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बच्चों के माता-पिता को भेजे गए इस नोट में बोला गया है, “ये गेम्स महिला-विरोधी, नफरत, छल-कपट व बदला लेने की भावना से भरे हुए हैं. एक ऐसी आयु जबकि बच्चे चीजें सीखते हैं, यह उनके ज़िंदगी व मस्तिष्क पर निगेटिव असर डालते हैं.
डीसीपीसीआर की सदस्य रंजना प्रसाद ने कहा, “इन हिंसक वीडियो गेम्स की वजह से बच्चों का बचपन छिन रहा है.”
अभिभावकों को भेजे नोट में ग्रैंड थेफ्ट ऑटो, गॉड ऑफ वॉर जैसे गेम्स का भी जिक्र है. ये औनलाइन गेम्स Smart Phone पर उपलब्ध हैं. हालांकि नोट में इन निगेटिव खेलों के पैदा होने वाले लक्षण व बच्चों को इससे दूर रखने के तरीका भी बताए गए हैं.
एम्स में बढ़े बाल मरीज
इस औनलाइन गेम ने एम्स में बाल मरीजों की संख्या बढ़ा दी है. इनमें पबजी के ही हर हफ्ते चार से पांच नए मरीज पहुंच रहे हैं. गेम की लत में डूबे मरीजों की आयु 8 से 22 वर्ष तक के बीच है.
नौकरीपेशा युवा भी डॉक्टरों के पास काउंसलिंग के लिए पहुंच रहे हैं. इन युवाओं को फोन पर पबजी खेलना इतना पसंद है कि ये कार्यालय का पूरा लंच टाइम इसी में खपा देते हैं. डॉक्टरों का मानना है कि ब्लू व्हेल के बाद पबजी दूसरा सबसे ज्यादा लत लगाने वाले गेम के रूप में सामने आया है. जबकि व भी गेम मनोरंजन की स्थान अब तनाव का कारण बन रहे हैं.
हाल ही में गुजरात गवर्नमेंट ने स्कूली विद्यार्थियों के लिए पबजी पर बैन लगा दिया था. एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले दो वर्ष में गेम्स के आदी बच्चे तीन गुना बढ़े हैं.
जब पीएम मोदी बोले- ये पबजी वाला है क्या?
पीएम नरेंद्र मोदी बीते 29 जनवरी को दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में स्कूली बच्चों व अभिभावकों से इम्तिहान पे चर्चा 2.0 प्रोग्राम के तहत रू-ब-रू थे. प्रोग्राम के दौरान मधुमिता गुप्ता ने पीएम मोदी से एक सवाल पूछा कि बच्चों को औनलाइन मोबाइल गेम से कैसे दूर रखें. इस सवाल पर पीएम मोदी ने कहा- ये पबजी वाला है क्या. पबजी का नाम लेते ही पूरा स्टेडियम तालियों से गूंज उठा.
पीएम मोदी ने आगे बोला कि ये पबजी व फ्रंटलाइन क्या है? मोदी ने आगे कहा- ‘बच्चों को तकनीक से दूर नहीं रख सकते. तकनीक का प्रयोग सुधार के लिए हो व माता-पिता अपने बच्चों को तकनीक की सही जानकारी दें. औनलाइन गेम समस्या भी है व निवारण भी. बच्चे प्ले-स्टेशन से प्ले-फील्ड की ओर जाएं. सोशल स्टेटस के कारण टेंशन में ना आएं.‘