मुस्लिमों की शादी पर अटका संकट, एक से ज्यादा निकाह किया तो…होगी…

याचिका के साथ दलील दी गयी कि एक समुदाय को छोड़ दे तो हिंदू, पारसी और क्रिश्चियन पुरुष एक पत्नी के रहते हुए दूसरी शादी नहीं कर सकते।अगर वे ऐसा करते हैं तो आईपीसी की धारा-494 के तहत दोषी माना जाता है। कहा गया कि धर्म के नाम पर इस तरह के कानून से आईपीसी के प्रावधानों में भेदभाव होता है।

वहीं ऐसे प्रावधान संविधान के अनुच्छेद-14 समानता का अधिकार और अनुच्छेद- 15 के प्रावधान का सीधे तौर पर उल्लंघन है। बता दें कि संविधान के अनुच्छेद 14-15 के मुताबिक़, धर्म और जाति आदि के आधार पर भेदभाव न करने और समानता का अधिकार देने की बात कही गयी है।

याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट विष्णु शंकर जैन ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की है। उन्होंने कहा कि मुस्लिम पर्नसल लॉ (शरीयत) एप्लिकेशन एक्ट 1937 और आईपीसी की धारा-494 मुस्लिम पुरुषों को एक से ज्‍यादा शादी करने की इजाजत देता है, जो असंवैधानिक है। इन प्रावधानों को पूरी तरीके से गैर संवैधानिक घोषित किया जाना चाहिए।

इसी को लेकर याचिका में मांग की गयी कि आईपीसी की धारा-494 और शरीयत लॉ की धारा-2 के उस प्रावधान को गैरसंवैधानिक करार दिया जाए, जिसके तहत मुस्लिम पुरुष को एक से ज्यादा शादी करने की इजाजत दी गई है।

भारत की सर्वोच्च अदालत में मुस्लिमों के शरीयत कानून को लेकर चुनौती दी गयी है। याचिकाकर्ता ने अपनी अपील में दलील दी कि किसी एक समुदाय को एक से अधिक विवाह की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए। आईपीसी की धारा के तहत मुस्लिमों को बहुविवाह की इजाजत हैं। वहीं अन्‍य धर्मों में बहुविवाह पर पूरी तरह से प्रतिबंध है।

मुस्लिम पुरुषों को एक से ज्यादा निकाह करने की इजाजत को लेकर अब कोर्ट में चुनौती दी गयी है। दरअसल, शरीयत में मुस्लिम पुरुषों को एक पत्नी के होते हुए भी दूसरी शादी करने की अनुमति होती हैं।

हालंकि शरीरत के इस कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की गयी है। जिसमे इस कानून को असंवैधानिक लागू करने की मांग की गयी है।