केंद्र की मोदी सरकार किस तरह से अपनी नाकामियों को छिपा रही है। इस का एक उदाहरण राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग में देखने को मिला है। राष्ट्रीय सैंपल सर्वे संगठन (एनएसएसओ) के साल 2017-18 के रोजगार और बेरोजगारी पर पहले वार्षिक सर्वे को मोदी सरकार पर रोके जाने का आरोप लगा है। राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग के कार्यवाहक चेयरपर्सन ने सर्वे को रोके जाने का आरोप लगाते हुए इस्तीफा दे दिया है। सांख्यिकीविद पीसी मोहनन और दिल्ली स्कूल ऑफ इकॉनमिक्स में प्रोफेसर जेवी मीनाक्षी को जून, 2017 में एनएससी का सदस्य नियुक्त किया गया था। दोनों को तीन साल का कार्यकाल दिया गया था।
इंडियन एक्सप्रेस में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग के कार्यवाहक चेयरपर्सन ने जिस राष्ट्रीय सैंपल सर्वे संगठन की रिपोर्ट को रोके जाने का आरोप लगाया है, कहा जा रहा है कि इस रिपोर्ट में नोटबंदी के बाद कम हुई नौकरियों के बारे में आंकड़े सामने आने वाले थे। मौजूदा सरकार में आने वाली इस तरह की यह पहली रिपोर्ट थी।
सांख्यिकीविद पीसी मोहनन ने बताया कि हमने राष्ट्रीय सैंपल सर्वे संगठन सर्वे को दिसंबर 2018 की शुरूआत में मंजूरी दे दी थी, लेकिन करीब दो महीने बीत जाने के बाद भी रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया है। मोहनन के अनुसार, “एनएसएसओ अपने निष्कर्षों को आयोग के सामने रखता है और एक बार अनुमोदित किए जाने के बाद, रिपोर्ट अगले कुछ दिनों में जारी कर दी जाती है, लेकिन ऐसा नहीं किया गया।”
यही नहीं मोहनन ने यह भी कहा कि मोदी सरकार राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग को गंभीरता से नहीं ले रही थी। उन्होंने कहा कि जब भी बड़े फसले लिए गए आयोग को अंधेरे में रखा गया। मोहनन ने कहा कि हम प्रभावी ढंग से अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन नहीं कर पा रहे थे। जिसके बाद इस्तीफा देने का फैसला लिया गया।
राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग का 2006 में गठन हुआ था, यह एक स्वायत्त संस्था है। इस संस्था का काम देश की सांख्यिकीय प्रणाली की समीक्षा करना है। इससे तीन साल पहले जीडीपी पर आधारित डाटा के अंतिम रूप को लेकर नीति आयोग पर राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग को किनारे करने का आरोप लगा था।