बंधन दो प्रकार के होते है एक जिसमे प्रेम होता है व दूसरा जिसमे हमे घुटन महसूस हो: श्री श्री रविशंकर

स्वतंत्रता के कई आयाम हैं. स्वतंत्रता क्या है यह समझने के लिए, बंधन क्या है ये समझना होगा । बंधन दो तरह के होते हैं, एक तो मित्रता का बंधन या रक्षा बंधन जो प्रेम का बंधन है  दूसरा है, जिसमें हमें घुटन महसूस होती है; विकास रुक जाता है.
पहले हम बात करते हैं आर्थिक स्वतंत्रता की. देश अंग्रेज़ों के गुलाम था. इससे निकलने का आंदोलन चला । देश आजाद हुआ । मगर जब तक हम आर्थिक रूप से स्वतंत्र नहीं होते, तब तक हम हकीकत में स्वतंत्र नहीं हैं .


कुछ दशकों तक यह माना गया कि आर्थिक उन्नति स्वावलंबी होने से, आजाद होने से ही मिलेगी. मगर आज हमें यह एहसास होना महत्वपूर्ण है कि वास्तविक स्वतंत्रता पारस्परिक निर्भरता से मिलती है.
जैसे यूरोप में हुआ. सभी देश एक साथ मिल गए, सीमा हट गई  मुद्रा एक हो गई. कोई भी आदमी कहीं भी कार्य कर सकता है. फ्रांस  जर्मनी शत्रु थे, इतनी लड़ाई लड़ी आपस में. पर अब फ्रांस के लोग जर्मनी में कार्य कर सकते हैं, जर्मनी के लोग फ्रांस में जाकर कार्य कर सकते हैं .
क्यों ऐसा हुआ? इंटर डिपेन्डेन्सी से ही आर्थिक उन्नति हो सकती है आज । इस तकनिकी युग में लोगों ने महसूस किया “संघे शक्ति कलीयुगे”, जब हम एक होते हैं तो मजबूत होते हैं.
अब मानो भारत पहले जैसा ही रहने से क्या होता? 500 छोटे-छोटे अलग थलग राज्यों में बटा हुआ देश , भारत कभी मजबूत नहीं होने कि सम्भावना था. तब राष्ट्रीय नेताओं ने साथ आकर सबको एक करके एक गणतंत्र बनाया, हिंदुस्तान को एक मजबूत देश बनाया, तब जाकर हिंदुस्तान को सम्मान मिला. आज हिंदुस्तान का सम्मान एक इस कारण से भी है कि वह संसार का सबसे बड़ा प्रजातंत्र है. नहीं तो हिंदुस्तान कब का छोटे-छोटे द्वीपों  राज्यों में बटा होता |इतनी विविधता में एकता, इतने भिन्न-भिन्न धर्म हैं , संस्कृति है- सब मिलकर के एक देश के रूप में निखर आने पर हमें बल मिला. आर्थिक उन्नति हुई|
हमारी संस्कृति के ऊपर बाहर से इतना थोपा गया,  हमारी भाषा  संस्कृति को हीन दृष्टि से देखा गया, इसलिए हम अधीन हो गए. जब तक हम अपने आप को सम्मान नही करते, अपनी संस्कृति का हम जब सम्मान नही करते, अपनी सामर्थ्य को जब हम सम्मान ही नहीं करते, तब तक अपने आपको स्वतंत्र मान ही नही सकते.
