केंद्र गवर्नमेंट के मुताबिक उत्तर हिंदुस्तान में स्थित सिंधु-गंगा नदी के मौदानी क्षेत्रों में ही फसल अवशिष्ट जलाने की प्रथा है. इस पर रोक लगाने के लिए केंद्र की ओर से कई कदम उठाए गए हैं व इस दौरान राज्य सरकारों द्वारा पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली इस गतिविधि की निगरानी भी की जा रही है. जिन मामलों में पहचान हो जाती है, उनमें राज्य सरकारों द्वारा आमतौर पर जुर्माने की कार्रवाई की जाती है.
केंद्र द्वारा गतवर्ष व मौजूदा साल में यूपी, पंजाब, हरियाणा व दिल्ली में फसल अवशिष्ट के निपटारे के लिए कृषि यंत्रों को बढ़ावा दिया जा रहा है. इसके लिए 1151.80 करोड़ रुपये केंद्रीय निधि से योजना चल रही है. इन यंत्रों पर किसानों को छूट मुहैया करायी जा रही है. साथ ही किसानों को पर्यावरण के प्रति जागरुक करने व कस्टम हायरिंग केंद्रों की स्थापना कर अवशिष्ट प्रबंधन सिखाया जा रहा है. याद रहे कि राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने इस मामले में उत्तर हिंदुस्तान के राज्यों को कठोर आदेश जारी किए थे. जबकि केंद्र गवर्नमेंटको अवशिष्ट के प्रबंधन के लिए तत्काल कदम उठाने को बोला था.
कृषि मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि केंद्र गवर्नमेंट द्वारा उठाए जा रहे तमाम कदमों व राज्यों की निगरानी के बावजूद फसल अवशिष्ट जलाने की घटनाएं बड़ी तादाद में सामने आ रही हैं. पिछले साल ऐसी 75563 घटनाओं की सूचना यूपी, हरियाणा व पंजाब में प्रशासन को मिलीं. पंजाब के बाद हरियाणा में 3997 मामलों की पहचान की गई. इस दौरान राज्य गवर्नमेंट द्वारा पर्यावरण मुआवजे के तौर पर 31.82 लाख रुपये की वसूली की गई व 164 चूककर्ताओं के विरूद्ध एफआईआर भी दायर की गईं. जबकि यूपी गवर्नमेंट ने ऐसे 510 मामले चिन्हित किए व 26 लाख रुपये का जुर्माना वसूला है.
मंत्रालय के मुताबिक हाल ही में विद्युत मंत्रालय ने भी हरियाणा व पंजाब में कोयला आधारित थर्मल क्षमता प्लाटों में कोयले के साथ 10 फीसदी तक बायोमास गुल्लों (पेलिट) का उपयोग किया जाएगा. इसका न्यूनतम इस्तेमाल 5 फीसद निर्धारित किया गया है.