रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु के बाद उनके बेटे ने जिया ऐसा जीवन

रानी लक्ष्मीबाई ने 18 जून 1858 को अंग्रेज़ी फौज के विरूद्ध प्रयत्न करते हुए बलिदान दिया था रानी लक्ष्मीबाई के ज़िंदगी पर कुछ प्रसिद्ध हिंदी फिल्में भी बन चुकी हैं  कई नाटक भी खेले जा चुके हैं लेकिन एक सवाल लोगों के मन में अक्सर उठता है कि उनकी ऐतिहासिक वीरगति के बाद उनके बेटे दामोदर राव का क्या हुआ? यहां पढ़ें इस सवाल का जवाब –

 सुभद्रा कुमारी चौहान की लिखी इन पंक्तियों के साथ ही हमारे लिए लक्ष्मीबाई नेवलकर (झांसी की रानी का पूरा नाम) की कहानी समाप्त हो जाती हैं झांसी के अंतिम प्रयत्न में महारानी की पीठ पर बंधा उनका बेटा दामोदर राव (असली नाम आनंद राव) सबको याद है रानी की चिता जल जाने के बाद उस बेटे का क्या हुआ? वो कोई कहानी का भूमिका भर नहीं था, 1857 के विद्रोह की सबसे जरूरी कहानी को जीने वाला राजकुमार था जिसने उसी अधीन हिंदुस्तान में जिंदगी काटी, जहां उसे भुलाकर उसकी मां के नाम की कसमें खाई जा रही थी

अंग्रेजों ने दामोदर राव को कभी झांसी का वारिस नहीं माना था, सो उसे सरकारी दस्तावेजों में कोई स्थान नहीं मिली थी ज्यादातर भारतीयों ने सुभद्रा कुमारी चौहान के कुछ सही, कुछ गलत आलंकारिक वर्णन को ही इतिहास मानकर इतिश्री कर ली 1959 में छपी वाई एन केलकर की मराठी किताब ‘इतिहासाच्य सहली’ (इतिहास की सैर) में दामोदर राव का इकलौता वर्णन छपा महारानी की मौत के बाद दामोदार राव ने एक तरह से अभिशप्त ज़िंदगी जिया उनकी इस बदहाली के जिम्मेदार सिर्फ फिरंगी ही नहीं भारत के लोग भी बराबरी से थे केलकर की किताब के हवाले से दामोदर राव की ज़बानी ये है कहानी

15 नवंबर 1849 को नेवलकर राजपरिवार की एक शाखा में मैं पैदा हुआ ज्योतिषी ने बताया कि मेरी कुंडली में राज योग है  मैं राजा बनूंगा ये बात मेरी जिंदगी में सबसे दुर्भाग्यपूर्ण तरीका से हकीकत हुई तीन वर्ष की आयु में महाराज ने मुझे गोद ले लिया गोद लेने की औपचारिक स्वीकृति आने से पहले ही पिताजी नहीं रहे

मां साहेब (महारानी लक्ष्मीबाई) ने कलकत्ता में लॉर्ड डलहॉजी को संदेश भेजा कि मुझे वारिस मान लिया जाए मगर ऐसा नहीं हुआ

डलहॉजी ने आदेश दिया कि झांसी को ब्रिटिश राज में मिला लिया जाएगा मां साहेब को 5,000 सालाना पेंशन दी जाएगी इसके साथ ही महाराज की सारी सम्पत्ति भी मां साहेब के पास रहेगी मां साहेब के बाद मेरा पूरा हक उनके खजाने पर होगा मगर मुझे झांसी का राज नहीं मिलेगा इसके अतिरिक्त अंग्रेजों के खजाने में पिताजी के सात लाख रुपए भी जमा थेफिरंगियों ने बोला कि मेरे बालिग होने पर वो पैसा मुझे दे दिया जाएगा

मां साहेब को ग्वालियर की लड़ाई में वीरगति मिली मेरे सेवकों (रामचंद्र राओ देशमुख  काशी बाई)  बाकी लोगों ने बाद में मुझे बताया कि मां ने मुझे पूरी लड़ाई में अपनी पीठ पर बैठा रखा था मुझे खुद ये अच्छा से याद नहीं इस लड़ाई के बाद हमारे कुल 60 विश्वासपात्र ही जिंदा बच पाए थे

नन्हें खान रिसालेदार, गनपत राओ, रघुनाथ सिंह  रामचंद्र राओ देशमुख ने मेरी जिम्मेदारी उठाई 22 घोड़े  60 ऊंटों के साथ बुंदेलखंड के चंदेरी की तरफ चल पड़े हमारे पास खाने, पकाने  रहने के लिए कुछ नहीं था किसी भी गांव में हमें शरण नहीं मिली मई-जून की गर्मी में हम पेड़ों तले खुले आसमान के नीचे रात बिताते रहे शुक्र था कि जंगल के फलों के चलते कभी भूखे सोने की नौबत नहीं आई

