जानिए यहाँ पर पहली बार इतनी सीटो पर खिला कमल

हरियाणा में बीजेपी ने विपक्ष का सूपड़ा साफ करने के साथ ही तीन सीटों पर पहली बार कमल खिलाया है. जाटलैंड और देवीलाल-चौटाला परिवार का गढ़ मानी जाने वाली ये सीटें आज तक बीजेपी के कब्जे में कभी नहीं रहीं.
1984 में बीजेपी ने हरियाणा में कमल निशान पर पहली बार ताल ठोकी थी, उसके बाद से रोहतक, हिसार और सिरसा में बीजेपी को लगातार मात ही मिली. बीजेपी इस बार इन तीनों सीटों पर भगवा लहराने की जिद के साथ चुनाव लड़ रही थी, जिसे उसने चुनाव नतीजों के साथ पूरा भी कर लिया.

रोहतक में बीजेपी ने गैर जाट वोटरों का ध्रुवीकरण कर चुनावी जंग जीती. पूर्व में कांग्रेसी रहे डॉ अरविंद शर्मा ही भूपेंद्र सिंह हुड्डा परिवार पर भारी पड़े. अरविंद ने रोहतक के साथ ही सोनीपत में भी कांग्रेस पार्टी की जड़ें हिलाने का कार्य किया, चूंकि वह सोनीपत सीट से भी निर्दलीय सांसद रह चुके हैं.

बीजेपी ने अरविंद को हुड्डा परिवार के सामने खड़ा कर बड़ा दांव खेला था, जिसमें वह अंतत: पास रही. शर्मा को टिकट देने से नाराज बीजेपी नेता भी हाईकमान की घुड़की के बाद भितरघात नहीं कर पाए. इसके साथ ही बीजेपी ने जाटलैंड की सीटों पर अपने जाट नेताओं को बड़ी रणनीति के तहत उतारा था.

उनकी जिम्मेदारी जाट मतदाताओं का ध्रुवीकरण रोहतक और सोनीपत में कांग्रेस पार्टी और हिसार में जजपा के पक्ष में पूरी तरह न होने की लगाई गई थी, जिसमें वह खासा पास भी रहे. केंद्रीय मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह, वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु, कृषि मंत्री ओपी धनखड़, बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष सुभाष बराला और खाप बीजेपी नेता टेकराम कंडेला ने जाटलैंड में कांग्रेस पार्टी की चूलें हिलाने का कार्य किया.

हिसार संसदीय क्षेत्र में जहां दुष्यंत चौटाला को पिछली बार जाट एरिया में 95 प्रतिशत तक वोट मिले थे, वहां वह इस बार पिछला प्रदर्शन नहीं दोहरा पाए. जाटों के वोट भी बीजेपी ने पीएम नरेंद्र मोदी के नाम पर ले लिए. बेशक, धनखड़ अपने विधानसभा क्षेत्र बादली में बीजेपी उम्मीदवार अरविंद शर्मा को लीड नहीं दिला पाए, मगर उन्होंने एकतरफा मतदान भी नहीं होने दिया.

जाट वोट बैंक में सेंध लगने के कारण ही पूर्व मुख्यमंत्री हुड्डा की सोनीपत में बड़ी पराजय हुई. बांगर बेल्ट में आने वाले जींद जिले में बीजेपी के जाट नेताओं ने उनकी राह मुश्किल कर दी.

जाटलैंड में नहीं चला हुड्डा का सिक्का

भूपेंद्र हुड्डा इस उम्मीद में थे कि जाटलैंड में उनका पूरा सिक्का चलेगा, लेकिन बीजेपी की रणनीति को वह भांप ही नहीं पाए. बीजेपी ने ब्राह्मण चेहरे रमेश चंद कौशिक को दोबारा उतारकर नॉन जाट वोट एकतरफा लेने की अपनी रणनीति साफ कर दी थी. सोनीपत और जींद में उसने जाटों के वोटों में भी सेंध लगाने का कार्य किया. यही कारण रहा कि हुड्डा प्रारम्भ से अंत तक कौशिक से पिछड़े ही रहे.
संन्यास के दांव के साथ बीरेंद्र ने दिलाई बड़ी जीत
हिसार में चौधरी बीरेंद्र सिंह ने अपने बेटे बृजेंद्र सिंह को बड़ी जीत दिलाई है. हिसार पहली बार भगवामय हुआ है. यहां इससे पहले कभी कमल नहीं खिला. बीरेंद्र ने 47 वर्ष के राजनीतिक ज़िंदगी से संन्यास लेते हुए बेटे को चुनावी दंगल में झोंका था, जिसे उन्होंने जाट-गैर जाट मतदाताओं में खूब भुनाया  बेटे की नैया पार लगाने का आशीर्वाद मांगा. बीजेपी यहां लगातार हारती चली आ रही थी. हिसार में मनोहर लाल सरकार के दौरान हुए कामों का फायदा भी बीरेंद्र परिवार को मिला है.

गढ़ में तीसरे नंबर पर खिसका चौटाला परिवार
सिरसा सीट को देवीलाल-चौटाला परिवार का गढ़ माना जाता है. इस संसदीय क्षेत्र में बीजेपी के एकमात्र विधायक मात्र टोहाना से सुभाष बराला ही हैं, बाकि आठ सीटों पर इनेलो के अतिरिक्त जजपा समर्थक विधायक थे. बावजूद इसके बीजेपी की सुनीता दुग्गल जीती  इनेलो के चरणजीत रोड़ी तीसरे जगह पर खिसक गए. एक भी विधायक संसदीय क्षेत्र में न होते हुए भी कांग्रेस पार्टी प्रदेशाध्यक्ष अशोक तंवर ने दूसरा जगह हासिल किया. सिरसा सीट पर कांग्रेस पार्टी का भी लंबे समय तक अतिक्रमण रहा है. यहां से कुमारी सैलजा और उनके पिता दलबीर सिंह दो-दो बार, तंवर एक बार, आत्मा राम एक बार सांसद रह चुके हैं. अब यहां कांग्रेस पार्टी की जमीन खिसक चुकी है. बीजेपी ने यहां बूथ मैनेजमेंट कर इस बार कमल खिलाया है.