बिहार में सीएम बनते ही नीतीश कुमार ने किया ये काम, मुसलमानों का पत्ता साफ…

संविधान के प्रावधानों के तहत बिहार में नीतीश कुमार अपनी सरकार में अधिकतम 35 मंत्रियों को शामिल कर सकते हैं। यानि, अगले विस्तार के लिए अभी भी 21 और चेहरे तक भी शामिल किए जाने की गुंजाइश बची हुई है।

ऐसे में जहां तक मुसलमानों की बात है तो जदयू में कुछ मुस्लिम विधान पार्षद हैं, जिनकी लॉटरी लग सकती है। एक जदयू नेता ने नाम नहीं बताने की शर्त पर इसकी ओर इशारा भी किया है। उन्होंने कहा है, ‘अगले विस्तार में पार्टी नेतृत्व मुस्लिम समुदाय का ध्यान रखेगा।’

नीतीश कुमार ने सोमवार को 14 मंत्रियों के साथ पद और गोपनीयता की शपथ ली। इसमें प्रदेश के सामाजिक ताने-बाने में पूरा तालमेल बिठाने की कोशिश हुई है।

लेकिन, फिर भी एक भी मुस्लिम इसलिए मंत्री नहीं बन पाया, क्योंकि जेडीयू के सारे 11 मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव हार गए और एनडीए के बाकी सहयोगी दलों में से किसी ने एक भी मुसलमान को टिकट ही नहीं दिया था।

हालांकि, एनडीए सरकार ने छोटी कैबिनेट में समाज के सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व देने की कोशिश जरूर की है। इसमें अगड़ों की बात करें तो एक ब्राह्मण, दो भूमिहार और एक राजपूत को जगह दी गई है। वहीं पिछड़ों में दो यादव, एक कोयरी और एक कलवार को मंत्री बनाया गया है।

अति-पिछड़ों में एक नोनिया, एक धानुक और एक मल्लाह की मंत्री पद पर ताजपोशी हुई है। वहीं अनुसूचित जाति में एक मुसहर, एक पासी और एक पासवान को भी कैबिनेट में शामिल किया गया है।

जदयू के एक वरिष्ठ नेता ने कहा है कि ‘कैबिनेट मंत्रियों को देखने से पता चलता है कि एनडीए के चारों सहयोगियों ने नई सरकार में समाज के सभी महत्वपूर्ण समूहों को शामिल करने के लिए काफी मोहनत की है।’

 बिहार में सोमवार को नीतीश कुमार की अगुवाई में बनी एनडीए सरकार में करीब 17 फीसदी आबादी वाले मुसलमानों को कोई प्रतिनिधित्व नहीं मिला है। आजादी के बाद यह पहली ऐसी सरकार बताई जा रही है, जिसमें एक भी मुस्लिम नुमाइंदे को जगह नहीं मिल पाई है।

ऐसा भी नहीं है कि इस स्थिति के लिए मुसलमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर कोई ऊंगली उठा सकते हैं। क्योंकि, जेडीयू ने जिन 11 मुसलमानों को इस चुनाव में टिकट दिया था, वो सारे के सारे विरोधी दलों के प्रतिद्वंद्वियों से मात खा गए।

इसका एक असर यह भी हुआ है कि 2015 में कुल 24 मुस्लिम विधायक चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे, लेकिन इस बार सिर्फ 19 को ही यह मौका मिल पाया है। इनमें 8 आरजेडी से, 5 एआईएमआईएम से, 4 कांग्रेस से और 1-1 बीएसपी और सीपीएम से चुनाव जीते हैं।