भारत में तेल के दाम बढ़े की वजह से, फ्रांस में मच रहा कोहराम

ये ऐसा पर्यटन स्थल है जहां दुनिया में सबसे ज़्यादा पर्यटक पहुंचते हैं. मगर ये ख़ूबसूरत देश पिछले दिनों अलग वजह से चर्चा में रहा. राजधानी पेरिस से लेकर छोटे क़स्बों तक से ऐसे आंदोलन की गूंज उठी जिसने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा. फ्रांस में कई सालों बाद इतना बड़ा आंदोलन देखा गया. इस आंदोलन का नाम था- येलो वेस्ट या येलो जैकेट मूवमेंट.

इस आंदोलन में हिस्सा लेने वालों ने पीले रंग के वो जैकेट पहने हुए थे, जिन्हें सुरक्षा के लिहाज़ से पहना जाता है क्योंकि इनका चटख रंग ध्यान खींचता है.

फ्रांस में 2008 में बने क़ानून के मुताबिक़ वाहनों में इस तरह के जैकेट रखना अनिवार्य है ताकि गाड़ी कहीं ख़राब हो जाए तो इसे पहनकर उतरा जाए.

प्रदर्शनकारियों ने ये जैकेट सांकेतिक रूप से ये जैकेट पहने हुए थे ताकि अपनी मांगों और समस्याओं की ओर सरकार का ध्यान खींच सकें.

फ्रांस में नियम के मुताबिक़ पीले रंग का यह जैकेट हर वाहन में होना चाहिए

क्यों उठा यह आंदोलन

17 नवंबर 2018 को फ्रांस में येलो वेस्ट या येलो जैकेट मूवमेंट की शुरुआत हुई थी. यह आंदोलन इसके पड़ोसी देशों इटली, बेल्जियम और नीदरलैंड तक फैल गया था मगर वहां इतना क़ामयाब नहीं हो पाया.

लेकिन फ़्रांस में एक पखवाड़े से भी ज़्यादा समय से इस आंदोलन की धमक सुनाई दे रही है. राजधानी पैरिस से लेकर फ्रांस के अन्य प्रमुख शहरों और छोटे क़स्बों तक लाखों की संख्या में लोगों ने इस आंदोलन में हिस्सा लिया.

पेरिस में रह रहीं वरिष्ठ पत्रकार वैजू नरावने बताती हैं कि यह आंदोलन सोशल मीडिया से शुरू हुआ और मध्यम वर्ग के आर्थिक रूप से थोड़े कमज़ोर लोगों की आवाज़ बन गया.

वह बताती हैं, “एक महिला ने सोशल मीडिया पर पोस्ट करके कहा कि नए टैक्सों के कारण हमें जो परेशानी हो रही है, उसके ख़िलाफ़ प्रदर्शन करना चाहिए. पहले 200 लोग जुड़े, फिर 400 हुए और धीरे-धीरे 10 लाख से ज़्यादा लोगों का रिस्पॉन्स मिला.”

नरावने बताती हैं कि फ्रांस की सरकार ने पेट्रोल और डीज़ल पर जो टैक्स लगाया है, लोगों को मुख्य रूप से उसी से परेशानी थी. सरकार चाहती है कि बिजली से चलने वाली गाड़ियों को प्रमोट किया जाए, इसलिए उसने डीज़ल पर टैक्स बढ़ा दिया. मगर इससे फ्रांस का एक बड़ा वर्ग परेशान हो गया.

वह बताती हैं कि यह मुख्य तौर पर मध्यमवर्ग का आंदोलन है.

“इन लोगों का कहना है कि हमारे पास डीज़ल की गाड़ियां हैं और हमारी हैसियत इतनी नहीं कि नई इलेक्ट्रिक कार खरीद सकें. भले ही आप हमें बोनस दे दें, मगर हम खरीद ही नहीं सकते. हम तो पिस रहे हैं मगर अमीरों को असर नहीं पड़ रहा क्योंकि वे शहर के बीचोबीच रहते हैं और उनकी हैसियत हमसे ज़्यादा है.”