मूर्खों को कभी सलाह नहीं देनी चाहिए, ऐसा करने पर खुद का ही नुकसान होना संभव है

 पंचतंत्र की कथाओं में सुखी  पास ज़िंदगी की कई बातें बताई गई हैं. पंचतंत्र को पांच भागों में विभाजित है, इसमें एक मित्रभेद नाम का अध्याय है. मित्रभेद अध्याय में मित्र  दुश्मन की पहचान से जुड़ी हुई कई कहानियां हैं. इसी अध्याय में से एक कहानी यहां जानिए
पंचतंत्र में लिखा है कि


उपदेशो हि मूर्खाणां, प्रकोपाय न शान्तये.
पयःपानं भुजडाग्नां केवल विषवर्धनम्..

इस नीति में बताया गया है कि मूर्खों को दिया गया उपदेश, उसी प्रकार उनके क्रोध को बढ़ाने वाला होता है, जिस प्रकार सापों को दूध पिलाने से उनके विष में वृद्धि होती है.
अब जानिए इस नीति से जुड़ी कथा
किसी जगंल में एक बहुत बड़ा पेड़ था. उस पेड़ पर गोरैया का एक जोड़ा रहा करता था. एक बार जंगल में बहुत तेज बारिश होने लगी. बारिश से बचने के लिए गोरैया अपने बनाए हुए घोंसले में जाकर बैठ गई. थोड़ी देर में उस पेड़ के नीचे एक बंदर आकर खड़ा हो गया. वह पूरा भीग चुका था. ठंड से कांप रहा था.
समर्थ होने पर भी वह मूर्ख बंदर अपने लिए कोई घर न बनाते हुए, बारिश में यहां-वहां घूमकर परेशानियों का सामना कर रहा था. बंदर को परेशान होता देख गोरैया ने उसे खुद का एक घर बना कर उसमें आराम से रहने की सलाह दी. गोरैया की सलाह को बंदर ने अपना अपमान माना. बंदर को लगा कि गोरैया के पास अपना घोंसला है  बंदर के पास खुद का घर न होने की वजह से वह गोरैया उसका मजाक उड़ा रही है. इसी बात से गुस्सा होकर उस मूर्ख बंदर ने उसका घोंसला तोड़ दिया  उसे भी बेघर कर दिया.

कथा की सीख
पंचतंत्र की इस कथा यह एजुकेशन मिलती है कि मूर्खों को कभी सलाह नहीं देना चाहिए, ऐसा करने पर खुद का ही नुकसान होता है.