असल परेशानी बारिश प्रारम्भ होने के साथ प्रारम्भ हुई घने जंगल में तेज मानसून में रहना असंभव हो गया किसी तरह एक गांव के मुखिया ने हमें खाना देने की बात मान ली रघुनाथ राव की सलाह पर हम 10-10 की टुकड़ियों में बंटकर रहने लगे मुखिया ने एक महीने के राशन  ब्रिटिश सेना को समाचार न करने की मूल्य 500 रुपए, 9 घोड़े  चार ऊंट तय की हम जिस स्थान पर रहे वो किसी झरने के पास थी  खूबसूरत थी

देखते-देखते दो वर्ष निकल गए ग्वालियर छोड़ते समय हमारे पास 60,000 रुपए थे, जो अब पूरी तरह समाप्त हो गए थे मेरी तबियत इतनी बेकार हो गई कि सबको लगा कि मैं नहीं बचूंगामेरे लोग मुखिया से गिड़गिड़ाए कि वो किसी वैद्य का बंदोवस्त करें

मेरा उपचार तो हो गया मगर हमें बिना पैसे के वहां रहने नहीं दिया गया मेरे लोगों ने मुखिया को 200 रुपए दिए  जानवर वापस मांगे उसने हमें सिर्फ 3 घोड़े वापस दिए वहां से चलने के बाद हम 24 लोग साथ हो गए ग्वालियर के शिप्री में गांव वालों ने हमें बागी के तौर पर पहचान लिया वहां तीन दिन उन्होंने हमें बंद रखा, फिर सिपाहियों के साथ झालरपाटन के पॉलिटिकल एजेंट के पास भेज दिया मेरे लोगों ने मुझे पैदल नहीं चलने दिया वो एक-एक कर मुझे अपनी पीठ पर बैठाते रहे

हमारे ज्यादातर लोगों को पागलखाने में डाल दिया गया मां साहेब के रिसालेदार नन्हें खान ने पॉलिटिकल एजेंट से बात की उन्होंने मिस्टर फ्लिंक से बोला कि झांसी रानी साहिबा का बच्चा अभी 9-10 वर्ष का है रानी साहिबा के बाद उसे जंगलों में जानवरों जैसी जिंदगी काटनी पड़ रही है बच्चे से तो सरकार को कोई नुक्सान नहीं इसे छोड़ दीजिए पूरा मुल्क आपको दुआएं देगाफ्लिंक एक दयालु आदमी थे, उन्होंने सरकार से हमारी पैरवी की

वहां से हम नन्हें खान के साथ इंदौर के कर्नल सर रिचर्ड शेक्सपियर से मिलने निकल गए हमारे पास अब कोई पैसा बाकी नहीं था सफर का खर्च  खाने के जुगाड़ के लिए मां साहेब के 32 तोले के दो तोड़े हमें देने पड़े मां साहेब से जुड़ी वही एक आखिरी वस्तु हमारे पास थी

इसके बाद 5 मई 1860 को दामोदर राव को इंदौर में 10,000 सालाना की पेंशन अंग्रेजों ने बांध दी उन्हें सिर्फ सात लोगों को अपने साथ रखने की इजाजत मिली ब्रिटिश सरकार ने सात लाख रुपए लौटाने से भी इंकार कर दिया दामोदर राव के वास्तविक पिता की दूसरी पत्नी ने उनको बड़ा किया 1879 में उनके एक लड़का लक्ष्मण राव हुआ 1906 में 58 वर्ष की आयु में दामोदर राव की मृत्यु हो गई इनके परिवार वाले आज भी इंदौर में ‘झांसीवाले’ सरनेम के साथ रहते हैं रानी के एक सौतेला भाई चिंतामनराव तांबे भी था तांबे परिवार इस समय पूना में रहता है

महारानी लक्ष्मीबाई के ऊपर फिल्म गई है सतारा में पैदा होने वाली मनु की फिल्म का प्रमोशन कंगना रनौत ने बनारस के मणिकर्णिका से प्रारम्भ किया था बनारस का अपना एक रस है, आज के हिंदुस्तान में मेवाड़, सिंधिया पटियाला  गायकवाड़ जैसे घरानों के किस्सों का एक रस है जफर, मनु, टात्या टोपे  वाजिद अली शाह जैसों की कहानी का रस उनके गुजर जाने के साथ समाप्त हो गया था तो उसमें किसी की कोई दिलचस्पी नहीं है झांसी की रानी पर बन रही इस फिल्म में कितना हकीकत कितना गल्प है पता नहीं पर दामोदर राव की ये कहानी निश्चित रूप से नहीं होगी, सनद रखिएगा