बीजेपी इस मुकाबले को तिकोना बनाने की कर रही है कोशिश

पूर्वोत्तर राज्य मिजोरम में 28 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए प्रचार अभियान धीरे-धीरे जोर पकड़ रहा है. काग्रेस ने जहां अबकीबार इस पर्वतीय राज्य में सत्ता की तिकड़ी बनाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है वहीं विपक्षी मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) भी 10 वर्ष बाद सत्ता में वापसी के लिए कमर कस चुका है. दूसरी ओर, तमाम सीटों पर मैदान में उतर कर बीजेपी मुकाबले को तिकोना बनाने का कर रही है.

अबकी तमाम दलों का जोर घर-घर जाकर प्रचार करने पर है. इसके साथ ही तमाम उम्मीदवार सोशल मीडिया का भी जम कर सहारा ले रहे हैं. यहां दूसरे राज्यों की तरह चुनावों में धन और बाहुबल का प्रयोग नहीं होता. यही वजह है कि यहां चुनाव प्रचार का नजारा भी राष्ट्र के बाकी हिस्सों से अलग होता है.  तमाम दलों के उम्मीदवार अपने समर्थन में ज्यादा बैनरों और पोस्टरों के प्रयोग से परहेज करते हैं.

कांग्रेस को उम्मीद है कि बीते 10 वर्ष में उसकी गवर्नमेंट से किए गए कार्यों की वजह से लोग अबकी भी उसे ही मौका देंगे. CM और प्रदेश कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष ललथनहवला का दावा है कि उनकी गवर्नमेंट के विरूद्ध कोई प्रतिष्ठान-विरोधी लहर नहीं है. दूसरी ओर, एमएनएफ की दलील है कि लोग कांग्रेस पार्टी के शासन से अजीज आ चुके हैं.

इसलिए वोटरों ने अबकीबार बदलाव का मन बना लिया है. उधर, बीजेपी का कहना है कि पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने के बाद मिजोरम के लोगों ने अब तक सिर्फ कांग्रेस पार्टी या एमएनएफ का शासन ही देखा है. लेकिन इसबार भाजपा उनको एक  विकल्प दे रही है. आधा दर्जन क्षेत्रीय संगठनों को लेकर गठित जोरम पीपुल्स मूवमेंट (जेडपीएम), एनसीपी नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) जैसे दल भी चुनावों में अहम किरदार निभाने का दावा करते हुए मैदान में हैं. लेकिन वोटरों ने अब तक चुप्पी साध रखी है. ऐसे में सत्ता के तमाम दावेदार असमंजस में हैं.