देर से ही सही CBI की साख बचाने उतरा पीएमओ

CBI की साख बचाने के लिए पीएमओ के सक्रिय होने की उम्मीद करीब छह महीने पहले की जा रही थी, लेकिन तब कुछ नहीं हुआ. आखिरकार देर से ही सही पीएमओ ने राष्ट्र की प्रमुख जांच एजेंसी को चुस्त-दुरुस्त करने का जिम्मा संभाल लिया है.
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प्राप्त जानकारी के अनुसार पूरे आपरेशन की रणनीति राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की सलाह पर बनी है. 23 अक्टूबर की देर रात ही जांच एजेंसी के दसवें  ग्यारहवें फ्लोर को सील कर दिया गया  CBI के निदेशक आलोक वर्मा तथा स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना छुट्टी पर भेज दिए गए हैं.

CBI के संयुक्त निदेशक एम नागेश्वर राव के हाथ में CBI का कार्यभार सौंप दिया गया है  सूत्र बताते हैं कि रात भर से छापेमारी की कार्रवाई चल रही है. माना जा रहा है कि CBI में चल रहे इस घमासान का खामियाजा दोनों आईपीएस अफसरों को भुगतना पड़ सकता है. इतना ही नहीं इस मामले में पीएम की किरदार को लेकर उनपर भी झगड़े की आंच आनी तय मानी जा रही है.

क्यों सक्रिय हुआ पीएमओ

CBI का झगड़ा केवल CBI तक सीमित नहीं है. इसकी आंच रिसर्च एंड एनालिसिस विंग, इंटेलीजेंस ब्यूरो, प्रवर्तन निदेशालय  सीवीसी तक है. घूस खोरी के मामले के केन्द्र में मोइन कुरैशी हैं  मोइन कुरैशी लंबे समय से राष्ट्र की जांच एजेंसी में गहराई तक उतरे हुए हैं.

जिस तरह से आलोक वर्मा राकेश अस्थाना की किरदार को लेकर अपनी नाराजगी जाहिर कर रहे थे, उस पर पीएमओ चुप था. वहीं राकेश अस्थाना अपनी मनमानी से तो आलोक वर्मा अपने विवेक से निर्णय ले रहे थे. एक अवकाश प्राप्त सूत्र की माने तो इस पूरे मामले में कई सफेद पोश का नकाब उतरने की संभावना को देखकर पीएम ऑफिस ने बहुत ज्यादा देर से अपनी चुप्पी तोड़ी है.

इस पूरे मामले में आलोक वर्मा, राकेश अस्थाना, के शर्मा, अजय बस्सी,  राकेश अस्थाना के करीबी तथा अरैस्ट हुए डीएसपी देवेंन्द्र  कुमार के पास एक दूसरे से जुड़े लोगों को विरूद्धबहुत ज्यादा कुछ जानकारी तथा दस्तावेज हैं. बताते हैं आलोक वर्मा के आदेश पर कुछ अधिकारी लगातार राकेश अस्थाना के कामकाज पर नजर बनाए रखे हुए थे.

सह पर ही आगे बढ़ा झगड़ा

आलोक वर्मा  राकेश अस्थाना के बीच में 2017 में ही टकराव सतह पर आ गया था. इसके बाद से ही दोनों अधिकारी एक दूसरे के विरूद्ध अपना अभियान तेज किए थे. आलोक वर्मा ने इस संदर्भ में पीएम ऑफिस को भी लेटर भेजा था.

लेकिन झगड़ा लगातार बढ़ता रहा.राकेश अस्थाना को पीएम नरेन्द्र मोदी  बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का करीबी माना जाता है. वह गुजरात कॉडर के आईपीएस अधिकारी भी हैं.गोधरा मामले की जांच कर चुके हैं.

इतना ही नहीं राकेश अस्थाना को जिस तरह से CBI में स्पेशल डायरेक्टर बनाया गया  जिस तरह से वह लगातार कामकाज में हस्तक्षेप कर रहे थे, वह अपने आप में एक बड़ा सवाल है.

राकेश अस्थाना,1984 बैच, गुजरात कॉडर
-राकेश अस्थाना मूलत: झारखंड से हैं. जेएनयू से उच्च एजुकेशन ली  1984 बैच के गुजरात कॉडर के आईपीएस ऑफिसर हैं.

-शुरू में तेज तर्रार, ईमानदार छवि वाले अधिकारी रहे. 1990 के दशक में लालकृष्ण आडवाणी के संपर्क में आए  1996 में चारा घोटाले की जांच में लालू प्रसाद यादव को अरैस्टकरके चर्चा में आए.

-ऐसा आरोप है कि अपनी छवि को बेहतर बनाए रखने का वह लगातार बेहतर प्रबंधन करते रहे. केवल बड़ी मछलियों का ही शिकार करते थे. 2002 में गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस में लगी आग की जांच के लिए विशेष जांच दल(एसआईटी) बनी. इस जांच का जिम्मा राकेश अस्थाना के पास था. तब गुजरात में नरेन्द्र मोदी मुख्यमंत्री थे  इसके बाद राकेश अस्थाना ने कभी पीछे मुडक़र नहीं देखा. बताते हैं राकेश अस्थाना को यह जिम्मा आडवाणी की सलाह पर मिला था.

-गुजरात के CM नरेन्द्र मोदी के पूरे कार्यकाल भर अस्थाना कभी केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर नहीं आए. लगातार एक के बाद एक बेहतर पोस्टिंग को इंज्वॉय करते रहे.

-उद्योगपतियों से रिश्ते, उद्योग पति के विशेष चॉपर से विदेश यात्रा, बड़ोदरा में बेटी की शानदार खर्चों वाली विवाह समेत ऐसे तमाम आरोप राकेश अस्थाना पर लगते रहे  वह अपनी शगल में जीते रहे.

-जून 2016 में राकेश अस्थाना CBI में प्रमुख मामलों की जांच तेज करने के लिए दिल्ली लाए गए. उन्हें एसआईटी का जिम्मा सौंपा गया  स्पेशल डायरेक्टर बनाए गए.

-फरवरी 2017 में अलोक वर्मा CBI के निदेशक बने. उन्होंने राकेश अस्थाना को स्पेशल डायरेक्टर बनाए जाने का विरोध किया. आलोक  वर्मा के विरोध का आधार राकेश अस्थाना पर लगे कदाचार के आरोप ही थे.

-आलोक वर्मा लगातार राकेश अस्थाना का विरोध करते रहे. राकेश अस्थाना मनमाने तरीके से अपना कार्य करते रहे  अंतत: यह झगड़ा सतह पर आ गया.

-राकेश अस्थाना की नियुक्ति का विरोध वरिष्ठ एडवोकेट प्रशांत भूषण ने भी किया था. भूषण का कहना था कि अस्थाना की छवि दागदार है.

असली लड़ाई तो न्यायालय में होगी

CBI के दो अफसरों की वास्तविक लड़ाई न्यायालय में होगी. CBI के निदेशक आलोक वर्मा जहां इस मामले को निर्णायक स्तर तक ले जाने का मन बना चुके हैं, वहीं राकेश अस्थाना के पास अपने बचाव में तथ्यों के साथ सामने आने की मजबूरी है.

सुप्रीम न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने ट्वीट करके अपनी मंशा जाहिर कर दी है. ऐसे में CBI के अफसरों की पूरी लड़ाई सुप्रीम न्यायालय की निगरानी में होने के इशाराहैं.