताधर्ता भी शामिल हैं.
गुजरात कैडर के आईपीएस अधिकारी अस्थाना पीएम नरेंद्र मोदी से नजदीकियों की वजह से जाने जाते हैं. दो वर्ष पहले मोदी ही उन्हें अंतरिम निदेशक बनाकर CBI में लाए थे. माना जा रहा था कि वर्मा के बाद अस्थाना ही निदेशक बनेंगे. ऐसे में सवाल उठता है कि अस्थाना के विरूद्ध इतनी बड़ी मुहिम वर्मा ने अपने दम पर छेड़ी है या उन पर किसी का वरदहस्त है?
यह महज संयोग भी हो सकता है कि अस्थाना के विरूद्ध CBI द्वारा करप्शन के आरोपों में एफआईआर दर्ज होने के दो दिन बाद ही स्टर्लिंग बायोटेक के विरूद्ध प्रवर्तन निदेशालय ने 5000 करोड़ रुपये के घपले में चार्जशीट दाखिल कर की. मंगलवार को ही खबरें आईं थीं कि इस कंपनी के मालिक चेतन संदेसरा ने 2016 में हुई अस्थाना की बेटी की विवाह का खर्च खुद उठाया था.
पिछले दिनों प्रवर्तन निदेशालय भी टकराव में रहा जब उसके एक संयुक्त निदेशक ने वित्त सचिव हंसमुख अधिया के विरूद्ध गंभीर आरोप लगाए. लेकिन न तो अधिया व न ही वित्तमंत्री अरुण जेटली उस अधिकारी का बाल भी बांका कर सके, जबकि प्रवर्तन निदेशालय वित्त मंत्रालय के भीतर ही आता है. बीजेपी सांसद सुब्रमण्यम स्वामी उस अधिकारी का खुलकर समर्थन करते हैं.
मंगलवार शाम को स्वामी ने ट्वीट कर सत्ता के ‘गैंग ऑफ फोर’ पर अंगुली उठाई, जो उनके अनुसार जुलाई 2019 से पहले रॉ, सीबीआई, इनकम टैक्स, रिजर्व बैंक व प्रवर्तन निदेशालयजैसी प्रमुख एजेंसियों में अपने लोग बैठाना चाहता है ताकि अगर बीजेपी को 220 से कम सीटें मिलती हैं तो कांग्रेस पार्टी से प्रति किसी नरम आदमी को पीएम की कुर्सी पर बिठाया जा सके.