6 दिन बाद चंद्रमा के ऑर्बिट में पहुंचेगा चंद्रयान-2 पृथ्वी की कक्षा छोड़ी

 चंद्रयान-2 ने मंगलवार रात 2 बजकर 21 मिनट पर पृथ्वी की कक्षा को छोड़ दिया. अब वह चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश करनेके लिए निकल चुका है. इस प्रक्रिया को ट्रांस लुनर इंसर्शन (टीएलआई) बोला जाता है, जिसमें इसरो को सफलता मिली. इससे पहले चंद्रयान-2 ने पृथ्वी की कक्षा में 23 दिन बिताए. इसरो ने आंध्र प्रदेश के श्री हरिकोटा से 22 जुलाई को मून मिशनलॉन्च किया था

 

इसरो चेयरमैन के सिवन ने बताया कि चंद्रयान-2 को चंद्रमा तक पहुंचने में 6 दिन का समय लगेगा. चंद्रयान-2 ने सफलतापूर्वक लुनर ट्रांसफर ट्राजेक्टरी सिस्टम में प्रवेश कर लिया है. 20 अगस्त को चंद्रयान-2, चंद्रमा की कक्षा में पहुंच जाएगा. पृथ्वी से चंद्रमा के बीच की दूरी 3.84 लाख किलोमीटरहै. इसरो के अनुसार, पृथ्वी की अंतिम कक्षा छोड़ने के दौरान यान के इंजन में 1203 सेकंड्स के लिए आग प्रज्जवलित हुई थी.

मिशन की लॉन्चिंग की तारीख आगे बढ़ाने के बावजूद चंद्रयान-2 चांद पर तय तारीख यानी 7 सितंबर को ही पहुंचेगा. इसे समय पर पहुंचाने का मकसद यही है कि लैंडर  रोवर तय शेड्यूल के हिसाब से कार्य कर सकें. समय बचाने के लिए चंद्रयान ने पृथ्वी का एक चक्कर कम लगाया. पहले 5 चक्कर लगाने थे, पर बाद में इसे चार कर करना पड़ा. इसकी लैंडिंग ऐसी स्थान तय है, जहां सूरज की लाइट ज्यादा है. लाइट 21 सितंबर के बाद कम होनी प्रारम्भ होगी. लैंडर-रोवर को 15 दिन कार्य करना है, इसलिए समय पर पहुंचना महत्वपूर्ण है.

चंद्रयान-2 को हिंदुस्तान के सबसे शक्तिशाली जीएसएलवी मार्क-III रॉकेट से लॉन्च किया गया. इस रॉकेट में तीन मॉड्यूल ऑर्बिटर, लैंडर (विक्रम)  रोवर (प्रज्ञान) हैं. इस मिशन के तहत इसरो चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडर को उतारने की योजना है. इस बार चंद्रयान-2 का वजन 3,877 किलो है. यह चंद्रयान-1 मिशन (1380 किलो) से करीब तीन गुना ज्यादा है.लैंडर के अंदर उपस्थित रोवर की गति 1 सेमी प्रति सेकंड है.

चंद्रयान-2 वास्तव में चंद्रयान-1 मिशन का ही नया संस्करण है. इसमें ऑर्बिटर, लैंडर (विक्रम)  रोवर (प्रज्ञान) शामिल हैं. चंद्रयान-1 में सिर्फ ऑर्बिटर था, जो चंद्रमा की कक्षा में घूमता था. चंद्रयान-2 के जरिए हिंदुस्तान पहली बार चांद की सतह पर लैंडर उतारेगा. यह लैंडिंग चांद के दक्षिणी ध्रुव पर होगी. इसके साथ ही हिंदुस्तान चांद के दक्षिणी ध्रुव पर यान उतारने वाला पहला देश बन जाएगा.

चांद की कक्षा में पहुंचने के बाद ऑर्बिटर एक वर्ष तक कार्य करेगा. इसका मुख्य उद्देश्य पृथ्वी  लैंडर के बीच कम्युनिकेशन करना है. ऑर्बिटर चांद की सतह का नक्शा तैयार करेगा, ताकि चांद के अस्तित्व  विकास का पता लगाया जा सके. वहीं, लैंडर  रोवर चांद पर एक दिन (पृथ्वी के 14 दिन के बराबर) कार्य करेंगे. लैंडर यह जांचेगा कि चांद पर भूकंप आते हैं या नहीं. जबकि, रोवर चांद की सतह पर खनिज तत्वों की मौजूदगी का पता लगाएगा.

इसरो चंद्रयान-2 को पहले अक्टूबर 2018 में लॉन्च करने वाला था. बाद में इसकी तारीख बढ़ाकर 3 जनवरी  फिर 31 जनवरी कर दी गई. बाद में अन्य कारणों से इसे 15 जुलाई तक टाल दिया गया. इस दौरान बदलावों की वजह से चंद्रयान-2 का वजन भी पहले से बढ़ गया. ऐसे में जीएसएलवी मार्क-3 में भी कुछ परिवर्तन किए गए थे.