यूपी के इलाहाबाद में लगने वाले कुंभ के दौरान नहीं दिखेंगे हाथी, घोड़ा और ऊंट…

यूपी के इलाहाबाद में लगने वाले कुंभ के दौरान शाही स्नान, पेशवाई व जुलूस में शानो-शौकत का हिस्सा रहे हाथी-घोड़ा-ऊंट इस बार आपको नजर नहीं आएंगे। अखाड़ों की परंपरा से जुड़े हुए यह नजारे इस बार प्रतिबंधित रहेंगे। योगी सरकार ने कुंभ मेले के दौरान विभिन्न अखाड़ों द्वारा अपने जुलूस में इन्हें शामिल कर संगम स्नान के लिए जाने की परंपरा पर रोक लगा दी है। रविवार को संतों के साथ हुई प्रशासनिक बैठक में जैसे ही यह निर्देश जारी हुआ, संतों ने गहरी नाराजगी व्यक्त की और इसे सनातन परंपरा से खिलवाड़ बताया। हालांकि प्रशासनिक बैठक के दौरान ही अधिकारी हाथ जोड़े संतो के सामने अपनी दलीलें देते रहे। सुरक्षा कारणों से जानवरों के मेले के दौरान जुलूस में शामिल ना करने की मिन्नत पर फिलहाल संत मान गए हैं। हालांकि जानवरों पर क्रूरता करने वाली दलील पर संतों ने प्रशासनिक अफसरों को जमकर खरी-खोटी सुनाई और बकरीद जैसे त्यौहार पर जानवरों के कत्लेआम पर कटाक्ष करते हुए योगी सरकार की इस नीति पर जमकर कोसा।

क्या है अहम वजह

कुंभ मेला में जानवरों का जुलूस आदि कार्यक्रम में शामिल होने का बेहद ही प्राचीन इतिहास रहा है। जानवर अखाड़ों के वैभव का प्रदर्शन करते हैं। अखाड़ों का नगर प्रवेश हो या कुंभ में शाही प्रवेश की पेशवाई अथवा तीन प्रमुख स्नान पर्वों पर शाही स्नान का जुलूस, इनमें सबसे आगे हाथी-घोड़े और ऊंट ही होते हैं। इन पर अखाड़ों के संत या अनुयायी धर्म ध्वजा लेकर आरूढ़ रहते हैं। जिसका अनुक्रम इस बार भी होना था, परंतु कुंभमेला क्षेत्र का इस बार बड़े पैमाने पर विस्तार हुआ है। इसी कारण अखाड़ों को गंगा के उस पार बसाया गया है। शाही स्नान पर जब अखाड़ा का जुलूस निकलेगा तब उन्हें प्लाटून पुल पार करके संगम पहुंचना होगा। ऐसे में अगर हाथी जैसे बड़े जानवर प्लाटून पुल पर चलेंगे तो पुल डैमेज होने की संभावना है, जिससे दुर्घटना घट सकती है।

जानवरों के भड़कने की है संभावना

मेले में भारी भीड़ के बीच जानवरों के भड़कने की भी संभावना बनी हुई है। उदाहरण स्वरूप 1954 के कुंभ मेले में हाथी भड़कने की घटना का जिक्र किया गया, जब सैकड़ों श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी। उस हादसे के बाद से मेले में हाथियों का प्रवेश पूरी तरह से प्रतिबंधित था। लेकिन इसका निर्वाहन पूर्णतः नहीं हो सका। इसे देखते हुए भी जानवरों के जुलूस में शामिल किए जाने पर रोक लगाई जा रही है। इसके अलावा वन्य जीव क्रूरता अधिनियम का हवाला देकर भी जानवरों के इस तरह के कार्यक्रम में प्रयोग पर रोक की दलील दी गई है।

नाराज संतों को मनाया

मेला प्रशासन और अखाड़ों की बैठक कुंभ पुलिस दफ्तर में होने के दौरान जब अधिकारियों ने नियम का हवाला देते हुए पेशवाई में हाथी-घोड़ा-ऊंट नहीं लाने का फरमान सुनाया तो बैठक के बीच ही संत भड़क गए। बैठक से उठकर जाने लगे संतो को नाराज देखकर प्रशासनिक अफसरों के होश उड़ गए। किसी तरह मान मनौवल करके संतों को रोका गया। इस दौरान प्रशासनिक अफसरों ने तमाम दलीलें देकर संतों को मनाने का प्रयास किया लेकिन संत सनातन परंपरा को लेकर अपनी बात पर अड़े रहे। बाद में बीच का रास्ता निकाला गया और यह तय हुआ कि परंपरा का पालन होगा, लेकिन पेशवाई के दौरान हाथी, घोड़े, ऊंट पांटून पुल के ऊपर नहीं चलेंगे। अब परेड में त्रिवेणी मार्ग तक ही अखाडे हाथी-घोड़ा-ऊंट ला सकेंगे। डीआइजी कुंभ मेला केपी सिंह ने बताया कि 2001 के कुंभ में भी प्लाटून पुल पर हाथी, घोड़े नहीं चले थे। वैसा ही इस बार होगा। परंपरा के निर्वहन का हम पूरा सहयोग कर रहे हैं।