राहुल गांधी के केरल में वायनाड लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने का किया एलान

 कांग्रेस ने रविवार को पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी के केरल में वायनाड लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने की घोषणा की। राहुल अभी अमेठी से सांसद हैं और वह इस सीट से भी चुनाव लड़ेंगे। कांग्रेस की सुरक्षित सीट मानी जाने वाली वायनाड से राहुल अगले कुछ दिनों में नामांकन भर सकते हैं। असल में राहुल गांधी द‌क्षिण भारत की किसी सीट पर चुनाव लड़ने वाले गांधी परिवार के पहले शख्‍स नहीं हैं। इससे पहले इंदिरा गांधी और सोनिया गांधी भी दक्षिण भारत से चुनाव लड़ चुके हैं।


दक्षिण भारत में गांधी परिवार का इतिहास
गांधी परिवार का दक्षिण भारत से चुनाव लड़ने का इतिहास रहा है। 1978 में इंदिरा गांधी ने कर्नाटक के चिकमंगलूर में उप चुनाव में जीत हासिल कर अपनी वापसी का संकेत दिया था। जब इंदिरा गांधी 1980 में कांग्रेस को दोबारा सत्ता में लाने में सफल हुई थीं, तब उन्होंने आंध्र प्रदेश में मेडक और उत्तर प्रदेश में रायबरेली की सीटें जीती थीं। 1999 के चुनाव में सोनिया गांधी ने कर्नाटक के बेल्लारी में बीजेपी की सुषमा स्वराज को हराने के साथ ही अमेठी सीट भी जीती थी। हालांकि, सोनिया ने बाद में बेल्लारी से त्यागपत्र दे दिया था।

कांग्रेस के लिए ‘संजीवनी” है दक्षिण

आपातकाल के वक्त 1977 के आम चुनावों में कांग्रेस की हालत ख़राब थी। उस दौरान खुद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी रायबरेली सीट पर समाजवादी नेता राज नारायण से हार गई थीं। माना जाने लगा था कि कांग्रेस का सूरज अस्त हो गया। लेकिन साल 1978 में कर्नाटक की चिकमंगलूर सीट पर उपचुनावों की घोषणा हुई। इंदिरा गांधी ने कांग्रेस को फिर से जिंदा करने के इस मौके को जाने नहीं दिया। उन्होंने उपचुनाव लड़ा और जीत गईं। यही से एक धारा चली वो ना केवल संसद पहुंचीं। बल्कि साल 1980 के आम चुनाव में कांग्रेस फिर सत्ता में आ गई। इंदिरा गांधी की कांग्रेस ने पूरी तरह से वापसी कर ली।
साल 1977 में कांग्रेस की हुई बुरी हालत को चिकमंगलूर ने उबार लिया. लेकिन साल 1998 में फिर कांग्रेस लड़खड़ा गई। राजीव गांधी की हत्या हो चुकी थी। कांग्रेस नेता की कमी से गुजर रही थी। सोनिया ने पहले मना किया फिर पार्टी की अध्यक्ष बनीं। लेकिन तब बीजेपी की तेज तर्रार नेत्री सुषमा स्वराज ने उनका पुरजोर विरोध किया।

साल 1999 के आम चुनाव में कांग्रेस ने सोनिया गांधी को दो सीटों से मैदान में उतारा। पहली सीट उत्तर प्रदेश की रायबरेली थी और दूसरी थी कर्नाटक की बेल्लारी। यहां चुनाव से पहले सुषमा स्वराज ने महज 30 दिनों के भीतर कन्नड़ सीख डाली। उन्होंने अपनी कई जनसभाओं को कन्नड़ में संबोधित करना शुरू किया। उस दौरान वहां मुद्दा घर की बेटी और विदेशी बहू का बनाया गया।

सोनिया ने सुषमा को दी थी 56,000 वोटों से मात
चुनाव में सोनिया गांधी ने सुषमा को बेल्लारी में 56,000 वोटों से हरा दिया। हालांकि तब कांग्रेस चुनाव जीत नहीं पाई थी। बल्कि इस चुनाव से सुषमा स्वराज को फायदा मिला. बीजेपी की सरकार आई और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में उन्हें सूचना एवं प्रसारण मंत्री और फिर स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई।
लेकिन सोनिया गांधी की बेल्लारी की जीत ही वह बल थी ‌जिसके दम पर सोनिया गांधी ने खुद को भारतीय राजनीति में स्‍थापित किया। इतना ही नहीं साल 2004 में सोनिया गांधी के नेतृत्व में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) ने देश में सरकार बनाने में सफलता हासिल की। उस वक्त सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री बनने की बहुत उम्मीद थी। लेकिन सुषमा स्वराज ने कहा था- अगर सोनिया गांधी देश की प्रधानमंत्री बनीं तो मैं अपना सिर गंजा करवा सफेद साड़ी पहनूंगी, सूखे चने खाऊंगी। हालांकि सोनिया ने अपनी अंतरात्मा की आवाज का हवाला देते हुए मनमोहन सिंह को पीएम बनाया था।

क्या राहुल जीत कर परंपरा कायम रखेंगे?

अपनी दादी और मम्मी के बाद अब राहुल गांधी ने भी दक्षित का रख किया है। वायनाड जाकर चुनाव लड़ने की उनकी राजनीति को ऐतिहासिक पहलू से देखें तो यह मोदी राज में डूबती कांग्रेस को फिर से उबारने के एक आजमाया हुआ नुस्‍खा है। वायनाड को केरल में कांग्रेस के दबदबे वाला क्षेत्र माना जाता है। 2009 और 2014 में यह सीट एम आई शाहनवाज ने एक लाख मतों से अधिक के अंतर से जीती थी। वायनाड के राजनीतिक और सामाजिक समीकरण इसे कांग्रेस के लिए सुरक्षित सीट बनाने में मददगार हैं।