होम्योपैथी की इन दवाओ से दूर होते है ये 28 रोग, जानिए ऐसे

होम्योपैथी पद्धति की एक अन्य शाखा है बायोकैमिक दवाएं. इनमें प्रमुख 12 दवाएं होती हैं जिनके कुल 28 कॉम्बिनेशन तैयार किए जाते हैं. इन कॉम्बिनेशन दवाओं को प्रमुख 28 रोगों में लक्षणानुसार दिया जाता है. इस पद्धति में खट्टी चीजें खाने की मनाही नहीं होती लेकिन रोग कैसा है इसके आधार पर इन चीजों से परहेज कराया जाता है.

होम्योपैथी में किसी भी रोग के इलाज के बाद भी यदि मरीज अच्छा नहीं होता है तो इसकी वजह रोग का मुख्य कारण सामने न आना भी होने कि सम्भावना है. इसके अतिरिक्त मरीज द्वारा रोग के बारे में ठीक जानकारी न देना उचित दवा के चयन में बाधा पैदा करती है जिससे समस्या का निवारण पूर्ण रूप से नहीं हो पाता.

ऐसे में मरीज को उस दवा से कुछ समय तक के लिए तो राहत मिल जाती है लेकिन बाद में यह दवा शरीर पर दुष्प्रभाव छोड़ने लगती है. इस लापरवाही से आमतौर पर होने वाले रोगों का उपचार शुरुआती अवस्था में नहीं हो पाता  वे क्रॉनिक रूप ले लेते हैं और असाध्य रोग बन जाते हैं.

मरीज को चाहिए कि वह चिकित्सक को रोग की हिस्ट्री, अपना स्वभाव  आदतों के बारे में पूर्ण रूप से बताए ताकि एक्यूट (अचानक होने वाले रोग जैसे खांसी, बुखार) रोग क्रॉनिक (लंबे समय तक चलने वाले रोग जैसे अस्थमा, टीबी) न बने.

चिकित्सकों के अनुसार, अधिकांश मामलों में एलोपैथी रोगों को दबाकर तुरंत राहत देती है लेकिन होम्योपैथी मर्ज को समझ कर उसकी जड़ को समाप्त करती है. आमतौर पर होने वाली परेशानियों को छोटी बीमारी समझकर नजरअंदाज न करें क्यों कि एक रोग दूसरी बीमारी का कारण बन सकता है. जानते हैं इनके बारे में.

इंडियन और जर्मन दवा दोनों ही देतीं राहत –
जर्मन दवाओं को बनाने से लेकर पैकेजिंग तक का कार्य मशीन से होता है जबकि हिंदुस्तान में मशीन के साथ-साथ दवा को मैन्युअली भी बनाते हैं. मरीज को राहत दोनों ही तरह की दवाइयों से मिलती है. मरीज इनकी पहचान दवा के पैकेट पर लिखे नाम से कर सकते हैं.

बुखार –
यह शरीर का नेचुरल प्यूरिफायर है जिससे शरीर में उपस्थित विषैले तत्त्व बाहर निकलते हैं. 102 डिग्री तक के बुखार को ठंडी पट्टी रखकर, आराम करके या खाने में परहेज कर अच्छाकर सकते हैं लेकिन उचित दवा न लेने से कठिनाई बढ़कर असाध्य रोगों को जन्म देती हैं. जैसे बच्चों में इसके लिए ठीक दवा न दी जाए तो निमोनिया, सांस संबंधी परेशानियों हो सकती हैं. इसके अतिरिक्त कई बार दिमाग में बुखार के पहुंचने से बच्चे को भ्रमण भी आ सकते हैं.
इलाज-
डॉक्टर को सभी लक्षण पूर्ण रूप से बताएं ताकि वे उसी आधार पर ठीक दवा का चयन कर रोग को शुरुआती स्टेज में ही दूर कर सके. आर्सेनिक (हल्के बुखार के साथ पानी की प्यास ज्यादा और पसीना आने पर), एकोनाइट (तेज बुखार के साथ पानी की प्यास, शरीर में सूखापन), बेलाडोना (तेज बुखार के कारण चेहरा लाल और सिरदर्द), चाइना (गैस बनने और पेट बेकार होकर बुखार) आदि दवा से उपचार करते हैं.

