वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में ऐसे कई अध्ययन किए हैं जो बदलते मौसम के साथ वायरस की ताकत में आए बदलाव को दर्शाते हैं लेकिन प्रयोगशाला में मिले नतीजों की अपनी सीमाएं होती हैं और ज़रूरी नहीं कि प्रयोगशाला के बाहर भी वही नतीजे निकलें.
पर संक्रमण के दायरे में जब लाखों लोग आ जाते है, तो ये जंगल में लगी आग जैसा हो सकता है. मिकेला मार्टिनेज़ कहती हैं, “आप इस तरह सोचिए कि संक्रामक रोग, जंगल में लगी आग की तरह होते हैं.
थोड़ी बहुत बारिश से आग कुछ समय के लिए कम हो सकती है, लेकिन बुझती नहीं है. कोरोना मरीज जंगल की आग की तरह पूरी दुनिया में फैले हुए हैं. इस साल तो ये आग नहीं बुझने वाली.” शायद यही वजह है कि ब्रिटेन में सरकार की एक रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कोरोना वायरस की सेंकेंड वेब में पहले से कहीं अधिक लोगों की जान सकती है.
वैज्ञानिक इसकी दो मुख्य वजहें मानते हैं. कोरोना वायरस के संबंध में अभी तक जो प्रमाण मिले हैं, वो बताते हैं कि ह्यूमिडिटी जब बहुत अधिक होती है, कोरोना वायरस के लिए फैलना मुश्किल होता है. मिकेला मार्टिनेज़ के मुताबिक, “फ्लू के मामले में ये होता है कि वायरस तापमान और हवा में मौजूद नमी के हिसाब से फैलता है. ये पक्के तौर पर एक समस्या है.
वायरस एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में आसानी से जाएगा या नहीं, ह्यूमिडिटी इसमें अहम रोल अदा करती है.” इसका मतलब ये हुआ कि सर्दियों में तापमान गिरने से जब ह्यूमिडिटी में कमी आएगी, तब ये वायरस हवा में अधिक से अधिक समय तक मौजूद रह सकता है.
मिकेला मार्टिनेज़ कहती हैं, “हम यह जानते हैं कि ये वायरस बंद जगहों में भी तेज़ी से फैलता है. सर्दियों में लोग बंद जगहों में अधिक रहते हैं. इन दो तथ्यों को जब हम इंसानों के व्यवहार के साथ मिलाकर देखते हैं तो यही लगता है कि सर्दियों में कोरोना वायरस तेज़ी से फैलेगा.”
ये पूर्वानुमान भले ही जटिल और बेहद अनिश्चित लगे, लेकिन उत्तरी गोलार्ध के देशों के लिए चिंता का सबब कहा जा रहा है. सवाल तो यही है कि सर्दी के मौसम में क्या कोरोना वायरस और कहर बरपाएगा, क्या पहले से कहीं अधिक लोग कोरोना वायरस का शिकार बनेंगे?
ये दावा है कोलंबिया यूनिवर्सिटी के इनवॉयरमेंटल हेल्थ साइंसेज़ डिपार्टमेंट में असिस्टेंट प्रोफेसर मिकेला मार्टिनेज़ का जो बदलते मौसम के साथ किसी वायरस के स्वरूप में आने वाले बदलावों का वैज्ञानिक अध्ययन करती हैं.
मिकेला मार्टिनेज़ का मानना है कि संक्रामक रोगों के ग्राफ में सालभर उतार-चढ़ाव आता रहता है. वो कहती हैं, “इंसानों में होने वाले हर संक्रामक रोग का एक ख़ास मौसम होता है. जैसे सर्दियों में फ्लू और कॉमन-कोल्ड होता है, उसी तरह गर्मियों में पोलिया और वसंत के मौसम में मीज़ल्स और चिकन-पॉक्स फैलता है. चूंकि सारे संक्रामक रोग मौसम के हिसाब से बढ़ते हैं, इसलिए ये माना जा रहा है कि कोरोना भी सर्दी में बढ़ेगा.”
धरती के एक बड़े हिस्से में मौसम बदल रहा है, सर्दियां दस्तक दे रही हैं और यही वो समय होता है जब कोल्ड-फ्लू यानी सर्दी-ज़ुकाम आम बात हो जाती है.लेकिन इस बार की सर्दी दुनिया के कई वैज्ञानिकों की चिंता बढ़ा रही है.
डर इस बात का है कि ठंडी हवाओं के साथ बदलते मौसम की वजह से, कोरोना वायरस अपनी अधिक ताक़त के साथ तेज़ी से फैल सकता है. कई वैज्ञानिकों को ये आशंका है कि सर्दी के मौसम में दुनिया को कोरोना वायरस की ‘सेंकेंड वेव’ का सामना करना पड़ सकता है, जो पहले से ‘कहीं अधिक जानलेवा’ होगी.