तीन दिन पहले इंडियन वायु सेना के पठानकोट स्टेशन पर आतंकवादी हमला

तीन दिन पहले इंडियन वायु सेना के पठानकोट स्टेशन पर आतंकवादी हमला हुआ. इस हमले का मुकाबला करने में  आतंकवादियों को सबक सिखाने में सबसे अहम किरदार निभाई वायु सेना की विशेष इकाई गरुड़ कमांडो फोर्स ने. बहादुरी की नयी परिभाषा लिखने वाले गरुड़ कमांडो फोर्स के जवान हर हालात का मुकाबला करने के लिए प्रशिक्षित होते हैं.
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रक्षा सेवाओं की सबसे नयी इकाई गरुड़ कमांडो फोर्स की आधार शिला 2003 में रखी गई थी. सेना के पैरा कमांडो  नौसेना के मार्कोज बल की तर्ज पर प्रशिक्षित गरुड़ कमांडो कम समय में हालात के मुताबिक खुद को ढालने  एक्शन लेने में विशेषता रखते हैं.  आइए जानते हैं गरुड़ कमांडो फोर्स के बारे में वो बातें जो उसे खास बनाती हैं
एक विशेष बल के निर्माण की जरूर वायुसेना को तब महसूस हुई जब 2001 में एयर फोर्स के दो हवाई अड्डे आतंकवादी हमलों की चपेट में आ गए. इस घटना के बाद वायु सेना को एक ऐसे बल की आवश्यकता महसूस हुई जो आपात स्थितियों का मुकाबला करने में सक्षम हो  ऐसी स्थितियों का मुंहतोड़ जवाब दे सके. इसी के बाद 2003 में गरुड़ कमांडो फोर्स की स्थापना की गई.
गरुड़ कमांडो की ट्रेनिंग नौसेना के मारकोज  आर्मी के पैरा कमांडो के आधार पर की गई है. इन्हें एयरबोर्न आपरेशन (वायुयान संचालन), एयरफील्ड सीजर) हवाई एरिया पर कब्जा, आतंकियों से मुकाबला करने का प्रशिक्षण भी दिया जाता है. गरुड़ कमांडो ने जम्मू व कश्मीर में विद्रोहियों का मुकाबला भी किया है. शांति के समय गरुड़ कमांडो का प्रमुख कामइंडियन वायु सेना के एयर फील्ड की रक्षा करना होता है.
थल सेना  वायु सेना की तरह गरुड़ कमांडो वॉलंटियर नहीं होते. विशेष फोर्स के लिए ट्रेनिंग हेतु इनकी सीधी भर्ती की जाती है. साथ ही, एक बार गरुड़ फोर्स ज्वाइन करने के बाद कमांडो अपने शेष करियर के दौरान यूनिट के साथ ही रहते हैं. इससे यह पुष्ट होता है कि यूनिट के पास लंबे समय तक बेहतरीन जवान रहें.
हालांकि, गरुड़ कमांडो में भर्ती होना कोई सरल कार्य नहीं है. सभी रंगरूटों के लिए बेसिक प्रशिक्षण प्रोग्राम 52 हफ्ते तक चलता है, जो भीरतीय विशेष बलों के प्रशिक्षण कार्यक्रमों में सबसे लंबा है. आरंभ के तीन महीने बेहत संघर्षपूर्ण होते हैं. इनमें से सर्वश्रेष्ठ लोग ही ट्रेनिंग के अगले चरण में प्रवेश कर पाते हैं.
प्रशिक्षण का दूसरा चरण विशेष फ्रंटियर फोर्स, इंडियन सेना  राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड के साथ जुड़ा होता है. इस चरण में पास होने वाले लोग की प्रशिक्षण के अगले चरण में स्थान बना पाते हैं.इस दौरान उन्हें मुश्किल शारीरिक  मानसिक प्रशिक्षण से गुजरना पड़ता है. इसका उद्देश्य भावी जवानों के हर हालात का मुकाबला करने के योग्य बनाना होता है.
इस मुश्किल परीक्षण में पास होने वाले लोगों को आगरा स्थित पैराशूट ट्रेनिंग स्कूल में भेजा जाता है. यहां उन्हें आपात स्थिति में चलते हवाई जहाज या हेलीकॉप्टर से प्रभावित एरिया में कार्रवाई को अंजाम देने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है. उन्हें पैराशूट की सहायता कूदने का प्रशिक्षण भी दिया जाता है. इस दौरान रंगरूट मार्कोज  पैरा कमांडो की तरह ही पैरा बैज पहनते हैं.
गरुड़ कमांडो को मिजोरम स्थित सेना के जवाबी कार्रवाई  जंगल वारफेयर स्कूल (सीआईजेडब्ल्यूएस) में प्रशिक्षण दिया जाता है. संसार भर के अलग-अलग राष्ट्रों की सेनाओं के सैनिक सीआईजेडब्ल्यूएस आते हैं, जो जवाबी कार्रवाई में हिंदुस्तान के व्यापक अनुभव से सीखते हुए ऐसी कार्रवाइयों को अंजाम देना सीखते हैं.
प्रशिक्षण के अंतिम चरण में गरुड़ कमांडो को इंडियन सेना के पैरा कमांडो की सक्रिय इकाइयों के साथ जोड़ा जाता है, ताकि उन्हें काम करने का पहला अनुभव मिल सके. इस दौरान वह उन कार्यों को अंजाम देते हैं जिनका प्रशिक्षण उन्हें अब तक मिला होता है. इस दौरान यह परखा जाता है कि जो प्रशिक्षण उन्हें दिया गया है उस पर वह किस स्तर तक खरे उतरे हैं.
गरुण कमांडो संसार के सबसे नुकसानदेह हथियारों से लैस होते हैं. इनमें टेवर टार-21 असॉल्ट रायफल, ग्लॉक 17  19 पिस्टल होती हैं. करीबी युद्धों के लिए हेकलर  कोच एमपी5 सब मशीन गन होती हैं. इसके अतिरिक्त गरुड़ कमांडो के पास नुकसानदेह एकेएम असॉल्ट रायफल, एके-47  एम4 कार्बाइन होती है. ये हथियार संसार के सबसे नुकसानदेहहथियारों में शुमार किए जाते हैं.
पठानकोट वायु सेना स्टेशन पर चल रहे ऑपरेशन में गरुड़ कमांडो गुरसेवक सिंह शत्रु से राष्ट्र की रक्षा करने में अद्भुत बहादुरी का प्रदर्शन करते हुए शहीद हो गए. गुरसेवक सिंह का साहस  जज्बा ही यह प्रदर्शित कर देता है कि गरुड़ कमांडो फोर्स असल में क्या है. गरुड़ कमांडो के आदर्श वाक्य ‘प्रहार से सुरक्षा’ (डिफेंस बाइ आफेंस) से ही उनकी बहादुरी सामर्थ्य स्पष्ट हो जाती है.