चीन के बाद अब ये देश कर रहा भारत से टकराने की तैयारी , बना रहा ये हथियार…

हाल ही में, नेपाल की सरकार ने स्कूली पाठ्यक्रम में भी नेपाल के नए नक्शे को शामिल किया था. हालांकि, विवाद बढ़ने पर सरकार ने अपना ये फैसला वापस ले लिया. स्कूली बच्चों के लिए लाई गई किताब के एक अंश में लिखा था, 1962 में चीन से युद्ध के खत्म होने के बाद भारतीय प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने नेपाल के राजा महेंद्र से अपनी आर्मी को कुछ वक्त तक और ठहरने देने का अनुरोध किया था.

लेकिन 60 सालों के बाद भी नेपाल की जमीन से अपनी आर्मी हटाने के बजाय भारत सरकार इन इलाकों को अपने नक्शे में शामिल कर रही है जबकि ये जमीन उसे अस्थायी तौर पर दी गई थी.

आर्म्ड पुलिस फोर्स के प्रवक्ता राजू आर्यल ने कहा, हम भारत-नेपाल सीमा पर निगरानी करने के लिए चंगरू में बैरक का निर्माण करने जा रहे हैं. उत्तराखंड सरकार के एक सूत्र ने कहा, सीमा के नजदीक नागरिकों की आवाजाही पर निगरानी के लिए कभी भी सुरक्षा बल के जवान तैनात नहीं किए गए. दोनों देशों के लोग बेफिक्री से सीमा पार करके घूम सकते थे. लेकिन अब आर्म्ड पुलिस फोर्स हमारे नागरिकों को अपनी जमीन पर आने से रोक रहे हैं. इसलिए हम भी अपनी सीमा में नेपाली लोगों की एंट्री नहीं होने दे रहे हैं.

उत्तराखंड सरकार के एक सूत्र ने टेलिग्राफ से बताया, थापा ने चंगरू के नजदीक सीतापुल के ग्रामीणों के साथ बातचीत में कहा कि नेपाल के युवाओं के लिए आर्म्ड पुलिस फोर्स में शामिल होेने का बेहतरीन मौका है क्योंकि आर्म्ड पुलिस फोर्स विस्तार की योजना बना रही है.

नेपाल के गृह मंत्री राम बहादुर थापा ने शुक्रवार को चंगरू में बैरक और क्वॉर्टर की आधारशिला रखी. इन बैरकों में नेपाल की सशस्त्र पुलिस फोर्स के जवान रहेंगे जो कानून लागू कराने के साथ-साथ सेना की भूमिका भी अदा करेंगे.

ये बैरक कालापानी से 13 किमी दूर चंगरू में बनाए जा रहे हैं. इस साल की शुरुआत में नेपाल ने कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा इलाकों को शामिल करते हुए अपने देश का नया नक्शा जारी किया था. भारत ने लगातार दोहराया है कि ये तीनों इलाके उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में आते हैं.

नेपाल उत्तराखंड के कालापानी के नजदीक अपनी सीमा में सैनिकों की तैनाती के लिए स्थायी क्वॉर्टर और बैरक बना रहा है. नेपाल उत्तराखंड के कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा इलाकों पर अपना दावा पेश करता है. नेपाल का ये कदम काफी चौंकाने वाला है क्योंकि इससे पहले इस इलाके में नेपाल ने कभी सैनिकों की तैनाती नहीं की थी.