चेन्‍नई में पानी के लिए लोग कर रहे है ये काम, जानकर लोग हो रहे हैरान

 कुछ वर्ष पहले फिक्की के सर्वे के अनुसार देश की 60 फीसद कंपनियों का मानना है कि जल संकट ने उनके कारोबार को प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया है.

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इस सर्वे को हाल ही में चेन्नई की कंपनियों द्वारा उनके कर्मचारियों को दिए गए दिशानिर्देश से जोड़कर देखने की आवश्यकता है. कंपनियों की ओर से जारी आदेश में बोला गया है कि सभी कर्मचारी अपने घर से ही कार्य करें. जल संकट के चलते कार्यालय न आएं. यह बानगी है उस खतरे की जिसने कंपनियों की चिंता बढ़ा दी है.

जल है तो कल है

1962 में हिंदुस्तान की प्रति आदमी जीडीपी चाइना की दोगुनी थी व इसकी प्रति आदमी स्वच्छ भूजल की हिस्सेदार चाइना की 75 फीसद थी. 2014 में हिंदुस्तान की स्वच्छ भूजल की प्रति आदमी हिस्सेदारी चाइना की 54 फीसद रह गई. इस समय तक चाइना की प्रति आदमी जीडीपी हिंदुस्तान से तीन गुना हो चुकी थी. पर्यावरणविदों का बोलना है कि यदि आर्थिक तरक्‍की को बनाए रखना है तो हमें भूजल दोहन पर लगाम लगानी होगी.

उद्योग बेहाल, पर्यटन होगा चौपट

पिछले वर्ष शिमला की प्रतिदिन जलापूर्ति 4.4 करोड़ लीटर से कम होकर 1.8 करोड़ लीटर जा पहुंची. पानी के अभाव में पर्यटन चौपट हो गया. ऐसे में पानी नहीं होगा तो पर्यटन नहीं होगा, उद्योग अपने कच्चे माल को तैयार नहीं कर पाएंगे. लिहाजा देश की पांच लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का सपना मूर्त रूप नहीं लेगा. कम पानी वाली फसलों वप्रजातियों के प्रयोग को बढ़ावा देने की दरकार है. एक किग्रा चावल पैदा करने में 4500 लीटर पानी खर्च होता है जबकि गेहूं के लिए यह आंकड़ा 2000 लीटर है.

थमेगी तरक्‍की की गति

2016 में दुनिया बैंक के एक अध्ययन में चेताया गया है कि अगर हिंदुस्तान जल संसाधनों का कुशलतम प्रयोग व उसके तरीकों पर ध्यान नहीं देता है तो 2050 तक उसकी जीडीपी विकास दर छह फीसद से भी नीचे रह सकती है. हाल ही में नीति आयोग की रिपोर्ट में बताया गया कि देश के कई औद्योगिक केंद्रों वाले शहर अगले वर्ष तक शून्य भूजल स्तर तक जा सकते हैं. तमिलनाडु व महाराष्ट्र जैसे उद्योगों से भरे-पूरे प्रदेश अपनी शहरी आबादी के 53-72 फीसद हिस्से की ही जलापूर्ति सुनिश्चित करने में सक्षम हैं.

उद्योगों की जरूरी आवश्यकता

एक सार्वभौमिक विलायक, शीतलक व सफाई करने वाले तत्व के रूप में पानी उद्योगों की जरूरी आवश्यकता है. ज्यादातरउद्योगों ने भूजल निकालने के लिए खुद के बोरवेल लगा रखे हैं. अत्यधिक दोहन के चलते कई बार इन उद्योगों को पानी न मिलने के कारण कारोबार ठप भी करना पड़ता है. वल्र्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट के अनुसार 2013 से 2016 के बीच 14 से 20 थर्मल क्षमता प्लांट को पानी की किल्लत के चलते अपना कार्य बंद करना पड़ा था. उद्योगों को भी पानी प्रयोग के विकल्पों को तलाशना होगा, अथवा जितना पानी वर्ष भर प्रयोग करते हैं उतनी मात्रा का भूमि में पुनर्भरण करना पड़ेगा तभी समस्या से निजात मिल सकती है.

इजरायल से सीखें सिंचाई

देश की जीडीपी में खेती की 17 फीसद हिस्सेदारी है. पंजाब देश के चावल उत्पादन में 35 फीसद व गेहूं उत्पादन में 60 फीसद की हिस्सेदारी रखता है, वहां भूजल स्तर हर वर्ष आधे मीटर की दर से गिर रहा है. अभी देश में ज्यादातर सिंचाई डूब प्रणाली के तहत की जाती है जिसमें खेत को पानी से लबालब कर दिया जाता है. जो गैरजरूरी है. पौधों की जड़ों तक पानी पहुंचाने के लिए इजरायल की तर्ज पर ड्रिप व स्प्रिंकलर प्रणाली को व्यापक स्तर पर विकसित करने की दरकार है. तभी हम ‘पर ड्रॉप मोर क्रॉप’ को चरितार्थ कर पाएंगे.