अपना स्वातंत्र्य, आर्थिक, सामाजिक, बौद्धिक  जैविक स्वातंत्र्य पर निर्भर है ।  इन सबसे ऊपर है आंतरिक स्वातंत्र्य; हम अपने आप को कितना प्रसन्न  संतुष्ट महसूस करते हैं, उतना ही हम स्वतंत्र है. जो आदमी अपने आप में मजबूत होता है, वही कह सकता है कि ‘मैं स्वतंत्र हूँ.‘ हमें अपनी भावनाओं, ईर्ष्या, द्वेष और नफरत से मुक्ति मिली क्या? स्वतंत्र हुए हम? अपने आप को पूछना चाहिए कि क्या हमें छोटे मन से स्वतंत्रता मिली? जिसको ढो के हम इतने परेशान होते रहते हैं. यह छोटी बुद्धि, हर हालात में छोटा सोचना, गलत सोचना, दूसरों का बुरा सोचना, जिस बुद्धि में न कोई दया है, न करुणा है, न प्रेम है ऐसी बुद्धि से हमको स्वतंत्रता मिली? इस पर हमें दृष्टि डालना आवश्यक है. हम अपने ही विचारों में, भावनाओं में उलझे रहते है. यदि आप इन उलझनों या निगेटिव भावनाओं से मुक्ति पा सकें तभी ठीक अर्थ में स्वतंत्रता दिवस मना सकेंगे.
स्वतंत्रता दिवस का मनाना मतलब अपने भीतर हमें इतनी आजादी का अनुभव हो , आनंद रहे , आत्मा में मस्ती रहे । जैसे 1947 में जब स्वतंत्र हुआ भारत, उस घडी में लोगों के भीतर जो उत्साह उमड़ा , जो आनंद की एक लहर उठी, वह ऐसा ही था. एक राहत मिली. तब हम सबको अपना कह सकते थे, अपना मान सकते थे. देखिए, एक मजबूत स्वतंत्र आदमी ही सबको अपना मान सकता है .
संस्कृत में एक कहावत है, “नाल्पे सुखमस्ति, यो वै भूमा तत् सुखम्”. जब बड़ा होते है उसमें आनंद है. छोटे बच्चे हमेशा परावलंबी होते हैं. ज़िंदगी के आखिर में भी हम परावलंबी हो जाते हैं । फिर ज़िंदगी भर हम किसी  के कार्य पर निर्भर रहते हैं. किसान अनाज उपजाता है, उसको लाकर हमारे घर तक पहुँचाने वाले होते है व्यापारी, फिर घर में बनाने वाले होते है कोई, तब जाके हम भोजन कर पाते हैं. तो बाहरी रूप से , पूर्ण स्वतंत्र संसार में होना मुश्किल है. हाँ, अपने अंदर यह मिल सकता है| अपनी भावनाओं, विचारों  फैसला के आप स्वामी बन सकते हो. स्वावलंबी होने का ठीक अर्थ क्या है? चाहे आपको कोई गाली दे, उसे रिएक्शन न देकर यदि आप अपने आप में स्थिर रह सकते हो तो यह कह सकते हो कि आप स्वावलंबी हो । यदि हमारा ज़िंदगी सिर्फ रिएक्शन ही है दूसरों के भावनाओं, दूसरों के विचारों का ; तब हम कहाँ स्वावलंबी है? कहाँ हमको स्वातंत्र्य मिला? कहाँ आज़ाद हुए हम? सिर्फ ज्ञान ही आपको आज़ाद और मजबूत कर सकता है.
तो यह जानो, आँख खोल के देखो कि हम एक-दूसरे पर निर्भर है,  निर्भरता से ही आर्थिक उन्नति हो सकती है. स्वातंत्र्य की चाह आर्थिक उन्नति के लिए है मगर आर्थिक उन्नति इंटर- डिपेन्डेन्सी पर निर्भर है. हम एक-दूसरे पर निर्भर हैं । यह बात जान लें.
भारत में आज वह बहुत आवश्यक है कि सब लोग मिलजुल कर कार्य करें. मनमुटाव, द्वेष, नफरत, इन सब को मिटाएँ. देश की सेवा के लिए कम से कम एक घंटा रखें रोज. त्याग माने यह नही कि सब कुछ त्याग दो पर थोड़ा सा त्याग आवश्य करो । आजादी से पूर्व सेवा, त्याग  प्रेम ये तीन मंत्र थे, जिसपर हमारा देश, हमारा पूरा काॅन्टीनेन्ट आजाद हुआ । ये तीनों जब तक नहीं जगेंगे, आगे की दूसरी आज़ादी नही मिलेगी । दूसरी आज़ादी मिलना, आर्थिक आज़ादी मिलनी हो, तो हमें यह तीनों अपनाना पड़ेगा.