बैंक लोन हो सकता है सस्ता, आरबीआई करेगा रेपो रेट में कटौती

आरबीआई बुधवार को अपनी क्रेडिट पॉलिसी का खुलासा करेगा. बड़ा सवाल है कि क्या आरबीआई रेपो रेट में कटौती करेगा, जिससे लोन सस्ता हो सके. या फिर इसे पुराने रेट पर ही बरकरार रखा जाएगा. कच्चे तेल के दामों में कमी, खाद्य वस्तुओं की कम महंगाई और ग्रोथ के हालात को देखते हुए रेपो रेट में किसी बदलाव की उम्मीद नहीं है. वैसे यह कयास लगाया जा रहा है कि सीआरआर में कटौती हो सकती है. इससे लिक्विडिटी बढ़ेगी और सस्ते लोन का रास्ता साफ हो सकता है.

लोन सस्ता होगा या नहीं

इंडस्ट्री लोन सस्ता करने की मांग कर रही है. इंडस्ट्री का कहना है कि लिक्विडीटी की कमी को दूर करने के लिए आरबीआई को रेपो रेट में कमी करना चाहिए. वहीं कंज्यूमर सेक्टर में लेन-देन करने वालों के बीच भी लोन सस्ता करने की मांग है.

सरकार और आरबीआई के रिश्तों को देखते हुए ऐसा लगता है रेपो रेट में कटौती की गुंजाइश नहीं दिखती. हालांकि सरकार और आरबीआई की पिछली बैठक से दोनों के बीच समझौते के संकेत मिले थे. आरबीआई ने सरकार की लिक्विडिटी की चिंता को मानी थी. इससे ऐसा लगता है कि रेपो रेट में थोड़ी कटौती हो सकती है. जिसका फायदा सस्ते लोन के तौर पर मिलेगा. हालांकि यह बैंकों को पर निर्भर है कि वे लोन सस्ता करते हैं या नहीं. कई बार यह भी देखने को मिला है कि रेपो रेट में कटौती का फायदा सस्ते लोन के तौर  पर ग्राहकों को नहीं मिलता.

पिछली क्रेडिट पॉलिसी समीक्षा के दौरान आरबीआई ने रेपो रेट होल्ड करके चौंका दिया था. क्योंकि कच्चे तेल की कीमत 60 डॉलर प्रति बैरल के नीचे जाने और खुदरा महंगाई 13 महीने के न्यूनतम स्तर  3.31 फीसदी पर पहुंचने के बावजूद उसने रेपो रेट नहीं घटाई थी.

हालांकि आरबीआई का यह तर्क समझ में आया कि सितंबर में ग्रोथ कम होने और औद्योगिक उत्पादन में कमी की वजह से उसका रेपो रेट में बदलाव का फैसला सही था.

क्या है रेपो रेट?

बता दें कि रेपो रेट वह दर होती है, जिस पर बैंकों को आरबीआई कर्ज देता है. बैंक इस कर्ज से अपने कस्टमर को लोन देते हैं. अगर रिजर्व बैंक ये दर बढ़ा देता है तो सभी बैंकों को महंगा लोन मिलता है. इस वजह से वो भी कस्टमर के लिए लोन की दरों में बढ़ोतरी कर देते हैं.

सवाल लिक्विडिटी का

सरकार पिछले दिनों सिस्टम में लिक्विडिटी का सवाल उठाती रही है. उद्योग भी यह सवाल करता रहा है. हालांकि आरबीआई सरकारी बॉन्ड की खरीद के जरिये 1.36 लाख करोड़ रुपये की लिक्विडिटी सिस्टम में झोंक चुका है. इस वित्त साल के आखिर तक वह और 40 हजार करोड़ की लिक्विडीटी झोंक सकता है. इसके बावजूद सिस्टम में एक लाख करोड़ की लिक्विडिटी की कमी बनी रहेगी. सरकार भी राजकोषीय घाटे को नियंत्रण में रखना चाहती है. ऐसे में आरबीआई राहत देने के लिए सीआरआर या एसएलआर में कटौती कर  सकती है.

बहरहाल, अब से थोड़ी देर के बाद पता चलेगा कि रेपो रेट घटाने के मामले में आरबीआई की मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी क्या रुख अपनाती है.