सुखी ज़िंदगी व सफलता पाने के लिये अपने जीवन में अपनाए सुंदरकांड के यह सूत्र

 श्रीरामचरित मानस का पांचवां अध्याय है सुंदरकांड. इस अध्याय में सुखी ज़िंदगी  सफलता पाने के कई सूत्र छिपे हैं. इस काण्ड में हनुमानजी ने बताया है कि सफलता कैसे मिलती है? सुंदरकांड के अनुसार हनुमानजी लंका पहुंच गए  रावण के कई योद्धाओं को मार दिया. अंत में मेघनाद ने हनुमानजी को बंधकबना लिया.रावण के दरबार में हनुमानजी को बंदी बनाकर पेश किया गया. रावण ने हनुमानजी को सजा देने के लिए उनकी पूंछ में आग लगाने का आदेश दे दिया.


इस विषय में श्रीरामचरित मानस में लिखा है कि-
जिन्ह कै कीन्हिसि बहुत बड़ाई. देखउं मैं तिन्ह कै प्रभुताई.
जिनकी इसने बहुत बढ़ाई की है, मैं जरा उनकी प्रभुता तो देखूं.

> दरबार में रावण  हनुमानजी डर  निर्भयता की स्थिति में खड़े हुए हैं. रावण बार-बार इसीलिए हंसता है, क्योंकि वह अपना डर छिपाना चाहता है.
> उसने बोला कि मैं इस वानर के मालिक की ताकत देखना चाहता हूं. श्रीराम की सामर्थ्य देखने के पीछे उसे अपनी मौत दिख रही थी, जबकि हनुमानजी मौत के डर से मुक्त थे.
> रावण का चित्त अशांत था, जबकि हनुमानजी शांत चित्त से बोल भी रहे थे  आगे की योजना भी बना रहे थे. हमें ज़िंदगी में जब भी कोई विशेष कार्य करना हो तो निर्भयता से कार्यलेना चाहिए  मन को शांत बनाए रखना चाहिए. जब हनुमानजी की पूंछ में आग लगा दी गई तो उन्होंने पूरी लंका को जला दिया  सकुशल श्रीराम के पास लौट आए. श्रीराम को बताया कि माता सीता रावण की लंका में है.