यहां चूहे खाकर गुजारा कर रहे लोग, मौत के बाद मिलता है अनाज

उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले में रहने वाले लोग इस बात से बेखबर थे कि राष्ट्र में पूरे सितंबर माह नेशनल न्यूट्रीशन डे (ग्राम सेहत एवं पोषण दिवस) मनाया गया. जो कुपोषण के विरूद्धहिंदुस्तान की लड़ाई को चिन्हित करता है. जिले में स्थित रक्बा दुलमा पट्टी गांव के दशा बेहद बेकार हैं. भूख के कारण यहां लोग अपनी जान गंवा रहे हैं. इन लोगों के विकास के लिए गवर्नमेंट की ओर से कोई कदम नहीं उठाए जाते.
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यहां रहने वाले वीरेंद्र का परिवार भी पूरी तरह से बर्बाद हो गया है. बीते 6 सितंबर को उसकी 30 वर्षीय पत्नी  7 वर्षीय बेटे की भूख से मौत हो गई. पांच दिन पहले ही उसने अपनी दो महीने की बेटी को भी खोया है. ये लोग मुसहर जाति से संबंध रखते हैं. जो कि एक महादलित समुदाय है. खाने के लिए मुख्य स्त्रोत के तौर पर ये लोग चूहों पर निर्भर रहते हैं. आज भी इनकी स्थिति यही है. चूहों के अतिरिक्त ये लोग घोंघे भी खाते हैं. वहीं सरकारी अधिकारियों का मानना है कि ये मौतें भूख से संबंधित नहीं हैं. बता दें कि यूपी में 2.6 लाख लोग इस समुदाय के हैं. जिनमें से 97 प्रतिशत गांव में ही रहते हैं.Related image

जिले से 23 किमी की दूरी पर स्थित है जंगल किरकिया गांव. यहां रहने वाली सोनवा देवी के घर में अन्न है. कुछ लोगों ने उन्हें खुशनसीब भी बताया है. लेकिन सोनवा का कहना है कि उन्होंने कुछ ही समय पहले अपने 16 वर्ष  22 वर्ष के दो बेटों को खोया है. उनकी मौत के बाद अधिकारियों ने उनके घर अन्न पहुंचाया.

ठीक यही सब वीरेंद्र के साथ भी हुआ. हाल ही में अपनी पत्नी  दो बच्चों को खोने वाली वीरेंद्र का कहना है कि कुछ वर्ष पहले इसी तरह उनके 10 वर्ष के बेटे की भी मौत हुई थी. अब जब उनका परिवार समाप्त हो गया तो अधिकारियों ने उनके घर भी अन्न पहुंचाया है. इस समुदाय के लोगों की मौत भूख के कारण हो रही है.
वीरेंद्र की पत्नी का नाम तो वर्ष 2017 से मनरेगा योजना में भी दर्ज था लेकिन उसे कोई कार्य नहीं मिला. वीरेंद्र का कहना है कि गवर्नमेंट की ओर से मिलने वाले खाने के पैकेज  कुछ पैसे उनकी मौत को कुछ समय के लिए केवल टाल सकते हैं. अधिकारियों का कहना है कि ये मौतें भूख के कारण नहीं हुई हैं. वहीं सरकारी आंकड़ों में बताया गया है कि वीरेंद्र की पत्नी बच्चों की मौत डायरिया के कारण हुई है.

मामले पर कुशीनगर के चीफ मेडिकल अधिकारी हरीचरण सिंह का कहना है कि सोनवा देवी के बेटों की मौत कार्डियोरेस्पिरेटरी फेलियर  टीबी के कारण हुई है. वह भूख के कारण नहीं मरे. अभी जांच की जा रही है कि उन्हें उपचार मिल पाया था या नहीं. वहीं इन मौतों के बाद यूपी के CM योगी आदित्यनाथ का भी बयान आया. जिसमें उन्होंने कहा, ‘हमारी गवर्नमेंटमुसहर समुदाय को नौकरी, राशन कार्ड  घर दे रही है. परिवार के पास राशन कार्ड भी था.

लेकिन मामले पर परौना ब्लॉक के टीबी अधिकारी राकेश कुमार का कहना है कि उन्होंने सोनवा के बेटों की जांच की थी. उन्हें टीबी की बीमारी नहीं थी. उन्होंने ये भी बोला कि वरिष्ठ अधिकारियों ने उन्हें धमकी दी है कि वह किसी को भी हकीकत न बताएं. सोनवा का कहना है कि सरकारी डॉक्टरों ने भी जांच के बाद बोला था कि उनके बेटों को कोई बीमारी नहीं है लेकिन खाना न मिलने  देरी से उपचार के कारण उनकी मौत हो गई. सोनवा ने बोला कि उनके पास राशन कार्ड भी नहीं है केवल एक नंबर है  मनरेगा में भी उन्हें कोई कार्य नहीं मिला.

यहां से थोड़ी दूरी पर स्थित है सिमरो हरदो गांव. यहां रहने वाला छोटा सा अर्जुन  बाकी बच्चे स्कूल नहीं जाते. ये सभी पूरे दिन केवल चूहों की तलाश करते रहते हैं. अगर उन्हें चूहे मिल जाते हैं तो उनके रात के खाने का बंदोवस्त हो जाता है. अगर थोड़े ज्यादा मिल जाते हैं तो अगले दिन के नाशते का बंदोवस्त हो जाता है.

अर्जुन की मां ऊषा का कहना है कि चूहे  घोघें ही उन्हें जीने में मदद करते हैं. उनके समुदाय के ज्यादातर लोग दिहाड़ी मजदूरी करते हैं. उन्हें राशन की दुकान से चावल  गेहूं मिलता है. ऊषा का कहना है कि उन्हें नहीं पता होता कि उन्हें कितनी मात्रा में अन्न मिलेगाा. जो अन्न मिलता भी है वह भी कम मात्रा में ही होता है. जब भी उन्हें पैसों की या फिर दवाइयों की आवश्यकता होती है तो उन्हें शहर के लोगों को राशन का अन्न बेचना पड़ता है. ऊषा का कहना है कि या तो उन्हें दवाइयां मिल पाती हैं या फिर खाना. जब वह लोग बीमार पड़ जाते हैं तो उनकी मौत हो जाती है.