विदेशी मुद्रा बाजार में बीतों दिनों का हाल

विदेशी मुद्रा बाजार (Forex Market) में डॉलर (dollar) के मुकाबले रुपया (Rupee) शुक्रवार को करीब 7 पैसे की मजबती के साथ 71 रुपये के स्तर पर खुला। गुरुवार को रुपया (Rupee) मजबूत हुआ था और यह 27 पैसे बढ़कर 71.07 के स्तर पर बंद हुआ।

-गुरुवार को रुपया (Rupee) 27 पैसे बढ़कर 71.07 के स्तर पर बंद हुआ।

-बुधवार को रुपया (Rupee) 10 पैसे की बढ़त के साथ 71.34 के स्तर पर बंद हुआ।

-मंगलवार को रुपया (Rupee) 16 पैसे घटकर 71.44 के स्तर पर बंद हुआ।

-रुपया (Rupee) सोमवार को 10 पैसे कमजोर होकर 71.28 के स्तर पर बंद हुआ है।

-शुक्रवार को रुपया (Rupee) 14 पैसे कमजोर होकर 71.18 के स्तर पर बंद हुआ है।

-रुपये गुरुवार को 20 पैसे बढ़कर 71.05 के स्तर पर बंद हुआ है।

-रुपया (Rupee) बुधवार को 20 पैसे टूटकर 71.24 के स्तर पर बंद हुआ।

-रुपया (Rupee) मंगलवार को 11 पैसे टूटकर 71.04 के स्तर पर बंद हुआ।

-रुपया (Rupee) सोमवार को 43 पैसे टूटकर 70.93 के स्तर पर बंद हुआ।

आजादी के समय रुपये का स्तर

एक जमाना था जब विदेशी मुद्रा बाजार (Forex Market) में रुपया (Rupee) डॉलर (dollar) को जबरदस्त टक्कर दिया करता था। जब भारत 1947 में आजाद हुआ तो डॉलर (dollar) और रुपये का दाम बराबर का था। मतलब एक डॉलर (dollar) बराबर एक रुपया (Rupee) था। तब देश पर कोई कर्ज भी नहीं था। फिर जब 1951 में पहली पंचवर्षीय योजना लागू हुई तो सरकार ने विदेशों से कर्ज लेना शुरू किया और फिर रुपये की साख भी लगातार कम होने लगी। 1975 तक आते-आते तो एक डॉलर (dollar) की कीमत 8 रुपये हो गई और 1985 में डॉलर (dollar) का भाव हो गया 12 रुपये। 1991 में नरसिम्हा राव के शासनकाल में भारत ने उदारीकरण की राह पकड़ी और रुपया (Rupee) भी धड़ाम गिरने लगा।

क्यों होता है रुपया (Rupee) कमजोर या मजबूत

रुपये की कीमत पूरी तरह इसकी मांग एवं आपूर्ति पर निर्भर करती है। इस पर आयात एवं निर्यात का भी असर पड़ता है। दरअसल हर देश के पास दूसरे देशों की मुद्रा का भंडार होता है, जिससे वे लेनदेन यानी सौदा (आयात-निर्यात) करते हैं। इसे विदेशी मुद्रा भंडार कहते हैं। समय-समय पर इसके आंकड़े रिजर्व बैंक की तरफ से जारी होते हैं। विदेशी मुद्रा भंडार के घटने और बढ़ने से ही उस देश की मुद्रा पर असर पड़ता है। अमेरिकी डॉलर (dollar) को वैश्विक करेंसी का रुतबा हासिल है। इसका मतलब है कि निर्यात की जाने वाली ज्यादातर चीजों का मूल्य डॉलर (dollar) में चुकाया जाता है। यही वजह है कि डॉलर (dollar) के मुकाबले रुपये की कीमत से पता चलता है कि भारतीय मुद्रा मजबूत है या कमजोर। अमेरिकी डॉलर (dollar) को वैश्विक करेंसी इसलिए माना जाता है, क्योंकि दुनिया के अधिकतर देश अंतर्राष्ट्रीय कारोबार में इसी का प्रयोग करते हैं। यह अधिकतर जगह पर आसानी से स्वीकार्य है। यह सब चीजें विदेशी मुद्रा बाजार (Forex Market) तय करता है।