छह माह तक बिना मुकदमें के ही कारागार में रहा युवक, जानिए ये है वजह

आपातकाल के दौरान विरोध करने पर बाबू लाल मानव को 10 अगस्त 1975 को उनके गांव करंडा से पुलिस ने अरैस्ट कर जिला कारागार में डाल दिया.                                                                                                                                                                                                             

छह माह तक तो बिना मुकदमा ही कारागार में बंद रहे. करीब डेढ़ साल तक परिवार के किसी भी मेम्बर से मिलने तक की अनुमति नहीं थी. इतना ही नहीं छह जून 1976 को राशन की जाँच की मांग को लेकर कारागार में अनशन पर बैठ गए तो जेलर अफजल अंसारी ने मार पीट कर पसली तक तोड़ डाली. इतना ही नहीं उन्हें गर्म सलाखों से दागा भी गया.

बताते हैं, कारागार में इतनी यातनाएं झेलनी पड़ीं कि अंग्रेजों की हुकूमत भी मात खा जाए. आपातकाल के दौर का जिक्र होते ही गाजीपुर, उप्र निवासी बाबू लाल मानव का चेहरा गुस्से से लाल हो जाता है. उस समय सिर्फ सरकार के निर्णय का विरोध उनके लिए किस कदर कष्टकारी था, कल्पना कर पाना भी कठिन है. न सिर्फ शारीरिक सितम सहना पड़ा बल्कि मानसिक वेदना  ताड़ना से भी दो-चार होना पड़ा. करंडा के बसंत पट्टी गांव के रहने वाले बाबू लाल मानव को जैसे ही पता चला कि देश में आपातकाल लग गया है, वह वाराणसी औरजिले के कॉलेजों में घूम-घूमकर विरोध में जुट गए. लिहाजा, उनके विरूद्ध वाराणसी और गाजीपुर के सभी थानों से वारंट जारी कर दिया गया.

वह नाग पंचमी का दिन था
नाग पंचमी के त्योहार पर गांव के सभी लोग अपने-अपने घर उपस्थित थे. तभी पुलिस टीम बाबू लाल मानव के घर धमक पड़ी. गिरफ्तारी की जानकारी होते गांव के लोग जुट गए.सबने फैसला किया कि उन्हें नायक की तरह गाजीपुर जिला कारागार तक जुलूस की शक्ल में ले चलेंगे. हालांकि, पुलिस के आगे सबको मजबूर होना पड़ा. उन्हें तांगे द्वारा करंडा से चोचकपुर होते हुए गाजीपुर लेकर आया गया. गलत चीजों पर भला बाबूलाल भी कहां मानने वाले थे.जेल में पहुंचते ही वहां की लचर व्यवस्थाओं ने उन्हें इस तरह झकझोरा कि दूसरे दिन इसके विरोध में कारागार में ही अनशन पर बैठ गए.

पंजीकृत न भर कैदी आए थे मुझे ले जाने
आपबीती बयां करते हुए बाबू लाल मानव तमतमा से गए. बोले, छह जून साल 1976 का दिन कभी नहीं भूल सकता. बताया कि राशन की जाँच को लेकर जब भूख हड़ताल प्रारम्भ की तो जेलर अफजाल अंसारी ने बुलाने के लिए सजायफ्ता 12 कैदियों को मेरे बैरक में भेजा दिया. इसके बाद भी मैंने जाने से यह कहते हुए इन्कार कर दिया कि मिलना हो तो जेलर खुद बैरक में आएं. ऐसे में भेजे गए कैदी मुङो जबरदस्ती उठाकर ले गए. चूंकि मैं भूख हड़ताल पर था, ऐसे में जबरदस्ती खाना खिलाने लगे. जेलर ने क्रूरता की हद पार करते हुए इस कदर इतना मारा कि पसली की हड्डी टूट गई.

हर पेशी में इंदिरा के विरूद्ध नारेबाजी
बाबूलाल ने बताया, जब भी मुङो पेशी पर ले जाया जाता था तो मैं तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी मुर्दाबाद के नारे लगाने में तनिक भी पीछे नहीं हटता था. कारागार में रहते हुए मेरे ऊपर 15 मुकदमे सरकार के विरूद्ध नारेबाजी करने के लिए लाद दिए गए. अंतत: मुझे लोकसभा के चुनाव के लिए पर्चा भरने को 15 फरवरी 1977 को रिहा किया गया. इमरजेंसी के दौरान का जुल्म सहने के बाद आज ‘लोकतंत्र रक्षक सेनानी’ के रूप में मिलने वाले पेंशन से मरीजों के बीच दूध वितरित करने का कार्य करता रहता हूं.