बड़ी खबर, अब कैलाश मानसरोवर जाने वाले भारतीय मार्ग पर बनेगा ये…

कैलास मानसरोवर जाने वाले मार्ग  इस पवित्र पर्वतीय क्षेत्र के भारतीय इलाके को दुनिया धरोहर की सूची में शामिल करने का एक प्रस्ताव यूनेस्को के पास भेजा गया, जिसे संयुक्त देश के इस घटक निकाय ने अपनी सहमति संबंधी अंतरिम सूची में शामिल कर लिया है

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के एक ऑफिसर ने बताया कि इस विषय पर एएसआई ने यूनेस्को को 15 अप्रैल 2019 को एक प्रस्ताव सौंपा था इसके बाद पवित्र एवं प्राचीन मार्ग से जुड़े भू क्षेत्र को यूनेस्को की अंतरिम सूची में शामिल किया गया है 

अब अंतरिम सूची में जगह मिल जाने के बाद, नियमानुसार विभिन्न प्रक्रियाओं के बाद एक मुख्य प्रस्ताव बनाकर यूनेस्को को भेजा जाता है  फिर इसे दुनिया धरोहर का पंजीकृत ा दिलाने की कार्रवाई को अंतिम रूप दिया जाता है कैलास मानसरोवर के लिए हिंदुस्तान में कुल यात्रा मार्ग 1433 किलोमीटर का है कैलास यात्रा के लिए हिंदुस्तान में परंपरागत मार्ग ब्रह्मदेव (टनकपुर) से प्रारम्भ हो कर सेनापति, चंपावत, रामेश्वर, गंगोलीहाट  पिथौराघाट से लिपुलेख तक जाता है इस क्षेत्र में अस्कोट वन्यजीव अभयारण्य  जैवमंडल रिजर्व जैसे संरक्षित क्षेत्र आते हैं इसके अलावा, अनेक हिंदू तीर्थ स्थल  बौद्ध स्थल भी इस मार्ग में आते हैं जो इसे  जरूरी बनाते हैं

इस यात्रा की, प्रतिकूल मौसम में ऊबड़-खाबड़ भू-भाग से होते हुए 19,500 फुट की चढ़ाई के दौरान श्रद्धालुओं का उत्साह देखते ही बनता है जो बड़ी संख्या में कैलास मानसरोवर की यात्रा पर जाते हैं अपने धार्मिक मूल्य  सांस्कृतिक महत्व के लिए जानी जाने वाली कैलास यात्रा का आयोजन विदेश मंत्रालय हर वर्ष जून से सितंबर के दौरान दो भिन्न-भिन्न मार्गों – लिपुलेख दर्रा (उत्तराखंड),  नाथू ला दर्रा (सिक्किम) से करता है पवित्र कैलास भूक्षेत्र भारत, चाइना एवं नेपाल की संयुक्त धरोहर है इसे यूनेस्को संरक्षित दुनिया धरोहर कापंजीकृत ा दिलाने के लिए चाइना एवं नेपाल पहले ही अपने अपने प्रस्ताव यूनेस्को को भेज चुके थे

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इस पवित्र इलाके के दायरे में हिंदुस्तान का 6,836 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र आता है इस इलाके में चार जल नदियां भी आती हैं जो क्रमश: पानार सरयू, सरयू रामगंगा, गोरी काली  धौली काली हैं . यहां करीब 50 फीसदी वन क्षेत्र, 22 फीसदी कृषि क्षेत्र  10 फीसदी गैर कृषि क्षेत्र है . इस क्षेत्र की मुख्य बोली कुमाउंनी, बेयांसे, भोंटिया, हुनिया, हिन्दी  नेपाली हैं

यह क्षेत्र न केवल धार्मिक एवं आध्यात्मिक क्षेत्र के रूप में जाना जाता है बल्कि यह हिमालयी पारिस्थितकी  जैव विविधता का प्रमुख स्थल है . यहां लगभग 1200 प्रकार की पादप प्रजातियां, 38 प्रकार के स्तनधारी प्राणियों, 191 तरह के पक्षियों की प्रजातियां तथा करीब 90 प्रकार की मछलियों की प्रजातियां पायी जाती हैं