हिंदुस्तान के मुख्य सांख्यिकीविद् प्रवीण श्रीवास्तव ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि घरेलू खपत का डेटा जून में जारी किया जाएगा. गरीबी का अनुमान इसी डेटा से लिया जाता है.
आधुनिक सांख्यिकी मॉडल के जरिए वैश्विक गरीबी पर नजर रखने वाली संस्था वर्ल्ड डेटा लैब के मुताबिक हो सकता है कि पांच करोड़ इंडियन 134 रुपये रोजाना में गुजारा करते हैं.अर्थशास्त्रियों के मुताबिक तेजी से हो रही आर्थिक प्रगति सामाजिक एरिया में तकनीक के प्रयोग से राष्ट्र में गरीबी के आंकड़ों में तेजी आ सकती है.
भारतीय इंस्टिट्यूट ऑफ़ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी के प्रोफेसर एन भानुमूर्ति के मुताबिक पीएम ग्रामीण सड़क योजना व मनरेगा व अन्य सामाजिक योजनाओं में सीधे खाते में पैसे भेजे जाने से भी फर्क पड़ा है. पूर्व सांख्यिकीविद् भी इस बात कि तस्दीक करते हुए कहते हैं कि वर्ल्ड डेटा लैब के आंकड़े सही साबित हो सकते है व पिछले कई वर्षों से लगातार गरीबी आंकड़ों में आ रही इस बार भी हो सकती है.
थिंकटैंक ब्रूकिंग्स की रिपोर्ट की मानें तो हिंदुस्तान संसार का सबसे बड़ा राष्ट्र बनने के साथ बेहद गरीबी को भी कम कर रहा है. संसार हिंदुस्तान की इस उपलब्धि पर हो सकता है कि तरफ ध्यान न दें. 2017-18 का पिछला सर्वे घरेलू खपत को व्यापक ढंग से लेता है. इसमें अतंरराष्ट्रीय मानकों के अुनसार अन्य वस्तुओं का मापन होगा.
वर्ल्ड डेटा लैब के अनुमान के मुताबिक 2019 के अंत तक हिंदुस्तान में अति गरीबों की संख्या पांच करोड़ से चार करोड़ तक आ सकती है. नाइजीरिया में गरीबों की संख्या सबसे ज्यादा है.