राष्ट्रपति बनने के बाद बाइडेन का पहला कदम, जाने भारत पर क्या होगा असर

पिछले 20 सालों में दोस्ती की राह पर दोनों देशों का सफर दोनों के लिए फायदेमंद रहा है. इस बात का आभास अब दोनों पक्षों को है कि अभी के हालात में दोनों को एक दूसरे की जरुरत है सामरिक, कूटनीतिक और आर्थिक तीनों दृष्टि से.

 

ट्रंप के शासनकाल में भारत ने अमेरिका से कई बड़े बड़े रक्षा सौदे किए. दोनों में प्रतिरक्षा सहयोग भी अब व्यापक स्तर पर हो रहा है. चीन के साथ भारत की तनातनी के दौरान अमेरिका ने भारत को चीन की सेना और हथियारों की तैनाती से सम्बंधित कई महत्वपूर्ण जानकारियां दीं. यह सहयोग भविष्य में भी जारी रहेगा, बल्कि और मजबूत होगा ऐसा संभव है.

वर्चस्व के लिए चीन के साथ अमेरिका का कॉम्पिटिशन जारी रहेगा लेकिन डोनाल्ड ट्रंप कार्यकाल के विपरीत बाइडेन प्रशासन चीन के साथ बातचीत की नीति अपना सकता है ताकि अपने मित्र देशों के समर्थन से चीन पर दबाव बनाया जा सके. ऐसे में एक बड़ा सवाल खड़ा होता है कि क्या अमेरिका चीन के साथ लेन-देन का रुख अख्तियार करेगा? अगर ऐसा होता है तो शायद यह भारत को नागवार गुजरेगा.

पाकिस्तान से फैलने वाले आतंकवाद पर लगाम कसने के लिए भी अमेरिकी प्रयास चलते रहेंगे, यह भी पक्का है. हालांकि यहां यह बताना जरुरी है कि पिछले चार साल में अलग-थलग पड़ने के बाद पाकिस्तान अब पूरी तरह चीन के काबू में है. इसलिए, अमेरिका के प्रयास कितना रंग लाएंगे यह कहना मुश्किल है.

भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है. चीन और जापान के बाद एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और वर्तमान परिस्थितियों में चीन के सामने अडिग खड़ा रह सकने वाली ताकतवर देश भी है. अमेरिका में भारत को लेकर दोनों राजनीतिक दलों, डेमोक्रेट्स और रिपब्लिकन्स, में आम सहमति है कि दोनों देशों के रिश्ते और मजबूत होने चाहिए. इसलिए यह विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि मुक्त और इंडो पैसिफिक को सुनिश्चित करने के लिए अमेरिका का समर्थन जारी रहेगा.

जो बाइडेन को अमेरिकी शासनतंत्र में भारत का मित्र माना जाता है. जब वे सीनेट में डेमोक्रैट सांसद थे तब विदेशी मामलों की समिति में 2006 से 08 के बीच उन्होंने भारत-अमेरिका सिविल न्यूक्लियर डील के पास होने में बड़ी भूमिका निभाई थी. पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के दोनों टर्म में बाइडन उनके डिप्टी उपराष्ट्रपति थे. इस दौरान भी भारत के साथ रिश्तों में उनकी भूमिका रचनात्मक रही थी.

जो बाइडेन (Joe Biden) एक मुश्किल समय में दुनिया की अकेली महाशक्ति के सबसे बड़े नेता की जिम्मेदारी संभालने जा रहे हैं. दुनिया का सबसे ताकतवर देश इस वक्त कोरोना वायरस की मार से बेहाल है.

अमेरिकी अर्थव्यवस्था भी भारी मंदी और बेरोजगारी से जूझ रही है. ऐसे में अमेरिका के 46वें राष्ट्रपति बनने के बाद बाइडेन का भारत के साथ रिश्तों पर क्या नजरिया और नीतियां होंगी इस पर गौर करना जरुरी है.

राष्ट्रपति ट्रंप की अंतर्मुखी और यकायक बदलती नीतियों के चलते दुनिया भर में अमेरिका के मित्र देश उससे अलग-थलग पड़ गए हैं, हालांकि भारत का शुमार उन देशों में नहीं होता है.

चीन लगातार दुनिया में अमेरिका की लीडरशिप को चुनौती दे रहा है, चाहे वह आर्थिक विषयों में हो या कूटनीतिक भौगोलिक मामलों में. ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि बाइडेन एक बड़ी विकट परिस्थितियों में अमेरिका की बागडोर थामेंगे, और उनकी कोशिश होगी कि अपने देश को वो फिर से दुनिया के नेतृत्व के लिए तैयार करें.