जैसे कैमरा में लेंस तस्वीर लेता है, लेकिन । इसी तरह, रेटिना आंख की रील है, जहां कॉर्निया (आंख के आगे का भाग) तस्वीर लेता है, लेकिन अंतिम ²श्य रेटिना (आंख के पीछे का भाग) में बनता है। यह कहना है बॉम्बे हॉस्पिटल में ऑफ्थैल्मोलॉजिस्ट डॉ। अजय आई। दुदानी का। ‘वल्र्ड रेटिना डे’ पर गुरुवार को उन्होंने बोला कि कॉर्निया से संबंधित रोगों, जैसे कैटेरेक्ट का पता सरलता से चल जाता है, लेकिन रेटिना के रोगों, जैसे एज-रिलेटेड मैक्युलर डीजनरेशन (एएमडी) व डायबेटिक मैक्युलर एडीमा (डीएमई) को पहचानना मुश्किलहोता है।
डॉ। दुदानी ने बोला कि रेटिना के विभिन्न रोगों में से एएमडी व डीएमई ऐसे रोग हैं, जिनमें दिखाई देना बंद हो जाता है। एएमडी व डीएमई का प्रभावी प्रबंधन किया जा सकता है, यदि रोगी की समय पर जाँच हो। इसलिये, इन रोगों से जुड़े लक्षणों को समझना जरूरी है, ताकि प्रारंभिक अवस्था में ही इनका पता चल सके।
उन्होंने कहा, “एक माह में आने वाले रोगियों में से लगभग 30 फीसदी को एज-रिलेटेड मैक्युलर डीजनरेशन (एएमडी) होता है, जबकि लगभग 40 फीसदी को डायबेटिक मैक्युलर एडीमा (डीएमई)। रेटिना के 50 फीसदी रोगियों में रोग की अवस्था एडवांस्ड होती है। ”
(वीआरएसआई) के सचिव व एल। वी। प्रसाद आई इंस्टीट्यूट, हैदराबाद में क्लीनिकल रिसर्च के प्रमुख डॉ। राजा नारायणन ने कहा, “वर्ष 2020 तक हिंदुस्तान में ²ष्टिहीनों की संख्या 15 मिलियन हो जाएगी। रेटिना के रोग, जैस एज-रिलेटेड मैक्युलर डीजनरेशन व डायबेटिक मैक्युलर एडीमा ऐसी स्थितियां हैं, जिनका प्रभावी प्रबंधन किया जा सकता है, यदि समय पर जांच हो। इसलिए, लक्षण उभरने पर विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए। समय पर जांच होने से रोग का बढ़ना धीमा हो सकता है। ”
उन्होंने बोला कि रोगियों को रेटिना रोगों के प्रारंभिक संकेतों व लक्षणों के प्रति सचेत रहना चाहिए। अधिकांशत: एएमडी के लक्षणों का कारण बड़ी आयु को समझा जाता है। मधुमेह रोगियों को प्रति छह माह में नेत्र रोग विशेषज्ञ/रेटिना रोग विशेषज्ञ के पास जाने की सलाह दी जाती है, क्योंकि उन्हें डायबेटिक रेटिनोपैथी होने का जोखिम अधिक होता है। एएमडी वडीएमई का शीघ्र पता लगने से अंधेपन की रोकथाम की आसार बढ़ जाती है।