देहरादून में उद्घाटन के महज डेढ़ साल के भीतर ही कूड़ा निस्तारण प्लांट हुआ फेल

दून के कूड़ा निस्तारण के लिए सेलाकुई के शीशमबाड़ा में बना गया सूबे का पहला सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट व रिसाइक्लिंग प्लांट सरकार के लिए मुसीबत बनता जा रहा है। दरअसल, दावे किए जा रहे थे कि यह देश का पहला ऐसा वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट है, जो पूरी कवर्ड है और इससे किसी भी तरह की दुर्गंध बाहर नहीं आएगी, मगर नगर निगम का ये दावा तो शुरुआत में ही हवा हो गया था।

उद्घाटन के महज डेढ़ साल के भीतर अब यह प्लांट कूड़ा निस्तारण में भी ‘फेल’ हो चुका है। यहां न तो कूड़े का निरस्तारण हो रहा, न ही कूड़े से निकलने वाले दुर्गंध से युक्त गंदे पानी (लिचर्ड) का। स्थिति ये है कि यहां कूड़े के पहाड़ बन चुके हैं और गंदा पानी बाहर नदी में मिल रहा।

जेएनएनयूआरएम के अंतर्गत वर्ष 2009 में सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट बनाने की कवायद शुरू हुई थी। उस दौरान परियोजना का बजट 24 करोड़ रुपये था, मगर प्रक्रिया तमाम कानूनी दांवपेंचों में फंस गई और प्लांट कर निर्माण पीछे होता चला गया। बहरहाल नवंबर-2014 में सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी ने प्लांट निर्माण को मंजूरी दी साथ ही दो साल टेंडर और बजट की प्रक्रिया चलती रही। इस कारण इसका बजट 36 करोड़ जा पहुंचा।

ग्रामीणों के भारी विरोध, पथराव और उपद्रव के दौरान तीन अक्टूबर-16 को प्लांट का शिलान्यास हुआ और इसके निर्माण में तेरह महीने का समय लगा। करीब सवा आठ एकड़ में बने प्लांट में एक दिसंबर-17 से कूड़ा डालना शुरू किया गया था, लेकिन प्रोसेसिंग कार्य 23 जनवरी-18 को उद्घाटन के बाद शुरू हुआ।

उद्घाटन के दिन ही मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने यहां उठ रही दुर्गंध पर सख्त नाराजगी जाहिर कर इसके उपचार के निर्देश दिए थे, मगर यह दुर्गंध कम होने के बजाए बढ़ती चली गई। दिखावे के लिए निगम की ओर से वायु प्रदूषण जांच कराई गई लेकिन निजी एजेंसी के जरिए हुई जांच भी सांठगांठ के ‘खेल’ में दब गई। जन-विरोध लगातार जारी है और दुर्गंध को लेकर स्थानीय लोग प्लांट बंद करने की मांग कर रहे।

अब स्थिति ये है कि डेढ़ साल के अंदर ही प्लांट ओवरफ्लो होने लगा है। अब यहां और कूड़ा डंप करने की जगह ही नहीं बची है। ऐसे में यहां सड़ रहा ये कूड़ा आसपास के हजारों ग्रामीणों के लिए ‘अभिशाप’ का रूप ले चुका है। हालांकि, प्लांट संचालित करने वाली रैमकी कंपनी कूड़े से खाद तो बनाने का दावा तो रही है, मगर धीमी गति होने की वजह से खाद कम बन रही है और कूड़ा ज्यादा डंप हो रहा। कंपनी दावा कर रही कि रोजाना 270 मीट्रिक टन कूड़ा इस प्लांट में पहुंच रहा, लेकिन हकीकत यह है कि यहां 50 मीट्रिक टन का निस्तारण तक नियमित नहीं हो पा रहा।