एनडीआरएफ के सहायक कमांडेंट संतोष सिंह जोकि बचाव दल का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं उन्होंने कहा, ‘यह अच्छा इशारा नहीं है.‘ उन्होंने आगे किसी भी तरह की टिप्पणी करने से मना कर दिया. एनडीआरएफ के जवानों का कहना है कि दुर्गंध इस बात का इशारा हैं कि खनिकों की मौत हो चुकी है व उनके शवों ने सड़ना प्रारम्भ कर दिया है.
मेहनतकश लोग 13 दिसंबर को चूहे के जैसे छेद वाली खदान में उस समय फंस गए थे जब पास की लितेन नदी से आया पानी उसके अंदर भरने लगा. जहां अभी तक खदान के अंदर का जलस्तर कम नहीं हुआ है. वहीं बचाव दल ने सोमवार से पानी को बाहर निकालना बंद कर दिया है क्योंकि 25 हॉर्सपावर वाले पंप अप्रभावी साबित हुए हैं. एनडीआरएफ ने जिला प्रशासन से कम से कम 100 हॉर्सपावर वाले पंप मांगे हैं.
एनडीआरएफ के अनुरोध को राज्स गवर्नमेंट के पास भेजा गया है लेकिन अभी तक इसपर कोई कार्रवाई नहीं की गई है. एनडीआरएफ के 70 व राज्य आपदा रिएक्शन बल के 22 जवान स्थल पर मौजूद हैं. पिछले 14 दिनों में केवल तीन हेल्मेट मिले हैं. बचाव अधिकारियों का कहना है कि उन्हें फंसे हुए मजदूरों के स्टेटस व उनकी उपस्थिति के बारे में कोई भी जानकारी नहीं मिल पा रही है. बुधवार शाम को एनडीआरएफ के तीन गोताखोरों को पानी का स्तर जांचने के लिए खदान में भेजा गया था.
वर्तमान में खदान के अंदर 70 फीट गहराई तक पानी है. सिंह ने उन्हें कहा, ‘कृपया देखें कि क्या पानी का स्तर कुछ कम हुआ है. मुझे नहीं लगता कि पम्पिंग के बिना यह कम हो सकता है. पानी की सुगंध को देखिए व यह भी कि क्या आपको सतह पर कुछ तैरता हुआ नजर आ रहा है.‘ क्रेन के जरिए जवानों को खदान के अंदर भेजा गया. 15 मिनट बाद उन्होंने सीटी बजाई तो उन्हें बाहर निकाला गया. गोताखोरों ने सिंह को पहली बार दुर्गंध आने की सूचना दी.