एसिडिटी –
समस्या के लंबे समय तक बने रहने से शरीर में एसिड इकट्ठा होता जाता है जो पेट या किडनी में पथरी, हृदयाघात, दिल की धमनियों में ब्लॉकेज, कोलेस्ट्रॉल, कमरदर्द, पाइल्स औरफिशर जैसी परेशानियों को जन्म देता है. जोड़ों के गैप में एसिड के जाने से अर्थराइटिस भी होने कि सम्भावना है. दिमाग में एसिड के जाने से बढऩे वाला बीपी पैरालिसिस की वजह बनता है.

इलाज : शुरुआती स्टेज में मरीज को कार्बोवेज (खट्टी डकारें आना), कालीकार्ब, फॉस्फोरस (कुछ भी खाते ही उल्टी), अर्सेनिक (पेट में जलन के बाद बार-बार पानी पीने की इच्छा) आदि दवाएं देते हैं.

जुकाम –
अस्थमा, एलर्जी राइनाइटिस, एलोपेसिया (बाल झडऩा), कम आयु में बाल सफेद होना, आंखें निर्बल होना, मानसिक विकार जैसे तनाव, डिप्रेशन, स्वभाव में बदलाव, गुस्सा आना, क्रोनिक ब्रॉन्काइटिस के अतिरिक्त कार्डियक अस्थमा की मूल वजह जुकाम होने कि सम्भावना है. सर्वाइकल स्पोंडिलाइसिस भी जुकाम से होता है क्योंकि इस दौरान बलगम दिमाग की नसों में जमता रहता है जिससे गर्दन और दिमाग के आसपास के भाग पर दबाव बढ़ता जाता है.

इलाज – : जुकाम शरीर से गंदगी बाहर निकालता है  यह कुछ समय में खुद ही ठीक हो जाता है. लेकिन आराम न हो या समस्या कुछ समय के अंतराल में बार-बार प्रभावित करे तो आर्सेनिक (पानी की प्यास के साथ जुकाम), एकोनाइट, बेलाडोना, यूफे्रशिया (जुकाम के साथ आंखें लाल रहना), एलियम सेपा (जुकाम में जलन के साथ नाक बहना), ट्यूबरकुलिनम (जुकाम के साथ गर्मी लगना या भूख ज्यादा) दवाएं देते हैं.

सिरदर्द –
यह आम रोग है जिसमें मरीज कई बार मनमर्जी से दवा ले लेता है. ऐसे में दवा लंबे समय तक राहत नहीं देती  पेट की कठिनाई और माइग्रेन की संभावना को बढ़ाती है. यदि इसका उपचार उचित दवा से न हो तो दिमाग की कार्यक्षमता प्रभावित होने लगती है जिससे हार्मोन्स के स्त्रावण में गड़बड़ी आती है जिससे थायरॉइड, महिला संबंधी समस्याएं जन्म लेती हैं.
इलाज : बेलाडोना, सेंग्युनेरिया (माइग्रेन), नेट्रम म्यूर (विशेषकर स्त्रियों में सिरदर्द), ग्लोनाइन (धूप के कारण सिरदर्द) आदि इस बीमारी को अच्छा करते हैं.

कब्ज :

आमतौर पर इस समस्या में हम घरेलू तरीका अपनाते हैं जो लिवर और पेन्क्रियाज की कार्यप्रणाली को प्रभावित करते हैं. यह डायबिटीज  आंतों, लिवर और पेट के कैंसर का कारण बनता है. लंबे समय तक कब्ज से पेन्क्रियाज और लिवर पर दबाव बढ़ने से इंसुलिन बनने की क्षमता निर्बल हो जाती है.

इलाज : फॉस्फोरस (कुछ भी खाते ही उल्टी), चिलिडोनियम (लिवर के पीछे के भाग में दर्द)देते हैं.