बांग्लादेश के लिये साल 2018 जाते जाते बहुत ज्यादा अहम साबित होने वाला है। दक्षिण एशिया के इस राष्ट्र में रविवार को होने वाले चुनाव पर पूरी संसार की नजरें टिकी हुई हैं। हालांकि बांग्लादेश में इस बार के चुनाव पिछले चुनावों की तुलना में अलग होंगे क्योंकि इस बार ‘दो बेगम’ शेख हसीना व खालिदा जिया आमने-सामने नहीं होंगी।
खालिदा जिया करप्शन के मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद कारागार में सजा काट रही हैं। पूर्व सैन्य तानाशाह जिया उर्रहमान की पत्नी खालिदा जिया (73) व बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर्रहमान की बेटी शेख हसीना (71), 1980 के दशक से बांग्लादेश की पॉलिटिक्स की दो केंद्र बनी हुई हैं।
खालिदा जिया चुनावी रेस से बाहर
हसीना जहां आगामी चुनाव में चौथी बार पीएम बनने की उम्मीद संजोए हुए हैं वहीं खालिदा ढाका कारागार में अपने राजनीतिक भविष्य के लिये प्रयत्न कर रही हैं। बांग्लादेश की प्रथम महिला पीएम खालिदा को नवंबर में करप्शन के एक मामले में एक न्यायालय के आदेश के बाद सलाखों के पीछे डाल दिया गया था। इसके बाद उनके चुनाव लड़ने की संभावनाएं समाप्त हो गई थीं।
जिया के समर्थकों का कहना है कि उन पर लगे आरोप पॉलिटिक्स से प्रेरित हैं। उनके बेटे व बीएनपी के कार्यवाहक प्रमुख तारिक रहमान को भी कारागार में डाला चुका है। बीएनपी ने अपने नेताओं को कारागार में डाले जाने के विरोध में इन चुनावों में भाग नहीं लेने का निर्णय लिया था, लेकिन कानूनी बाध्यताओं की वजह से पार्टी को अपना फैसला बदलना पड़ा क्योंकि लगातार दो बार चुनाव में भाग नहीं लेने पर बीएनपी का पंजीकरण रद्द किया जा सकता था।
नेशनल यूनिटी फोरम (एनयूएफ)
खालिदा जिया को सजा दिये जाने के बाद उभरे विपक्षी पार्टी के नेशनल यूनिटी फोरम (एनयूएफ) ने चुनाव को व दिलचस्प बना दिया है। यह बीएनपी समेत विपक्षी दलों का साझेदारीहै। इस साझेदारी का नेतृत्व अवामी लीग के पूर्व नेता व मशहूर न्यायविद कमाल हुसैन कर रहे हैं। हालांकि उन्होंने खुद चुनाव नहीं लड़ने का एलान किया है।
पश्चिमी राष्ट्रों के कई राजनयिक व राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि एनयूएफ के उभार ने सभी विपक्षी दलों व बीएनपी के बीच चुनावी मुकाबला को रोचक बना दिया है।
भारत पर असर
बांग्लादेश के चुनाव को हिंदुस्तान के नजरिये से भी बहुत ज्यादा अहम माना जा रहा है। इस बार चुनाव प्रचार में हिंदुस्तान विरोधी रुख ना होना हिंदुस्तान के लिये राहत की बात है।इससे पहले हिंदुस्तान पर बांग्लादेश की पॉलिटिक्स में दखल देने के आरोप लगते रहे हैं। विश्लेषकों का मानना है कि कुछ वर्ष से बीएनपी ने पुराना रुख छोड़कर हिंदुस्तान को सहयोगी के तौर पर देखना प्रारम्भ कर दिया है।
बांग्लादेश के हिंदुस्तान के साथ संबंध इस वर्ष व प्रगाढ़ हुए हैं। इसी वर्ष मई में पीएम शेख हसीना ने हिंदुस्तान दौरे पर पीएम नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी। उस समय पीएम मोदी ने बोला था कि हालिया साल भारत-बांग्लादेश के संबंधों का स्वर्णिम अध्याय है। इस दौरान दोनों राष्ट्रों के बीच भूमि व तटीय सीमा से जुड़े पेचीदा मुद्दे हल हुए हैं। हसीना ने भी दोस्ताना माहौल में बचे हुए मुद्दों को सुलझाने की उम्मीद जताई थी।
रोहिंग्या का मुद्दा
इस बीच इस वर्ष बांग्लादेश में रोहिंग्या का मुद्दा भी छाया रहा। बांग्लादेश को म्यांमार पर रोहिंग्या मुसलमानों को वापस बुलाने का दबाव बनाने के लिये कई राष्ट्रों का साथ भी मिला।इसका नतीजा यह हुआ कि कई दौर की वार्ता के बाद म्यांमार, रोहिंग्या मुसलमानों को वापस बुलाने के लिये राजी हो गया।