विधान सभा चुनाव में जीत हासिल करने के लिए शुरू हुइ ये तैयारी , शिवसेना की भी हो सकती एंट्री

इस हिसाब से भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती सपा-बसपा हुईं,लेकिन भारतीय जनता पार्टी के नेता सपा-बसपा से अधिक आम आदमी(आप) पार्टी और कांगे्रस पर आक्रमक हैं.

आप और कांगे्रस के नेताओं के छोटे से छोटे बयान पर भी भाजपा नेता पूरी गंभीरता के साथ तीखी प्रतिक्रिया देने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं,जबकि सपा और बसपा को अनदेखा किया जाता है.

भाजपा नेताओं के ‘आप’ को लेकर दिए जाने वाले बयानों से तो यही लगता है कि यूपी में आम आदमी पार्टी और कांगे्रस की लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही हैं,वहीं सपा-बसपा अपना जनाधार खोते जा रहे हैं,लेकिन यह सिक्के का एक पहलू है. भारतीय जनता पार्टी रणनीतिक तौर पर आम और कांगे्रस के खिलाफ ज्यादा आक्रमक रूख अपनाए हुए हैं .

ताकि मतदाता भ्रम में फंसा रहे कि भाजपा को हराने के लिए किसको वोट किया जाए. मतदाता भ्रमित रहेगा तो गैर भाजपाई वोटों में बंटवारा होगा और इस प्रकार भारतीय जनता पार्टी के लिए उत्तर प्रदेश में ‘कमल’ खिलाना आसान हो जाएगा. वैसे भी भारतीय जनता पार्टी को बहुकोणीय मुकाबला काफी रास आता है.

यानी लड़ाई बीजेपी बनाम अन्य की होगी. देखना अच्छा लगेगा कि कौन सा दल कितना योगी सरकार को चुनौती दे पाएगा. वैसे आज की तारीख में 2017 के विधान सभा चुनाव में मिले वोट प्रतिशत के हिसाब भाजपा नंबर एक की और समाजवादी पार्टी नंबर दो एवं बहुजन समाज पार्टी तीसरे नंबर पर है.

कांगे्रस चैथे नंबर की पार्टी बनकर रह गई है. बात अगर वोट शेयर की करें तो 2017 के विधान सभा चुनाव में बीजेपी को करीब 40 प्रतिशत वोटरों का समाजवादी पार्टी-कांगे्रस गठबंधन को 28 प्रतिशत और बसपा को 22 प्रतिशत वोट मिले थे. सपा-कांगे्रस गठबंधन में अलग-अलग वोटों की बात की जाए तो सपा को 22 प्रतिशत और कांग्रेस को करीब 6 प्रतिशत वोट मिले थे.

उत्तर प्रदेश में होने वाले पंचायत चुनाव में शिवसेना की भी इंट्री हो सकती है. आम आदमी पार्टी के बाद शिवसेना का भी यूपी की सियासत में रूचि दिखाने के चलते इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि उत्तर प्रदेश की चुनावी सियासत बहुकोणीय होती जा रही है.

शिवसेना ने पंचायत चुनाव लड़ने की बात कही है. इन दो दलों के अलावा औवेसी भी उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव को लेकर ताल ठोंक रहे हैं. ऑल इंडिया मजलिसे इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) नेता असदुद्दीन ओवैसी ने कुछ दिनों पूर्व लखनऊ आकर यूपी विधान सभा चुनाव लड़ने की संभावनाएं तलाश गए थे.

ओवैसी सपा-बसपा और कांग्रेस से अलग चुनाव मोर्चा बनाए के संकेत दे रहे हैं,जिसमें कई छोटे-छोटे दलों को शामिल किया जा सकता है. खास बात यह है कि सभी दलों के मुखिया सबसे अधिक निशाना भारतीय जनता पार्टी और योगी सरकार पर साध रहे हैं.