वर्तमान समय में जलवायु बदलाव से सारे दुनिया के सामने बनकर खड़ा हुआ…

वर्तमान समय में जलवायु बदलाव सारे दुनिया के सामने बड़ा संकट बनकर खड़ा है. वन, जीव, ग्लेशियर ही नहीं राष्ट्रों की अर्थव्यवस्था पर भी यह गहरा प्रभाव डाल रहा है. कैंब्रिज विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक अध्ययन के मुताबिक समस्या से निपटने के लिए समय रहते यदि अच्छा कदम नहीं उठाए गए तो वर्ष 2100 तक हिंदुस्तान अपनी अर्थव्यवस्था का 10 फीसद खो देगा. अध्ययन में यह भी बोला गया है कि अगर पेरिस समझौता ठीक तरीका से लागू नहीं होता है तो लगभग सभी देश चाहे वे धनी हों या गरीब, उष्ण हों या शीत सभी आर्थिक रूप से प्रभावित होंगे.

ठंडे राष्ट्रों को भी होगा नुकासन

कुछ लोगों का अनुमान है कि जलवायु बदलाव से गरीब  अधिक तापमान वाले राष्ट्रों की तुलना में ठंडे और अमीर देश इससे अप्रभावित रहेंगे. लेकिन नेशनल ब्यूरो ऑफ इकोनॉमिक रिसर्च द्वारा प्रकाशित अध्ययन से पता चलता है कि औसतन, अमीर, ठंडे देश भी उतनी ही आमदनी खो देंगे जितनी कि गरीब  गर्म देश.

अमेरिका को भी बड़ा नुकसान

पेरिस समझौते से बाहर हो चुके अमेरिका का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वर्ष 2100 तक 10.5 फीसद कम हो जाएगा, जो कि पर्याप्त रूप से नुकसानदायक होने कि सम्भावना है.वहीं कनाडा जो दावा करता है कि वह तापमान में वृद्धि से आर्थिक रूप से लाभान्वित होगा, वह भी वर्ष 2100 तक अपनी मौजूदा आय का 13 फीसद से अधिक खो देगा.

इन राष्ट्रों को भी खतरा

शोधकर्ताओं के मुताबिक, जापान  न्यूजीलैंड भी अपनी अर्थव्यवस्था का 10 फीसद खो देंगे. वहीं स्विट्जरलैंड, रूस  ब्रिटेन अपनी कुल जीडीपी का क्रमश: 12 फीसद, 9 फीसद  4 फीसद खो देंगे. शोध से पता चलता है कि अगर कुछ भी नहीं किया गया तो वैश्विक नुकसान 7 फीस होगा.

क्या है जलवायु परिवर्तन?

औद्योगिक क्रांति के बाद भूमि का औसत तापमान वर्ष दर वर्ष बढ़ रहा है. आइपीसीसी की रिपोर्ट ने इससे पहली बार आगाह किया था. अब इसके दुष्परिणाम भी सामने आने लगे हैं.गर्मियां लंबी होती जा रही हैं  सर्दियां छोटी. पूरी संसार में ऐसा हो रहा है. प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति  प्रवृत्ति बढ़ चुकी है.ऐसा ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन की वजह से हो रहा है.

क्या है पेरिस समझौता?

जलवायु बदलाव से निपटने के लिए पेरिस में 191 राष्ट्रों के बीच हुए इस समझौते का मकसद हानिकारक गैसों का उत्सर्जन कम कर दुनियाभर में बढ़ रहे तापमान को रोकना है. इस समझौते में प्रावधान है वैश्विक तापमान को दो डिग्री सेल्सियस से नीचे रखना  प्रयास करना कि वो 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक न बढ़े. हिंदुस्तान ने भी इस समझौते को अपनी मंजूरी दे दी है. संसार भर के कॉर्बन उत्सर्जन का लगभग सात फ़ीसद हिंदुस्तान उत्सर्जित करता है.