चीन के खिलाफ भारत ने खोला मोर्चा , पीएम मोदी ने बनाई ये रणनीति

भारत और चीन के बीच यह सांस्कृतिक लड़ाई भी है और दोनों देशों में बौद्ध धर्म का नेतृत्व करने की प्रतिस्पर्धा भी है। भारत और चीन की लड़ाई में बुद्ध धर्म भी एक शस्त्र के रूप में हो गया है। इसका फायदा भारत को बुद्ध की प्रथम उपदेश स्थली में प्रधानमंत्री के आने से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मिलेगा।

 

सारनाथ के जम्बूदीप श्रीलंका बुद्धिस्ट मंदिर के अध्यक्ष डॉ. के. सिरी सुमेधा थेरो का मानना है कि भगवान बुद्ध को देश-दुनिया में बहुत से मानने वाले हैं। बुद्ध के प्रथम प्रवचन स्थल पर प्रधानमंत्री जाएंगे तो बौद्ध धर्म के मानने वाले खुश होंगे। थेरो ने कहा कि भगवान बुद्ध की प्रथम उपदेश स्थल पर प्रधानमंत्री आशीर्वाद लेंगे, तो यह संदेश पूरे विश्व में जाएगा।

काशी हिंदू विश्वविद्यालय के अंतर्राष्ट्रीय मामलों के जानकार राजनीतिक विभाग के प्रोफेसर तेज प्रताप सिंह का कहना है कि ऐसा देखा जाता है भारत और चीन के मध्य बुद्धिस्म को लेकर प्रतिद्वंद्विता चल रही है। चीन का तर्क है कि बुद्ध धर्म को मानने वाले सबसे अधिक चीन में रहते हैं, इसलिए बौद्ध धर्म पर चीन का अधिकार है।

केवल बुद्ध के भारत में पैदा भर होने से भारत का कोई अधिकार नहीं हो सकता। जनगणना के अनुसार, बुद्ध धर्म के मानने वालों की संख्या बढ़ने के बजाय वैश्विक स्तर पर घट रहे हैं। दूसरी तरफ, भारत का मानना है कि भगवान बुद्ध के पैदा होने से से लेकर प्रथम उपदेश तक भारत में हुआ है।

विशेषज्ञों का कहना है कि चीन से हर तरह का मोर्चा लेने के लिए प्रधानमंत्री मोदी की रणनीति कारगर साबित हो रही है। चाहे वह सीमा पर सैन्य रणनीति हो या फिर दुनिया में भगवान बुद्ध के उपदेश के जरिए विश्व शांति का संदेश देना, मोदी हर मोर्चे पर कामयाब हो रहे हैं। दुनियाभर के विशेषज्ञ प्रधानमंत्री के सारनाथ आने के अंतर्राष्ट्रीय निहितार्थ निकाल रहे हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को काशी से देश और दुनिया को भारतीय संस्कृति के साथ शांति और सौहार्द का भी संदेश दिया। सच तो यह है कि बुद्ध के प्रथम उपदेश स्थली सारनाथ का दर्शन मोदी का चीन की विस्तारवादी और युद्धोन्मादी रणनीति को करारा जवाब है।