फिल्म आर्टिकल 15 के बारे में आयुष्मान ने बोली ये बात

अपनी फिल्मों के चयन से हर बार दर्शकों को चौंकाने वाले आयुष्मान खुराना की गिनती हिंदी सिनेमा के चोटी की तीन सितारों में होती है. उनकी अगली फिल्म आर्टिकल 15 जाति व्यवस्था की कुरीतियों का पर्दाफाश करती है. इसी फिल्म के सिलसिले में ने की आयुष्मान खुराना से यह खास मुलाकात.
आर्टिकल 15 जैसा विषय चुनने के पीछे क्या खास वजह रही?
यह फिल्म मैंने इसलिए चुनी क्योंकि मैं इसमें विश्वास रखता हूं. मैं जाति, रंग  धर्म के आधार पर होने वाले भेद भाव के कठोर विरूद्ध हूं. फिल्म मुल्क जिस तरह हिन्दू-मुस्लिम पर बनी उसी तरह यह फिल्म ऊंची जाति  छोटी जाति के भेद भाव पर आधारित है. मेरे हिसाब से तो देश में किसी तरह की कोई जाति व्यवस्था होनी ही नहीं चाहिए. अनुभव सिन्हा के साथ मैं बहुत ज्यादा समय से कार्य करना चाह रहा था. वह देश के सबसे उम्दा निर्देशकों में से हैं.  उनकी एक अलग ही संसार है. ऐसी फिल्में  बननी चाहिए. कलाकारों की भी ये ज़िम्मेदारी होती है कि वह आज की सामाजिक समस्याओं पर बनने वाली फिल्मों में कार्य करें.
कितनी फिल्में देखी हैं आपने अनुभव सिन्हा की?
मैने बहुत फिल्में देखी हैं उनकी, पर मुल्क मुझे सबसे ज्यादा पसंद है. देखा जाए तो फिल्म मुल्क से ही उन्हें आवाज़ मिली है. मुल्क में वही दिखाया है जो अनुभव सिन्हा देश की सामाजिक समस्याओं को लेकर महसूस करते हैं. अब जो रास्ता उन्होंने पकड़ा है फिल्म मुल्क  आर्टिकल 15 से, वह उनकी सोच से मेल खाता है.
जब आप इतने प्रसिद्ध नहीं थे तो इन समस्याओं को लेकर आपकी रिएक्शन कैसी हुआ करती थी?  बदलाव तो आया है. पहले मैं इन सब चीज़ों को सुनकर बस गुस्सा हुआ करता था पर अब मेरे पास एक माध्यम है. इस फिल्म के ज़रिए मैं दर्शकों में जागरुकता ला सकता हूं. लोगों को पता चलेगा कि जिस जाति व्यवस्था में वह बंधे रहे हैं वह कितनी पिछड़ी है. आगे आने वाली पीढ़ी को यह सब बताना ही नहीं चाहिए. जो सब कुछ इस बारे में इतिहास की किताबों में लिखा है, वह सब हटा देना चाहिए.
फिल्म आर्टिकल 15 में यूपी को प्रातः काल  शाम की लाइट में शूट किया गया है, कैसा रहा यूपी में इस बार शूटिंग का अनुभव? उत्तर प्रदेश अब मेरा दूसरा घर बन गया है. मुझे वहां की कई तरह की बोलियों के बारे में पता चल गया है. मतलब अब मुझे कानपुर  लखनऊ की बोली में फर्क पता चल गया है. मेरठ की भाषा बोलनी आगई है. दिल्ली के लिए लोग मुझे अक्सर बोलते हैं कि बहुत शूट कर लिया उत्तर प्रदेश में लेकिन मैं जानता हूं यूपी एक बहुत बड़ा प्रदेश है. यहां कई भिन्न भिन्न भाषाएं हैं, तो फिल्मों के लिहाद से यूपी कभी पुराना नहीं होगा.
आर्टिकल 15 के बाद अब बाला की शूटिंग प्रारम्भ कर चुके हैं, फिर गुलाबो सिताबो है लेकिन लोगों का ध्यान सबसे ज्यादा शुभ मंगल ज्यादा सावधान पर जा रहा है, एक समलैंगिकभूमिका करने में हिचक नहीं हुई? यह विषय मेरे जेहन में बहुत पहले से था. मैं हमेशा चाहता था कि कोई बड़ी फिल्म एलजीबीटी बिरादरी पर भी बनाई जाए. पहले भी कई फिल्में बनी हैं पर इनमें सिर्फ वही दिखाया गया जो असलियत में उनके साथ होता है इसलिए वह अच्छा नहीं रहीं. आमतौर पर लोग ऐसी फिल्में विदेशी फेस्टिवल्स के लिए बनाते हैं. उनको दिखाकर क्या होगा, हमें ऐसी फिल्म बनानी है जो उन लोगों को दिखाई जाए जो इन विषयों के विरोधी हैं.