शुरुआती समय में धीरूभाई अंबानी को अपना परिवार चलाने के लिए जूनागढ़ में भजिया बेचना पड़ा था। लेकिन उनका ये कार्य कुछ खास नहीं चला व इसके बाद उन्हें यह कार्य छोड़ना पड़ा। फिर उनके पिता ने जॉब करने के सलाह दी। इसके बाद धीरूभाई अंबानी ने अपने पिता की बात मानी व फिर वो अपने बड़े भाई के पास यमन पहुंचे व जहां पर उन्होंने पेट्रोल पंप पर 300 रुपए की सैलरी पर कार्य किया। वर्ष 1950 के समय यमन में आजादी की लड़ाई छिड़ गई व इसलिए धीरूभाई अंबानी वापस हिंदुस्तान लौट आए। इसके बाद हिंदुस्तान आकर उन्होंने अपने चचेरे भाई चंपकलाल दमानी के साथ मिलकर मसालों व पॉलिएस्टर धागे का कारोबार प्रारम्भ किया।
उन्होंने इसका नाम रिलायंस कमर्शियल कारपोरेशन रखा व यही पहला कदम था, जहां से रिलायंस के अस्तित्व के आरंभ हुई। धीरूभाई अंबानी के अंदर बिजनेस चलाने की कला कूट-कूटकर भरी थी। वर्ष 2002 में 6 जुलाई को उन्होंने संसार को अलविदा कह दिया था।