जानिए महात्मा गांधी के संकलनों की इस किताब के बारे में

प्रार्थना-प्रवचन महात्मा गांधी के उन प्रवचनों का संकलन है, जो उन्होंने 1 अप्रैल, 1947 से 30 जनवरी, 1948 को अपनी मर्डर से एक दिन पहले तक दिल्ली की अपनी प्रार्थना सभाओं में दिए थे.

दस महीने का यह अंतराल ब्रिटिश गुलामी से स्वतंत्रता मिलने के अच्छा पहले  अच्छा बाद का समय था, जब देश एक अभूतपूर्व हालात का सामना कर रहा था. स्वतंत्रता आ रही थी, लेकिन देश बंटने जा रहा था. सांप्रदायिक झगड़े लगातार विकराल होते जा रहे थे. इसकी चरम परिणति गांधी की मर्डर में हुई.

उस दौर में गांधी अकेले पड़ गए थे. वह देश विभाजन के विरूद्ध थे. वह सर्वधर्म समभाव चाहते थे. लेकिन तब उन्हें कोई सुनना नहीं चाह रहा था. इसके बावजूद अपने ज़िंदगी को ही अपना संदेश माननेवाले  सत्य को भगवान माननेवाले गांधी उस विकट वेला में भी अपने विचारों से बिल्कुल नहीं डिगे थे. विभाजन को रोक पाने में नाकाम रहने के बाद उन्होंने चाहा कि बंटने के बाद हिंदुस्तान  पाक दोनों राष्ट्रों के लोग बेहतर भविष्य का निर्माण करें.

एक प्रवचन में उन्होंने कहा, मैं इतना जरूर मानता हूं कि 15 अगस्त किसी तरह उत्सव मनाने का दिन नहीं है, वह दिन प्रार्थना  अंतर्विचार का है. या तो 15 अगस्त को सब भाई-भाई मिलकर खुशी मनावें या बिल्कुल नहीं. आजादी की खुशी मनाने का दिन तब ही होने कि सम्भावना है, जब हम सच्चे दिल से दोस्त बनें. लेकिन यह तो मेरा विचार है  इस विचार में मुझे कोई साथ देनेवाला नहीं है.

इन प्रवचनों में गांधी ने बार-बार उदात्त नैतिक जिम्मेदारी का आह्वान किया है. मनुष्यता उनके लिए सर्वोपरि थी. उनके सामने जो मामले थे, दुर्भाग्य से वे आज भी उपस्थित हैं, जिनके बारे में उनके विचारों की लाइट में हम एक देश के रूप में  एक मनुष्य के रूप में एक बेहतर रास्ते पर आगे बढ़ सकते हैं.