भारत-नेपाल के बीच हुआ ये, देख चीन छूटे पसीने

नेपाल का यह संकट तब सामने आया है, जब कई महीनों तक भारत को जान-बूझकर नाराज करने और नेपाल के संशोधित नक्शे में विवादित कालापानी क्षेत्र को दर्शाने के बाद ओली भारत के साथ रिश्ता सुधारने की कोशिश में लगे थे।

 

कुछ ही हफ्तों के भीतर भारतीय सेना प्रमुख जनरल एम एम नरवाने के दो नेपाल दौरों ने माहौल बनाया और इस महीने के अंत में विदेश सचिव हर्षवर्धन शृंगला काठमांडू जाने वाले हैं।

ओली ने अपनी क्षमता से परे जाकर राष्ट्रीय नक्शे में विवादित लिम्पियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी को संविधान में वैध घोषित करने के लिए शामिल किया। पाठ्यपुस्तकों में भी इस बदलाव को शामिल किया गया, पर फिर ओली ने अपना रुख नरम कर नए नक्शे का वितरण रोक दिया, ताकि बातचीत के लिए माहौल बनाया जा सके।

नरवाने की दूसरी यात्रा से पहले ओली ने अपने आक्रामक रक्षा मंत्री ईश्वर पोखरेल को पद से हटा दिया, जिन्होंने सपष्टवादी भारतीय सेना प्रमुख को बुलाए जाने का विरोध किया था। रक्षा मंत्रालय अब ओली के पास ही है।

विरोधी गुट ओली पर अंकुश लगाना चाहता है, जिन पर वे भ्रष्टाचार, कुशासन और भाई-भतीजावाद का आरोप लगाते हैं। जबकि ओली का कहना है कि बहुदलीय लोकतंत्र में पार्टी उनकी सरकार को नियंत्रित नहीं कर सकती।

हालांकि विगत सितंबर में वह विरोधी गुट से समझौते के लिए तैयार हो गए थे। प्रचंड के नेतृत्व वाले गुट ने उन पर कुछ खास आरोप लगाते हुए चिट्ठी लिखी थी।

कई दिनों की दुविधा के बाद ओली ने कहा कि इस पत्र को वापस ले लिया जाए, क्योंकि वह इसका जवाब नहीं देंगे। बैठक कब होगी और इसका क्या नतीजा होगा, इसके बारे में कयास लगाना मुश्किल है। लेकिन नेपाल के राजनीतिक और प्रशासनिक ढांचे में जो संकट उत्पन्न हुआ है, उसके स्थायी समाधान से संबंधित संकेत अच्छे नहीं हैं।

विगत 17 नवंबर को ओली ने राष्ट्रपति और चीनी राजदूत से मुलाकातें की थीं, जिससे इस अटकल को बल मिला कि नेपाल का सबसे ज्वलंत मुद्दा निर्णायक मोड़ पर पहुंच सकता है। पार्टी के जिस शीर्ष निकाय की बैठक स्थगित हुई है.

उसमें ओली का गुट चार बनाम पांच के आंकड़े से अल्पसंख्यक है। पूर्व प्रधानमंत्री और पार्टी के सह-अध्यक्ष पुष्प कमल दहल प्रचंड विरोधी गुट का नेतृत्व कर रहे हैं।

नौ सदस्यीय इस निकाय के पांच सदस्य अर्थात दहल, माधव नेपाल, झलनाथ खनाल, बामदेव गौतम और नारायण काजी श्रेष्ठ बैठक के लिए दबाव डाल रहे हैं। जबकि बिष्णु पोडेल, ईश्वर पोखरेल और ओली के साथ राम बहादुर थापा बार-बार बैठक को स्थगित कर देते हैं।

सत्तारूढ़ यूनाइटेड कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) की 18 नवंबर को होने वाली महत्वपूर्ण बैठक फिर स्थगित कर दी गई। दस दिन में दूसरी बार ऐसी अटकलों के बीच बैठक स्थगित हुई है कि प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली या तो संसद को भंग कर देंगे और चुनाव का आह्वान करेंगे या पार्टी विभाजित हो जाएगी।

अटकलें ये भी हैं कि वह कार्यवाहक प्रधानमंत्री के रूप में पद पर बने रह सकते हैं या अपने विरोधियों को चुनौती देने से रोकने के लिए पार्टी के ताकतवर गुट का नेतृत्व कर सकते हैं।