भारतीय सेना ने कश्मीर में मासूमों की अंगुली थामकर कर रहे है ये काम

 पाक कश्मीर के बच्चों के हाथ में कलम नहीं पत्थर  बंदूक देखना चाहता है, लेकिन इंडियन आर्मी एजुकेशन की लाइट से इसे नाकाम बना रही है.

सेना की लगातार कोशिशों के चलते घाटी में बेहतर भविष्य की चाह रखने वाले बच्चों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. इस समय पंद्रह हजार से अधिक बच्चे सेना के 43 गुडविल स्कूलों में बेहतर एजुकेशन हासिल कर रहे हैं. सरकार भी स्कूलों में एजुकेशन का बुनियादी ढांचा जुटाने में योगदान दे रही है.

दूरदराज इलाकों के कई बच्चे सेना के स्कूलों में इंजीनियर  चिकित्सक  सैन्य ऑफिसर बनने के अपने सपने को साकार कर रहे हैं. ऐसे दशा में सेना ने आतंकवाद के खौफ को समाप्त करने के साथ एजुकेशन की उस लाइट को भी जलाए रखा है जिसे बुझाने के लिए सीमा पार से नापाक कोशिशें हो रही हैं. गत महीने घोषित सीबीएसई के दसवीं के परिणाम में जम्मू और कश्मीर के गुडविल स्कूलों का परिणाम सौ फीसदी रहा. जम्मू संभाग के राजौरी जिले के हित्तम अयूब 94 फीसद से अधिक अंक लेकर सबसे आगे थे. कश्मीर की जनता भी अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए गुडविल स्कूलों में दाखिले कराने के लिए बेताब रहती है.

युवाओं में सैनिक बनने का जज्बा
पाकिस्तान और उसके इशारों पर कार्य कर रहे देशविरोधी तत्व हताश हैं कि युवा भविष्य बेहतर बनाने की राह पर हैं. यही कारण है कि आतंकियों ने दो सालों में कश्मीर में लेफ्टिनेंट उमर फेयाज, राइफल औंरगजेब, सिपाही इरफान अहमद, हवलदार मोहम्मद रफीक यत्तू की मर्डर कर स्पष्ट इशारा दिया कि वे नहीं चाहते कि कश्मीर के बच्चों का भविष्य बेहतर बने. क्योंकि ये लोग युवाओं के भूमिका मॉडल थे, लेकिन ये शहादतें कश्मीर के युवाओं में सैनिक बनने का जज्बा पैदा कर रही हैं. अब जब कश्मीर के किसी भी जिले में सेना की भर्ती होती तो वहां पर फौजी बनने के लिए उमड़ने वाली भीड़ को संभालना कठिन हो जाता है.

आतंकी संगठन युवाओं को बरगला रहे 
सेवानिवृत मेजर जनरल जीएस जम्वाल ने बताया कि आतंकवादी संगठन नहीं चाहते हैं कि युवा पढ़ लिखकर समझदार बनें. यही कारण था कि जब नब्बे के दशक में कश्मीर औरसाथ लगते जम्मू संभाग के इलाकों में आतंकवाद फैला तो सबसे पहले स्कूलों की इमारतों को जलाया गया. अब सेना उनके रास्ते में चट्टान की तरह खड़ी है. कश्मीर के दूरदराज इलाकों से बच्चे अब आइआइटी जैसे संस्थानों में स्थान पा रहे हैं. सेना होनहार बच्चों को उनके मळ्काम तक पहुंचाने के लिए जुटी है.

सैन्य ऑफिसर बनने के लिए भी दी जाती है ट्रेनिंग 
लेफ्टिनेंट कर्नल देवेन्द्र आनंद ने बताया कि जम्मू और कश्मीर में सेना का योगदान सिर्फ स्कूली एजुकेशन तक ही सीमित नही रहता है. एनआइटी, अन्य प्रोफेशनल कॉलेजों में दाखिला दिलवाने के साथ सशस्त्र सेनाओं में ऑफिसर बनने के लिए भी ट्रेनिंग दी जाती है. ऐसे अभियानों के लिए लिखित इम्तिहान में आगे आने युवाओं को चुना जाता है. इस समय सेना जम्मू-कश्मीर में दूर-दराज के इलाकों के बच्चों को आगे लाने के लिए सुपर 40 प्रोजेक्ट चला रही है. गत माह सांबा सुपर 40 अभियान के तहत दो युवाओं ने वायुसेना में ऑफिसरबनने की लिखित इम्तिहान पास की थी.